आखिर क्या है CCS, घटक दलों के दबाव में नहीं आयी बीजेपी

कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी को लेकर बीजेपी से अपने घटक दलों को साफ कर दिया था कि इस विषय पर कोई समझौता नहीं होगा.

By :  Lalit Rai
Update: 2024-06-09 10:13 GMT

Cabinet Committee on Security: नरेंद्र मोदी तीसरी बार देश की कमान संभालने जा रहे हैं. रविवार शाम 7.15 बजे वो पीएम पद की शपथ लेंगे. जिन मंत्रियों को शपथ लेनी है उनके साथ हो सुबह टी पार्टी पर रूबरू हुए और पांच साल का रोडमैप रखा. उन्होंने कहा कि सरकार का मतलब सिर्फ सत्ता का भोग नहीं है बल्कि आमजन के लिए हम क्या कर पाते हैं वो हमारा लक्ष्य होना चाहिए. इन सबके बीच आपने कुछ दिनों से रक्षा मंत्रालय के साथ कुछ अहम विभागों की चर्चा घटक दलों के जरिए सुनी होगी उनमें से एक ही सीसीएस यानी कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी. बीजेपी ने साफ कर दिया कि सीसीएस पर किसी तरह की बात नहीं होगी. यानी सीसीएस में बीजेपी के ही मंत्री रहेंगे. ऐसे में आप को लग रहा होगा कि भला यह क्या है जिसे लेकर घटक दलों की भी चाहत थी.

क्या होता है सीसीएस
सबसे पहले आप सीसीएस को समझिए. यह सुरक्षा के विषयों पर फैसला करने वाली देश की सर्वोच्च ईकाई होती है. इसके अध्यक्ष खुद पीएम होते हैं और गृहमंत्री, वित्त मंत्री, रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री इसके सदस्य होते हैं. देश की सुरक्षा को लेकर कोई भी अंतिम फैसला सीसीएस ही करती है, इसके अलावा आंतरिक सुरक्षा के विषय में भी कोई निर्णायक फैसला सीसीएस ही लेता है. इसके अलावा अगर फॉ़रेन अफेयर यानी विदेशी मामलों के संबंध में किसी निर्णय से होने वाले लाभ-हानि का मुल्यांकन सीसीएस करती है और उचित निर्णय देश के लिए करती है. इसके अलावा महत्वपूर्ण राजनीतिक विषयों के साथ साथ परमाणु एनर्जी से संबंधित विषयों पर भी अंतिम फैसला सीसीएस का ही होता है. यही नहीं देश का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार कौन होगा इसके बारे में भी फैसला सीसीएस में ही होता है. रक्षा उत्पादन और डीआरडीओ के सिलसिल में एक हजार करोड़ से अधिक पू्ंजीगत खर्च वाले केस में भी सीसीएस का फैसला अंतिम होता है.

क्यों नहीं झुकी बीजेपी
बता दें कि जेडीयू और टीडीपी दोनों की तरफ से यह चाहत थी कि सीसीएस से जुड़े कुछ मंत्रालय उनके खाते में जाएं. लेकिन बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं थी. अब हम आपको बताएंगे कि बीजेपी ऐसा क्यों नहीं चाहती है, आपको याद होगा कि चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी के नेता कहा करते थे कि तीसरे टर्म में हम कुछ बड़े फैसले करने वाले हैं. लेकिन नतीजों के बाद बीजेपी की निर्भरता सहयोगी दलों पर बढ़ गई है. ऐसे में सीसीएस में अगर सहयोगी दल आते हैं तो जाहिर सी बात है कि निर्णय लेने में दिक्कत आती. सीसीएस की कोई बात सार्वजनिक होने पर सरकार की किरकिरी भी होती. ऐसे में बीजेपी ने पहले से मन बना लिया कि इस विषय पर कोई बात नहीं होनी है. अगर सीसीएस के सारे सदस्य बीजेपी से आएंगे तो नरेंद्र मोदी को निर्णायक फैसले लेने में दिक्कत नहीं आएगी. 

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