PMLA को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पूछे ED से कड़े सवाल, 'क्या हम इतने कठोर हो सकते हैं?'

सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से पूछा कि क्या मनी लॉन्ड्रिंग जांच के दौरान जब्त किए गए दस्तावेजों को आरोपी को देने से इनकार करना जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है.

Update: 2024-09-04 13:39 GMT

Supreme Court on ED: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ईडी से कड़े सवाल पूछे. कोर्ट ने पूछा कि क्या एजेंसी द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग जांच के दौरान जब्त किए गए दस्तावेजों को आरोपी को देने से इनकार करना जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है. बता दें कि जस्टिस एएस ओका, जस्टिस ए अमानुल्लाह और जस्टिस एजी मसीह की पीठ मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दस्तावेजों की आपूर्ति से संबंधित अपील पर सुनवाई कर रही थी.

साल 2022 सरला गुप्ता बनाम ईडी मामला इस सवाल से संबंधित है कि क्या जांच एजेंसी आरोपी को उन महत्वपूर्ण दस्तावेजों से वंचित कर सकती है, जिन पर वह प्री-ट्रायल चरण में पीएमएलए मामले में भरोसा कर रही है. धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) कई हाई-प्रोफाइल मामलों में सुर्खियों में आया है, जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, झारखंड के उनके समकक्ष हेमंत सोरेन, आप नेता मनीष सिसोदिया और बीआरएस नेता के कविता सहित शीर्ष राजनेताओं को इस कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था.

मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने पूछा कि क्या आरोपी को केवल तकनीकी आधार पर दस्तावेज देने से मना किया जा सकता है. जस्टिस अमानुल्लाह ने पूछा कि सब कुछ पारदर्शी क्यों नहीं हो सकता? ईडी की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने जवाब दिया कि अगर आरोपी को पता है कि दस्तावेज हैं तो वह पूछ सकता है. लेकिन अगर उसे नहीं पता है और उसे सिर्फ अनुमान है तो वह इस पर जांच की मांग नहीं कर सकता. इसके बाद अदालत ने पूछा कि क्या यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं करेगा, जो जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है. इसके अलावा पीएमएलए मामले में आप हजारों दस्तावेज प्राप्त कर सकते हैं. लेकिन आप उनमें से केवल 50 पर भरोसा करते हैं. आरोपी को हर दस्तावेज याद नहीं हो सकता है. फिर वह पूछ सकता है कि मेरे घर से जो भी दस्तावेज बरामद हुए हैं.

सरकारी वकील ने कहा कि आरोपी के पास दस्तावेजों की एक सूची है और जब तक यह "आवश्यक" और "वांछनीय" न हो, तब तक वह उन्हें नहीं मांग सकता. पीठ ने कहा कि आधुनिक समय में, मान लीजिए कि वह हजारों पृष्ठों के दस्तावेजों के लिए आवेदन करता है. यह मिनटों का मामला है, जिसे आसानी से स्कैन किया जा सकता है. जस्टिस ओका ने कहा कि "समय बदल रहा है". हम और दूसरी तरफ के अधिवक्ता, दोनों का उद्देश्य न्याय करना है. क्या हम इतने कठोर हो जाएंगे कि व्यक्ति अभियोजन का सामना कर रहा है. लेकिन हम जाकर कहते हैं कि दस्तावेज सुरक्षित हैं? क्या यह न्याय होगा? ऐसे जघन्य मामले हैं जिनमें जमानत दी जाती है. लेकिन आजकल मजिस्ट्रेट के मामलों में लोगों को जमानत नहीं मिल रही है. समय बदल रहा है. क्या हम इस पीठ के रूप में इतने कठोर हो सकते हैं?

अदालत ने कहा कि अगर कोई अभियुक्त जमानत या मामले को खारिज करने के लिए दस्तावेजों पर निर्भर करता है तो उसे दस्तावेज मांगने का अधिकार है. राजू ने इसका विरोध किया. "नहीं, ऐसा कोई अधिकार नहीं है. वह अदालत से इस पर गौर करने का अनुरोध कर सकता है. मान लीजिए कि ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है और यह स्पष्ट रूप से दोषसिद्धि का मामला है और वह केवल मुकदमे में देरी करना चाहता है, तो यह अधिकार नहीं हो सकता. अदालत ने मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया है.

बता दें कि कई हाई-प्रोफाइल विपक्षी नेताओं को भ्रष्टाचार विरोधी कानून के तहत केंद्रीय एजेंसियों द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद पीएमएलए बार-बार जांच के दायरे में आया है. पिछले महीने मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कथित सहयोगी प्रेम प्रकाश को जमानत देते हुए अदालत ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) में भी मनीष सिसोदिया के फैसले पर भरोसा करते हुए हमने कहा है कि जमानत एक नियम है और जेल अपवाद है.

पीठ ने पीएमएलए की धारा 45 का हवाला दिया जिसमें जमानत के लिए दो शर्तें बताई गई हैं. पहली नज़र में यह संतुष्टि होनी चाहिए कि आरोपी ने कोई अपराध नहीं किया है और जमानत पर रहते हुए उसके कोई अपराध करने की आशंका नहीं है. अदालत ने कहा कि धारा 45 में सिर्फ़ इतना कहा गया है कि जमानत के लिए शर्तें पूरी होनी चाहिए. व्यक्ति की स्वतंत्रता हमेशा नियम होती है और कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के तहत वंचना अपवाद. दोहरी जांच इस सिद्धांत को खत्म नहीं करती है.

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