जनसंख्या की रफ्तार से तेज सुसाइड दर, गिरफ्त में क्यों आ रहे हैं भारतीय छात्र
छात्रों में आत्महत्या की दर में इजाफा जनसंख्या वृद्धि की दर से भी अधिक है। यह सिर्फ आंकड़े लग सकते हैं। लेकिन इसके असर को सोच कर परेशान होना लाजिमी है।
Students Suicide: पढ़ाई लिखाई के दौरान तनाव का होना स्वाभाविक है। लेकिन इसकी वजह से सुसाइड के मामले कम सुनने को मिलते थे। लेकिन एक रिपोर्ट ने चिंता बढ़ा दी है। भारत में छात्र आत्महत्या की घटनाएं हर साल खतरनाक दर से बढ़ी हैं, जो जनसंख्या वृद्धि दर और समग्र आत्महत्या प्रवृत्तियों से भी अधिक है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के आधार पर छात्र आत्महत्या: भारत में महामारी रिपोर्ट को वार्षिक आईसी3 सम्मेलन और एक्सपो 2024 में लॉन्च की गई। रिपोर्ट में बताया गया है कि जहां कुल आत्महत्या की संख्या में सालाना 2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है वहीं छात्र आत्महत्या के मामलों में 4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि छात्र आत्महत्या के मामलों की कम रिपोर्टिंग की संभावना है।
20 वर्षों में 4 फीसद की बढ़ोतरी
महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश - सबसे अधिक छात्र आत्महत्याए रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश को सबसे अधिक छात्र आत्महत्याओं वाले राज्यों के रूप में पहचाना जाता है, जो कुल राष्ट्रीय संख्या का एक तिहाई है। दक्षिणी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश सामूहिक रूप से इन मामलों में 29 प्रतिशत का योगदान देते हैं, जबकि राजस्थान, जो अपने उच्च-दांव वाले शैक्षणिक वातावरण के लिए जाना जाता है।10वें स्थान पर है जो कोटा जैसे कोचिंग हब से जुड़े तीव्र दबाव को उजागर करता है। एनसीआरबी द्वारा डेटा पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर पर आधारित है।
क्या कहते हैं छात्र
इस रिपोर्ट के बाद हमने ग्रेटर नोएडा वेस्ट के स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र और छात्राओं से बात की। नाम न लिखने की शर्त पर छात्रों ने कहा कि इसमें कोई दो मत नहीं कि पढ़ाई लिखाई का दबाव बढ़ा है। जिस तरह से तरक्की हो रही है उसमें पैरेंट्स का दबाव छात्रों पर अधिक रहता है। खासतौर से 11वीं 12वीं में पढ़ने वाले छात्रों से उम्मीद कुछ अधिक ही बढ़ जाती है। घर में पैरेंट्स अक्सर इस बात को कहते हैं कि ये दो साल महत्वपूर्ण हैं इसमें ही सब कुछ करना है। छात्रों का अपना सपना और चुनौती दोनों है। जब उन्हें लगता है कि वो अपने सपने से दूर होते जा रहे हैं तो निराशा घर कर जाती है और उसका अंतिम नतीजा भयावह हो जाता है। तकनीक की दुनिया में ज्यादा से ज्यादा समय मोबाइल फोन पर बीत रहा है और उसकी वजह से सामाजिक संबंध नहीं बन पा रहे हैं और नतीजा आप देख रहे हैं।