सब्सिडी के बढ़ते बोझ ने राज्यों की कमर तोड़ दी
चुनाव जीतने के लिए बड़े-बड़े वायदे करना बाद में कितना महंगा पड़ता है, इसे ऐसे समझा जा सकता है कि कई राज्य सरकारों की आय का बड़ा हिस्सा सब्सिडी में जा रहा है।;
राज्य सरकारों द्वारा सब्सिडी पर जोर दिए जाने के साइड इफेक्ट दिखने लगे हैं। सब्सिडी ने इस कदर बोझ बढ़ा दिया है कि राज्यों की माली हालत कमजोर होती जा रही है। कुछ राज्यों की तो आमदनी का 20 प्रतिशत से ज्यादा सब्सिडी में चला जा रहा है।
आय पर सब्सिडी की मार
राज्य सरकारें हालांकि जनता को राहत देने के लिए सब्सिडी देती हैं। लेकिन सब्सिडी ने सरकारों का राजस्व घाटे को बढ़ाना शुरू कर दिया है। पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और नागालैंड जैसे राज्यों में राजस्व घाटा लगातार बढ़ रहा है। इन राज्यों में सब्सिडी का बोझ इतना ज्यादा हो गया है कि इसमें इन राज्यों की आय का 20% से ज्यादा हिस्सा चला जा रहा है। जानकार बता रहे हैं कि इसका असर यह हो रहा है कि विकास योजनाओं के लिए धन की उपलब्धता कम हो जा रही है।
आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपैया !
राज्य सरकारों की आय में से एक बड़ा हिस्सा वेतन, पेंशन और ब्याज भुगतान में चला जाता है। जैसे पंजाब अपनी कुल आय का 81.5%* और केरल 71.8% इसी पर खर्च कर रहा है। ऐसे में, जब सब्सिडी पर और अधिक खर्च किया जाता है, तो राज्य सरकारों के पास बुनियादी ढांचे, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में निवेश के लिए बहुत कम पैसा बचता है।
कहां-कहां बढ़ी सब्सिडी?
बिजली और कृषि जैसे क्षेत्रों में बढ़ती स्पष्ट सब्सिडी (explicit subsidies) भी चिंता का विषय है। 2020-21 के बाद से ये तेजी से बढ़ी हैं। पंजाब की सब्सिडी 2019-20 में ₹13,168 करोड़ थी, जो 2021-22 में बढ़कर ₹47,222 करोड़ हो गई। इसी तरह, पश्चिम बंगाल की सब्सिडी ₹31,381 करोड़ से बढ़कर ₹45,308 करोड़ तक पहुंच गई। कई राज्यों ने इन सब्सिडी को वित्तपोषित करने के लिए उधार लिया है, जिससे उनके ऊपर कर्ज का दबाव और बढ़ गया है।
सब्सिडी का सीधा असर
राज्यों की वित्तीय स्थिति पर नजर डालें, तो स्पष्ट होता है कि सब्सिडी और राजस्व घाटे के बीच सीधा संबंध है। आंध्र प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों में लगातार बढ़ते घाटे के कारण उनका सब्सिडी खर्च कुल राजस्व व्यय का 25% से अधिक हो गया है। इसके विपरीत, ओडिशा और उत्तर प्रदेश ने अपनी सब्सिडी को 15% तक सीमित रखा, जिससे वे वित्तीय रूप से अधिक संतुलित बने रहे।
बिजली वाली सब्सिडी
सब्सिडी का सबसे बड़ा बोझ बिजली क्षेत्र पर पड़ा है। पंजाब में कृषि क्षेत्र को दी जाने वाली मुफ्त बिजली सरकार को हर साल ₹6,700 करोड़ की लागत में डाल रही है। इतना ही नहीं, बिजली कंपनियों को दी जाने वाली सब्सिडी का ₹7,930 करोड़ पहले से ही बकाया है। इसका मतलब है कि सरकार की स्पष्ट सब्सिडी धीरे-धीरे सार्वजनिक ऋण में बदल रही है।
अब, पंजाब सरकार ने 300 यूनिट मुफ्त बिजली योजना की घोषणा की है, जिससे सब्सिडी खर्च में और ₹14,337 करोड़ सालाना का इजाफा हो सकता है। यह वित्तीय असंतुलन को और बढ़ा सकता है, क्योंकि राज्य पहले से ही सब्सिडी भुगतान में देरी कर रहा है।
डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर का असर
बिजली सब्सिडी के अलावा, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) स्कीमों का भी विस्तार हो रहा है। आंध्र प्रदेश में 2018-19 में DBT खर्च ₹11,256 करोड़ था, जो 2021-22 में बढ़कर ₹40,043 करोड़ हो गया। हालांकि, हर किसी को एक समान लाभ देने के बजाय केवल जरूरतमंदों को लक्षित सब्सिडी देना अधिक प्रभावी साबित हो सकता है। इसका इलाज क्या है?
अगर राज्यों को अपनी वित्तीय स्थिरता बनाए रखनी है, तो सब्सिडी नीति में सुधार करना होगा। सबसे पहले, राज्यों को अपनी वित्तीय क्षमता के अनुसार सब्सिडी का विस्तार करना चाहिए। ओडिशा और उत्तर प्रदेश ने सीमित सब्सिडी देकर वित्तीय अनुशासन बनाए रखा है, जबकि पंजाब और आंध्र प्रदेश अत्यधिक खर्च के कारण घाटे में डूबे हुए हैं।
दूसरा, बिजली क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता है। बकाया बिजली सब्सिडी को सार्वजनिक ऋण में बदलने की प्रवृत्ति को रोकना जरूरी है। इससे बिजली वितरण कंपनियों की वित्तीय स्थिति भी सुधरेगी और सरकारों का वित्तीय बोझ भी कम होगा।
तीसरा, सब्सिडी वितरण में पारदर्शिता और लक्ष्य आधारित रणनीति अपनाने की जरूरत है। TTTE (Targeting, Transparency, Timelines, Evaluation) सिद्धांत के आधार पर सब्सिडी योजनाओं को डिजाइन किया जाना चाहिए। बिना सोचे-समझे लागू की गई योजनाएं वित्तीय संकट को और गहरा कर सकती हैं।
भारतीय राज्यों पर सब्सिडी का बढ़ता बोझ एक गंभीर वित्तीय चुनौती बनता जा रहा है। राज्य सरकारों को अपनी नीतियों में सुधार करना होगा ताकि वे वित्तीय संतुलन बनाए रखते हुए कमजोर वर्गों की सहायता कर सकें। इसके लिए सटीक लक्ष्य निर्धारण, पारदर्शिता और समयबद्ध मूल्यांकन आवश्यक है। अगर जल्द सुधार नहीं किए गए, तो आने वाले वर्षों में ये राज्य विकास परियोजनाओं के लिए धन की कमी से जूझ सकते हैं और वित्तीय संकट और बढ़ सकता है।