एससी-एसटी एक्ट तभी लागू होगा जब अपमानित करने की मंशा हो: सुप्रीम कोर्ट

न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने यूट्यूबर शजन स्कारिया को अग्रिम जमानत देते हुए यह टिप्पणी की, जो वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर "मरुनादन मलयाली" चैनल चलाते हैं.

Update: 2024-08-23 15:43 GMT

SC-ST Atrocity Act: सर्वोच्च न्यायलय ने शुक्रवार को कहा कि अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत अपराध केवल इस आधार पर स्थापित नहीं हो जाता कि शिकायतकर्ता अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति समुदाय का सदस्य है, जब तक कि अपमानित करने का इरादा न हो.

न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने यूट्यूबर शजन स्कारिया को अग्रिम जमानत देते हुए ये टिप्पणी की, जो वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर "मरुनादन मलयाली" चैनल चलाते हैं. स्कारिया ने विधायक पी.वी. श्रीनिजिन द्वारा उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले में केरल उच्च न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत देने से इनकार करने को चुनौती दी थी.

विधायक ने यूटूबर के खिलाफ दर्ज कराई थी एफआईआर
श्रीनिजिन ने स्कारिया के खिलाफ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने "मरुनादन मलयाली" पर अपलोड किए गए एक वीडियो के माध्यम से झूठे आरोप लगाकर जानबूझकर विधायक को अपमानित किया था. अदालत ने कहा कि केवल इस तथ्य से कि अपमानित या धमकी दिया गया व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से है, अधिनियम की धारा 3(1)(आर) के तहत अपराध नहीं माना जाएगा, जब तक कि आरोपी का इरादा संबंधित व्यक्ति को जाति-आधारित अपमानित करने का न हो.
"इस प्रकार, जैसा कि पूर्वोक्त कथन है कि अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(आर) के अंतर्गत अपराध केवल इस तथ्य पर स्थापित नहीं होता कि शिकायतकर्ता अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है, जब तक कि ऐसे सदस्य को इस कारण अपमानित करने का इरादा न हो कि वह ऐसे समुदाय से संबंधित है.

सिर्फ अनुसूचित जाति या जनजाति से होने मात्र से एससी -एसटी एक्ट लागू नहीं होता 
पीठ ने कहा, "दूसरे शब्दों में, ये अधिनियम, 1989 का आशय नहीं है कि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य न होने वाले किसी व्यक्ति द्वारा अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित किसी व्यक्ति को जानबूझकर अपमानित करने या डराने-धमकाने का प्रत्येक कार्य, अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(आर) के तहत आएगा, केवल इसलिए कि यह किसी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ किया गया है जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है."
शीर्ष अदालत ने कहा कि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति समुदाय के किसी सदस्य का जानबूझकर किया गया अपमान या धमकी का परिणाम जाति-आधारित अपमान की भावना नहीं होगा.
पीठ ने कहा, "केवल उन मामलों में जानबूझकर अपमान या धमकी दी जाती है, जो या तो अस्पृश्यता की प्रचलित प्रथा के कारण होती है या ऐतिहासिक रूप से स्थापित विचारों जैसे 'उच्च जातियों' की 'निचली जातियों ' पर श्रेष्ठता, 'पवित्रता' और 'अपवित्रता' आदि की धारणाओं को मजबूत करने के लिए होती है, इसे अधिनियम, 1989 द्वारा परिकल्पित प्रकार का अपमान या धमकी कहा जा सकता है."
मामले का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा कि निंदनीय आचरण और दिए गए अपमानजनक बयानों की प्रकृति को देखते हुए, स्कारिया के बारे में प्रथम दृष्टया ये कहा जा सकता है कि उन्होंने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 500 के तहत दंडनीय मानहानि का अपराध किया है.

पीठ ने कहा, "यदि ऐसा है, तो शिकायतकर्ता के लिए अपीलकर्ता के विरुद्ध मुकदमा चलाना हमेशा खुला है. हालांकि, शिकायतकर्ता केवल इस आधार पर अधिनियम, 1989 के प्रावधानों का आह्वान नहीं कर सकता कि वो अनुसूचित जाति का सदस्य है, और भी अधिक तब, जब वीडियो की प्रतिलिपि और शिकायत को संयुक्त रूप से पढ़ने पर प्रथम दृष्टया ये पता नहीं चलता कि अपीलकर्ता के कार्य शिकायतकर्ता की जातिगत पहचान से प्रेरित थे." अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह संकेत मिले कि स्कारिया ने यूट्यूब पर वीडियो जारी करके अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के खिलाफ शत्रुता, घृणा या दुर्भावना की भावनाओं को बढ़ावा दिया या बढ़ावा देने का प्रयास किया.
पीठ ने कहा, "इस वीडियो का अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों से कोई लेना-देना नहीं है. उनका निशाना सिर्फ़ शिकायतकर्ता था. धारा 3(1)(यू) के तहत अपराध तभी लागू होगा जब कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के खिलाफ़ समूह के तौर पर दुर्भावना या दुश्मनी को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा हो, न कि व्यक्तिगत तौर पर."

(शीर्षक को छोड़कर, इस कहानी को फेडरल स्टाफ द्वारा संपादित नहीं किया गया है और एक सिंडिकेटेड फीड से स्वतः प्रकाशित किया गया है।) 


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