सुप्रीम कोर्ट के चुनाव आयोग को दिए गए आदेश का कानूनी और राजनीतिक प्रभाव

कांग्रेस द्वारा 'वोट चोरी' अभियान का विस्तार करने के बीच, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 65 लाख हटाए गए मतदाताओं के नाम और उन्हें हटाने का कारण प्रकाशित करने का आदेश दिया; चुनाव आयोग और विपक्ष के लिए इसका क्या मतलब है?;

By :  Neelu Vyas
Update: 2025-08-15 01:36 GMT

Supreme Court On SIR Bihar: सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश में चुनाव आयोग (EC) को निर्देश दिया है कि वह बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) प्रक्रिया के तहत 2025 की मतदाता सूची में मौजूद लेकिन ड्राफ्ट सूची से गायब 65 लाख मतदाताओं के नाम सार्वजनिक करे। इस मामले की अगली सुनवाई 22 अगस्त को होगी।


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‘कैपिटल बीट’ पैनल चर्चा
इस मुद्दे पर ‘कैपिटल बीट’ में एडवोकेट नेहा राठी (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और महुआ मोइत्रा की वकील, SIR केस में), पारदर्शिता कार्यकर्ता अंजली भारद्वाज और द फेडरल के पॉलिटिकल एडिटर पुनीत निकोलस यादव शामिल हुए। चर्चा का केंद्र कोर्ट का आदेश, उसका कानूनी व प्रक्रिया संबंधी असर और कांग्रेस की तेज होती ‘वोट चोरी’ मुहिम रही।


कोर्ट के आदेश और EC को निर्देश
आदेश के मुताबिक, EC को सभी जिला निर्वाचन अधिकारियों की वेबसाइट पर गायब मतदाताओं की सूची और उनके नाम हटाने के कारण प्रकाशित करने होंगे। यह जानकारी स्थानीय भाषा के अखबारों में, दूरदर्शन व अन्य चैनलों पर और जिला निर्वाचन अधिकारियों के सोशल मीडिया अकाउंट्स पर भी साझा करनी होगी।

इसके अलावा, बूथ-वार सूचियां सभी पंचायत भवनों, ब्लॉक विकास कार्यालयों और पंचायत कार्यालयों के नोटिस बोर्ड पर लगानी होंगी ताकि लोग मैनुअल तरीके से भी देख सकें। प्रभावित लोग अपने आधार कार्ड की कॉपी के साथ दावा पेश कर सकेंगे, क्योंकि कोर्ट ने आधार को इस प्रक्रिया में मान्य पहचान पत्र के रूप में स्वीकार किया है।

नेहा राठी ने इस आदेश को याचिकाकर्ताओं के लिए “महत्वपूर्ण जीत” बताया और कहा कि EC पहले यह दावा कर रहा था कि नाम व कारण प्रकाशित करने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि अगली सुनवाई तक कोर्ट की निगरानी इस मामले में एक अहम सुरक्षा कवच है।


पारदर्शिता और पहुंच पर जोर
अंजली भारद्वाज ने कहा कि कोर्ट ने SIR प्रक्रिया में सूचना के अधिकार के उल्लंघन को मान्यता दी है। नाम और कारण प्रकाशित करने का निर्देश इसीलिए दिया गया है ताकि प्रभावित मतदाता अपनी स्थिति की जांच कर सकें और आवश्यक कार्यवाही कर सकें।

आदेश में यह भी तय किया गया है कि जिनके पास इंटरनेट नहीं है, वे स्थानीय स्तर पर सूची देख सकें। हालांकि ऑनलाइन खोज केवल EPIC नंबर से की जा सकेगी, लेकिन जमीनी स्तर पर फिजिकल सूची भी उपलब्ध होगी।

भारद्वाज ने कहा कि EC ने अतीत में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को अक्सर पूरी तरह लागू नहीं किया, इसलिए इस बार आदेश का सही क्रियान्वयन बेहद जरूरी है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि पारदर्शिता अकेले सभी समस्याएं हल नहीं करेगी, लेकिन मतदाता अधिकारों की रक्षा का यह पहला अहम कदम है।


क्रियान्वयन की चुनौतियां और समयसीमा
पुनीत निकोलस यादव ने कहा कि अब EC को जल्द कार्रवाई करनी होगी, क्योंकि कोर्ट ने सूची प्रकाशित करने की समयसीमा तय की है। EC ने तर्क दिया कि प्रिंटिंग और फॉर्मेटिंग में समय लगेगा, लेकिन उसने स्वीकार किया कि डेटा पहले से मौजूद है और इसे राजनीतिक दलों के बूथ-स्तरीय एजेंटों के साथ साझा किया जा चुका है।

राठी ने कहा कि समयसीमा से बचने का कोई रास्ता नहीं है, क्योंकि डेटा तैयार है और सिर्फ डिजिटाइज करके दिखाना है। हालांकि, उन्होंने और यादव दोनों ने EC की पारदर्शिता संबंधी पहलुओं पर पिछले समय में रही अनिच्छा को लेकर चिंता जताई।


SIR के समय को लेकर चिंता
पैनल ने विपक्ष की इस आपत्ति पर भी चर्चा की कि बिहार चुनाव से कुछ महीने पहले ही SIR कराना उचित नहीं है। यादव ने कहा कि पहले के ऐसे अभ्यास, जैसे 2003 की बिहार रिविजन, काफी पहले कराए गए थे।

भारद्वाज ने मौजूदा SIR को “अभूतपूर्व” बताया और आरोप लगाया कि यह नागरिकों से उनकी नागरिकता साबित करने की मांग कर रहा है और इसकी शुरुआत चुनावी राज्य से कर पूरे देश में की जा रही है। उन्होंने कहा कि EC ने न तो 2003 अभ्यास की गाइडलाइंस दीं और न ही वह “स्वतंत्र मूल्यांकन” दिखाया, जिस पर मौजूदा संशोधन आधारित है।

उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों या नागरिकों से परामर्श न करना जनता के भरोसे को कमजोर करता है और समय व जल्दबाजी को लेकर सवाल खड़े करता है।


कांग्रेस की ‘वोट चोरी’ मुहिम तेज
कानूनी घटनाक्रम के साथ-साथ चर्चा में कांग्रेस के 70 लोकसभा क्षेत्रों में ‘वोट चोरी’ अभियान के विस्तार का मुद्दा भी आया। यादव के अनुसार, यह कदम पार्टी की आंतरिक समीक्षा के बाद उठाया गया है, जिसमें पिछले आम चुनाव में 50,000 से कम वोटों से हारी करीब दो दर्जन सीटें चिन्हित हुई हैं।

इनमें बेंगलुरु सेंट्रल के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र (जहां कांग्रेस 32,707 वोटों से हारी) सहित राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ की सीटें शामिल हैं। कांग्रेस चरणबद्ध तरीके से मतदाता सूची में कथित गड़बड़ियों की जांच करेगी और निष्कर्ष समय-समय पर जारी कर मुद्दे को जीवित रखेगी।

इस अभियान में इंडिया गठबंधन के सहयोगी दल भी शामिल होंगे। उत्तर प्रदेश और राजस्थान को जांच के लिए अहम राज्य माना गया है। विपक्ष का मकसद सिर्फ मतदाता नाम कटने (जैसे SIR केस) ही नहीं, बल्कि मतदाता दमन और फर्जी नाम जोड़ने जैसे मामलों को भी उजागर करना है।


बिहार में ‘वोटर अधिकार यात्रा’
यादव ने बताया कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव 17 अगस्त को बिहार में ‘वोटर अधिकार यात्रा’ शुरू करेंगे। यह 13 दिन की, 1,300 किलोमीटर लंबी यात्रा होगी, जो SIR प्रक्रिया, कथित चुनावी गड़बड़ियों और मतदाता अधिकारों पर जागरूकता बढ़ाने पर केंद्रित होगी।

यह यात्रा कांग्रेस की उस बड़ी रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत पार्टी बिहार चुनाव से पहले चुनावी ईमानदारी के मुद्दे को सार्वजनिक बहस में बनाए रखना चाहती है। पार्टी इस अभियान को मताधिकार से वंचित करने के खिलाफ लड़ाई के रूप में पेश करेगी और स्थानीय शिकायतों को चुनाव आयोग के कामकाज पर राष्ट्रीय बहस से जोड़ेगी।


(उपर्युक्त सामग्री को एक परिष्कृत AI मॉडल का उपयोग करके वीडियो से लिप्यंतरित किया गया है। सटीकता, गुणवत्ता और संपादकीय अखंडता सुनिश्चित करने के लिए, हम ह्यूमन-इन-द-लूप (HITL) प्रक्रिया का उपयोग करते हैं। जबकि AI प्रारंभिक मसौदा तैयार करने में सहायता करता है, हमारी अनुभवी संपादकीय टीम प्रकाशन से पहले सामग्री की सावधानीपूर्वक समीक्षा, संपादन और परिशोधन करती है। द फेडरल में, हम विश्वसनीय और व्यावहारिक पत्रकारिता प्रदान करने के लिए AI की दक्षता को मानव संपादकों की विशेषज्ञता के साथ जोड़ते हैं।)


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