सुप्रीम कोर्ट ने पुराना आदेश किया रद्द, 20,000 करोड़ की परियोजनाओं को मिली राहत
public projects: मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने दो–एक के बहुमत से मई का फैसला बदल दिया।
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को बड़ी राहत देते हुए अपना 16 मई का पुराना आदेश वापस ले लिया है। उस आदेश में कोर्ट ने लगभग 20,000 करोड़ रुपये की सार्वजनिक परियोजनाओं को तोड़ने को कहा था, क्योंकि इन प्रोजेक्ट्स को जुर्माना जमा करने के बाद पर्यावरण मंजूरी दी गई थी। स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAIL) और कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई थी कि यह फैसला वापस लिया जाए, क्योंकि अगर आदेश लागू होता,तो कई बड़े और ज़रूरी प्रोजेक्ट्स रोकने या गिराने पड़ते।
2-1 के बहुमत से फैसला बदला
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने दो–एक के बहुमत से मई का फैसला बदल दिया। सीजेआई गवई ने कहा कि अगर पुराना आदेश लागू रहता तो ओडिशा में बन रहा AIIMS, कर्नाटक का ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट और कई बड़े सरकारी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को ध्वस्त करना पड़ता, जबकि इनमें पहले ही जनता के हजारों करोड़ रुपये लग चुके हैं। ऐसे प्रोजेक्ट्स को तोड़ने से भारी आर्थिक नुकसान और बड़े स्तर पर प्रदूषण दोनों का खतरा था।
मई के आदेश में विरोधाभास था
मुख्य न्यायाधीश गवई ने बताया कि मई के फैसले में कई तरह के विरोधाभास थे। खनन कंपनियों को अनुमति दी गई थी कि वे बाद में मंजूरी लेकर काम जारी रख सकती हैं। लेकिन सार्वजनिक प्रोजेक्ट्स को वही छूट नहीं दी गई। सरकार ने कोर्ट को बताया कि करोड़ों की लागत वाले कई प्रोजेक्ट्स सिर्फ अंतिम मंजूरी के इंतज़ार में रुके हैं। अगर उन्हें सिर्फ इसलिए गिरा दिया जाए कि मंजूरी बाद में मिली तो यह जनहित के खिलाफ होगा।
जस्टिस उज्ज्वल भुइयां फैसले से असहमत
तीन जजों में से जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने बहुमत के फैसले से असहमति जताई। उनका कहना था कि पर्यावरण कानून का आधार “सावधानी सिद्धांत” है। इसे नज़रअंदाज़ करना ठीक नहीं है। समीक्षा का यह फैसला पर्यावरण न्यायशास्त्र के लिए एक कदम पीछे ले जाने जैसा है।