कोटा में से कोटा पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का किया स्वागत

तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक ने इस 'ऐतिहासिक' फैसले का स्वागत किया. तमिलनाडू के मुख्यमंत्री स्टालिन ने याद दिलाया कि उन्होंने अरुंथथियार समुदाय को 3 प्रतिशत आंतरिक आवंटन देने के लिए विधानसभा में एक मसौदा कानून पेश किया और पारित किया था

Update: 2024-08-01 14:48 GMT

Quota within Quota: तमिलनाडु, तेलंगाना और कर्नाटक ने गुरुवार (1 अगस्त) को सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का स्वागत किया है, जिसमें राज्यों को वंचित जातियों के उत्थान के लिए आरक्षित वर्ग में कोटा देने के लिए दलितों और जनजातियों का उप-वर्गीकरण करने की अनुमति दी गई है.

मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत से फैसला दिया कि राज्यों द्वारा अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आगे उप-वर्गीकरण की अनुमति दी जा सकती है, ताकि इन समूहों में अधिक पिछड़ी जातियों को कोटा प्रदान करना सुनिश्चित किया जा सके.

स्टालिन ने फैसले की सराहना की
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि ये फैसला “उत्पीड़ित लोगों की सामाजिक मुक्ति स्थापित करने के लिए हमारी द्रविड़ मॉडल यात्रा की एक और मान्यता है”.
उन्होंने याद दिलाया कि उन्होंने विधानसभा में एक मसौदा कानून पेश किया था और उसे पारित किया था, जिसके तहत अरुणथथियार समुदाय को 3 प्रतिशत आंतरिक आवंटन दिया जाना था.
उन्होंने कहा, ‘‘ये खुशी की बात है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिनियम को बरकरार रखा है.’’

तेलंगाना ने फैसले का समर्थन किया
तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी ने भी फैसले का स्वागत किया और विधानसभा को बताया कि ये तेलंगाना सरकार ही थी, जिसने उप-वर्गीकरण के लिए सर्वोच्च न्यायालय में मजबूती से दलील दी थी.
उन्होंने कहा, "मैं संविधान पीठ को तहे दिल से धन्यवाद देता हूं. राज्य सरकार की ओर से मैं बयान दे रहा हूं कि तेलंगाना उप-वर्गीकरण लागू करने वाला पहला राज्य होगा."
उन्होंने कहा कि उनकी सरकार मौजूदा नौकरी अधिसूचनाओं में भी उप-वर्गीकरण लागू करने के लिए अध्यादेश ला सकती है.

बीआरएस भी समर्थन में आगे आई
भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के नेता केटी रामा राव ने कहा कि उनकी पार्टी भी अदालत के फैसले का स्वागत करती है. उन्होंने कहा कि बीआरएस ने हमेशा उप-वर्गीकरण के लिए ईमानदारी से काम किया है, जबकि अन्य राजनीतिक दल वोट बैंक की राजनीति में लिप्त रहे हैं.
रामा राव ने कहा, "हम मांग करते हैं कि राज्य सरकार तुरंत उप-वर्गीकरण लागू करे. (बीआरएस) इसका समर्थन करेगी."

कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने 'ऐतिहासिक' फैसले की सराहना की
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने व्यक्तिगत तौर पर इस फैसले को "ऐतिहासिक" बताया. उन्होंने लिखा, "अनुसूचित जातियों में सबसे पिछड़े वर्गों की पहचान करने और उनके लिए आंतरिक आरक्षण प्रदान करने के राज्य सरकारों के अधिकार को बरकरार रखने का सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय ऐतिहासिक है. मैं इस निर्णय का तहे दिल से स्वागत करता हूं."
"सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से आंतरिक आरक्षण के क्रियान्वयन में एक बड़ी बाधा दूर हो गई है. हम फैसले के विवादास्पद पहलुओं, जिसमें क्रीमी लेयर का मुद्दा भी शामिल है, के बारे में अनुसूचित जाति के नेताओं और कानूनी विशेषज्ञों से परामर्श करेंगे और उचित कार्रवाई करेंगे."
"कांग्रेस पार्टी अनुसूचित जातियों के भीतर आंतरिक आरक्षण प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है. हमारी सरकार न्यायमूर्ति एजे सदाशिव की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसे कांग्रेस पार्टी ने बनाया था, जैसा कि हमारे पिछले विधानसभा चुनाव घोषणापत्र में वादा किया गया था."

2004 का फैसला खारिज
हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय के बहुमत वाले फैसले में ये स्पष्ट कर दिया गया कि उप-वर्गीकरण का आधार "राज्यों द्वारा मात्रात्मक और प्रदर्शन योग्य आंकड़ों द्वारा उचित ठहराया जाना चाहिए, जो अपनी मर्जी से काम नहीं कर सकते."
ईवी चिन्नैया मामले में पांच न्यायाधीशों की पीठ के 2004 के फैसले को खारिज करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्य अक्सर उनके सामने आने वाले प्रणालीगत भेदभाव के कारण उन्नति की सीढ़ी पर चढ़ने में असमर्थ होते हैं.
2004 के फैसले में कहा गया था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समरूप समूह हैं, इसलिए राज्य इन समूहों में अधिक वंचित और कमजोर जातियों को कोटा देने के लिए उन्हें उप-वर्गीकृत नहीं कर सकते.


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