मीठे का चस्का बना रहा बूढ़ा, आर्टिफिशियल शुगर और ब्रेन एजिंग कनेक्शन
दुनिया भर में करोड़ों लोग चीनी की जगह स्वीटनर लेते हैं, खासकर डायबिटीज़ वाले लोग। FDA ने भी कई आर्टिफ़िशियल स्वीटनर को सुरक्षित बताया। लेकिन ब्रेन एजिंग से...
चीनी को हेल्थ के लिए खतरनाक मानकर हमने अपनी चाय-कॉफी, जूस और केक-बिस्किट में जिस आर्टिफ़िशियल स्वीटनर को डालना शुरू किया… वही आज दिमाग की उम्र को तेजी से बढ़ाने के शक के घेरे में है। हैरत की बात यह है कि ये स्वीटनर वही नाम हैं, जो हेल्थ-कॉन्शियस लोग प्रतिदिन उपयोग करते हैं। जैसे- एस्पार्टेम, सैकरीन, एरिथ्रिटॉल, ज़ाइलिटॉल, स्टीविया, मॉन्क फ्रूट आदि। लेकिन अब विज्ञान एक नया सवाल खड़ा कर रहा है कि क्या कम कैलोरी और ब्लड शुगर को कंट्रोल करने के नाम पर हम अनजाने में अपने दिमाग को नुकसान पहुंचा रहे हैं?
चीनी की जगह स्वीटनर्स कितने सही?
दुनिया भर में करोड़ों लोग चीनी की जगह स्वीटनर लेते हैं, खासकर डायबिटीज़ वाले लोग। FDA ने भी कई आर्टिफ़िशियल स्वीटनर को सुरक्षित बताया। इसी कारण डॉक्टर भी डायबिटीज़ में चीनी की जगह इन्हें लेने की सलाह देते रहे हैं। क्योंकि ये ब्लड शुगर तेजी से नहीं बढ़ाते। पर कहानी यहीं खत्म नहीं होती। क्योंकि हाल में Neurology मेडिकल जर्नल में छपी एक स्टडी ने पूरी दुनिया में चिंता बढ़ा दी। इस शोध में पाया गया कि एस्पार्टेम, सैकरीन, एसेसल्फ़ेम-K, एरिथ्रिटॉल, ज़ाइलिटॉल और सॉर्बिटॉल का नियमित सेवन मेमोरी और सोचने-समझने की क्षमता में उतनी ही गिरावट लाता है, जितनी 1.6 साल की दिमागी उम्र बढ़ने पर होती है। अर्थात दिमाग तेज़ रखने के लिए हम जो हेल्दी चॉइस समझ रहे थे, वो धीरे-धीरे दिमाग की उम्र बढ़ा रही है।
विस्तार से समझें शोध
चीनी को हानिकारक समझकर जब हमने चाय और कॉफी में, स्मूदी और डेज़र्ट में आर्टिफिशियल स्वीटनर डालना शुरू किया तो हमें लगा कि यह शरीर के लिए बेहतर है और ब्लड शुगर को नियंत्रण में रखेगा। लेकिन विज्ञान अब एक नया द्वार खोल रहा है, और उस द्वार के पीछे खड़ा सच उतना मीठा नहीं है, जितना हम सोचते थे। एस्पार्टेम, सैकरीन, एरिथ्रिटॉल, ज़ाइलिटॉल, स्टीविया और मॉन्क फ्रूट जैसे स्वीटनर दुनिया भर में करोड़ों लोग रोजाना ले रहे हैं, खासकर वो लोग जिन्हें डायबिटीज़ है। डॉक्टर्स, हेल्थ एक्सपर्ट और यहां तक कि मेडिकल संस्थाएं भी वर्षों से कहती रही हैं कि ये स्वीटनर चीनी की सुरक्षित जगह ले सकते हैं। लेकिन अब वही रसायन जिन पर हम भरोसा कर रहे थे, हमारे दिमाग के लिए खतरे की घंटी बजा रहे हैं।
एफडीए (FDA) ने कई आर्टिफिशियल स्वीटनर को सुरक्षित घोषित किया था और इसी वजह से इन्हें खाने पीने की चीज़ों में इस्तेमाल करना आम हो गया। डायबिटीज़ के मरीजों में ब्लड शुगर को अचानक बढ़ने से बचाने के लिए भी इन्हें बेहतर विकल्प के रूप में सुझाया गया। लेकिन हाल के वर्षों में हुए शोध और Neurology मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन ने पहली बार यह स्पष्ट चेतावनी दी कि आर्टिफिशियल स्वीटनर का नियमित उपयोग दिमाग पर ऐसा प्रभाव डाल सकता है, जैसे उसकी उम्र लगभग 1.6 वर्ष अधिक हो गई हो।
इस अध्ययन में पाया गया कि एस्पार्टेम, सैकरीन, एसेसल्फेम K, एरिथ्रिटॉल, ज़ाइलिटॉल और सॉर्बिटॉल का सेवन मेमोरी और सोचने समझने की क्षमता यानी कॉग्निटिव फंक्शन पर गिरावट से जुड़ा हुआ है। दूसरे शब्दों में हम मीठे का एक सुरक्षित विकल्प समझकर जिस चीज़ को रोजाना ले रहे हैं, वह दिमाग की उम्र बढ़ाकर उसे धीरे धीरे सुस्त, भुलक्कड़ और कम तेज़ बना सकती है।
आर्टिफिशियल स्वीटनर्स का ब्रेन पर प्रभाव
यह रिसर्च केवल डर नहीं पैदा करती बल्कि चेताती भी है और वजह भी बताती है। इस अध्ययन की प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर क्लाउडिया सुवेमोटो जो ब्राज़ील के यूनिवर्सिटी ऑफ़ साओ पाउलो मेडिकल स्कूल में जेरियाट्रिक्स की डॉक्टर और डिमेंशिया व ब्रेन एजिंग पर रिसर्च करने वाली वैज्ञानिक हैं, उन्होंने एक मीडिया इंटरव्यू में बताया कि स्वीटनर का प्रभाव केवल ब्लड शुगर तक सीमित नहीं है...
यह दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर सिस्टम पर असर डाल सकता है।
मस्तिष्क में सूजन की स्थिति पैदा कर सकता है।
मेटाबॉलिज़म में ऐसे बदलाव ला सकता है।
जिससे दीर्घकाल में मस्तिष्क की कोशिकाओं और न्यूरॉन कनेक्शन को कमजोर कर सकते हैं।
अर्थात शरीर के लिए सुरक्षित समझी जाने वाली चीज़ दिमाग पर ऐसे प्रभाव छोड़ सकती है, जिन्हें हम बाहर से महसूस ही नहीं कर पाते और यह खामी धीरे-धीरे पहचान, निर्णय लेने की क्षमता, सीखने की तेजी और याददाश्त तक को प्रभावित कर सकती है।
क्या बंद कर दें स्वीटनर्स?
अब प्रश्न यह उठता है कि तो क्या हमें स्वीटनर्स लेने बंद कर देने चाहिए या इनका उपयोग करते रहना चाहिए? रिसर्चर इस समय एक महत्वपूर्ण बात पर जोर दे रहे हैं कि घबराना समाधान नहीं है। लेकिन आंख बंद करके रोजाना स्वीटनर लेना भी दिमाग के लिए अच्छा नहीं हो सकता।
मधुमेह वाले लोगों के लिए स्वीटनर चीनी की तुलना में बेहतर विकल्प हैं, लेकिन इन्हें दिनचर्या का स्थायी हिस्सा बना लेना कितना सुरक्षित है, इस पर विज्ञान अभी गंभीर जांच कर रहा है। मीठा, चाहे प्राकृतिक हो या कृत्रिम, दिमाग को लंबे समय में कीमत चुकाने पर मजबूर कर सकता है और इसलिए सबसे सुरक्षित रास्ता हमेशा से वही है जो जीवन को संतुलन में रखता है। यानी कम मीठा, प्राकृतिक स्वाद और भोजन के साथ स्वस्थ संबंध।
हम सभी चाहते हैं कि हमारा मस्तिष्क जीवनभर सही से काम करे, हमें बातें याद रहें, सोच साफ हो और उम्र बढ़ने के बाद भी मानसिक क्षमता नई रहे। ऐसे में शायद अब उन विकल्पों को दोबारा परखने का समय है, जिन्हें हमने अपनी सेहत के लिए अच्छा समझ लिया था। क्योंकि कभी-कभी कम मीठा ही जीवन में अधिक मिठास लाता है।
डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।