क्यों होती है पेट फूलने की समस्या, युवाओं में क्यों बढ़ रही ये बीमारी?
ब्लोटिंग ऐसी समस्या है, जिससे युवा बहुत अधिक जूझ रहे हैं। हालांकि महिलाओं में ब्लोटिंग के कारण पुरुषों से थोड़े अलग होते हैं। लेकिन ये महामारी की तरह बढ़ रही है;
Bloating Cause And Solutions: आज के दौर में ब्लोटिंग यानी पेट फूलना या पेट भारी लगना, केवल एक आम समस्या नहीं रही बल्कि धीरे-धीरे यह शहरी युवाओं और खासतौर पर प्रफेशनल्स के बीच एक साइलेंट महामारी का रूप ले चुकी है। ऑफिस में लंबे घंटे बैठकर काम करना, देर रात तक स्क्रीन टाइम, अनियमित खानपान और तनाव ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है। पहले इसे सिर्फ महिलाओं की समस्या माना जाता था, लेकिन अब आंकड़े बताते हैं कि पुरुष भी उतनी ही तेजी से ब्लोटिंग की चपेट में आ रहे हैं।
ब्लोटिंग के पीछे छिपे असली कारण
ब्लोटिंग को अक्सर लोग केवल गट हेल्थ या बदहजमी से जोड़कर देखते हैं, जबकि हकीकत इससे कहीं ज्यादा जटिल है। साथ ही इसका असर काफी व्यापक होता है...
पाचन और गट माइक्रोबायोम
हमारी आंतों में मौजूद गट माइक्रोबायोम का सीधा असर पाचन पर पड़ता है। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की एक रिसर्च के अनुसार, जिन लोगों की आंतों में अच्छे बैक्टीरिया की संख्या कम होती है, उन्हें पेट फूलने, गैस और क्रॉनिक ब्लोटिंग की समस्या ज्यादा होती है।
तनाव और मानसिक स्वास्थ्य
अमेरिकन गैस्ट्रोएंटरोलॉजिकल एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक, क्रॉनिक स्ट्रेस पाचन को धीमा कर देता है और ब्लोटिंग को ट्रिगर करता है। यही कारण है कि कॉरपोरेट सेक्टर में काम करने वाले 45% प्रोफेशनल्स इस समस्या की शिकायत करते हैं।
लैक्टोज और ग्लूटेन इनटॉलरेंस
कई बार लोगों को पता ही नहीं चलता कि उन्हें लैक्टोज इनटॉलरेंस या ग्लूटेन सेंसिटिविटी है। इससे दूध, ब्रेड, पिज्जा, पास्ता या डेली प्रोडक्ट्स खाने के बाद ब्लोटिंग और पेट दर्द की समस्या बार-बार होने लगती है।
हार्मोनल बदलाव और महिलाओं में ब्लोटिंग
महिलाओं में मेनस्ट्रुअल साइकिल के दौरान एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का उतार-चढ़ाव ब्लोटिंग को और बढ़ा देता है। जर्नल ऑफ वूमेन्स हेल्थ की एक रिपोर्ट बताती है कि 70% महिलाएं पीरियड्स से पहले या दौरान ब्लोटिंग का अनुभव करती हैं।
लाइफस्टाइल फैक्टर्स
ऑफिस में लगातार बैठकर काम करना, बहुत तेजी से खाना खाना, पर्याप्त पानी न पीना, ज्यादा कैफीन लेना या बार-बार पोषण रहित या वसा से भरपूर स्नैक्स खाना, ये सब ब्लोटिंग को बढ़ावा देते हैं।
इनके साथ ही समय पर सोने और जागने का नियम ना होना और बहुत अधिक समय तक तनाव में रहना भी ब्लोटिंग की समस्या को बढ़ाते हैं। क्योंकि इन दोनों ही कारणों के चलते शरीर के अंदर हॉर्मोनल असंतुलन पैदा होता है। जिससे पाचनतंत्र और तंत्रिकातंत्र दोनों की कार्यशैली पर ही नकारात्मक असर पड़ता है।
क्या ब्लोटिंग किसी गंभीर बीमारी का संकेत है?
कभी-कभी ब्लोटिंग सिर्फ लाइफस्टाइल से जुड़ा लक्षण होता है। लेकिन ऐसा हर बार हो यह आवश्यक नहीं है। अगर ब्लोटिंग की समस्या लगातार और गंभीर बनी रहे तो यह कुछ बड़ी बीमारियों का संकेत भी हो सकती है। जैसे...
इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम (IBS)
इंफ्लेमेटरी बॉवेल डिजीज (IBD)
सिलिएक डिजीज
गैस्ट्रिक ट्यूमर या कैंसर का लक्षण (हालांकि यह बहुत रेयर है। लेकिन लगातार ब्लोटिंग को नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है।)
क्या केवल डाइट से कंट्रोल हो सकती है ब्लोटिंग?
ब्लोटिंग को नियंत्रित करने में डाइट का रोल अहम है। लेकिन यह अकेला फैक्टर नहीं है, जिससे ब्लोटिंग से बचा जा सके। उदाहरण के लिए, हाई-प्रोटीन डाइट (जैसे जिम जाने वाले युवाओं में आम है) भी अगर संतुलित न हो तो ब्लोटिंग का कारण बन सकती है। इसके अलावा कार्बोनेटेड ड्रिंक्स, जंक फूड, और ज्यादा नमक का सेवन भी पेट को फुलाता है। बाकी जो कारण ऊपर बताए गए हैं, सोने-जागने, बैठने और चलने से संबंधित, ये भी ब्लोटिंग पर गहरा प्रभाव रखते हैं। इसलिए संतुलित और संयमित जीवनशैली ही ब्लोटिंग से पूरी तरह बचने का उपाय है।
कुछ रिसर्च-प्रूव्ड समाधान इस प्रकार हैं
लो-FODMAP डाइट (IBS पेशेंट्स के लिए कारगर)
प्रीबायोटिक्स और प्रोबायोटिक्स सप्लिमेंट्स (छाछ, दही, पनीर, खमीर से बनी चीजें)
फाइबर का संतुलित सेवन
ध्यान लगाकर खाना और धीरे-धीरे चबाकर खाना
पेट फूलने की समस्या से बचने के लिए प्रभावी उपाय
व्यायाम करना और ज्यादातर समय सक्रिय रहना। क्योंकि लंबे समय तक बैठे रहने से गैस जमा होती है, हल्की वॉक या स्ट्रेचिंग ब्लोटिंग कम करने में बहुत अधिक कारगर होती है।
हाइड्रेशन का ध्यान रखें। पर्याप्त पानी पीने से पाचन बेहतर होता है और गैस बाहर निकलने में आसानी होती है।
स्क्रीन डिटॉक्स और माइंडफुलनेस यानी मोबाइल, लैपटॉप इत्यादि से विराम लें और जो भी काम करें उसे पूरी तरह ध्यान लगाकर करें। इससे तनाव कम करने से न केवल मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है बल्कि ब्लोटिंग भी कम होती है।
टेस्ट कराना जरूरी है। क्योंकि बार-बार ब्लोटिंग होने पर फूड इनटॉलरेंस टेस्ट या गैस्ट्रो चेकअप कराना जरूरी है।
सीधी बात यह है कि
ब्लोटिंग को सिर्फ एक साधारण पेट की समस्या समझकर अनदेखा करना सही नहीं है। लंबे समय में यह जानलेवा भी साबित हो सकता है। यह हमारे पाचन तंत्र, मानसिक स्वास्थ्य और जीवनशैली का आईना है। अगर यह समस्या बार-बार परेशान कर रही है तो समझ लेना चाहिए कि हम अपने शरीर के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं। कुछ ऐसा है, जो हमारी सेहत पर बुरा असर डाल रहा है। इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
क्योंकि इसे समय रहते नियंत्रित न किया गया तो यह क्रॉनिक बीमारी का रूप भी ले सकती है। प्रोफेशनल्स और युवा पीढ़ी को यह समझना होगा कि ब्लोटिंग सिर्फ “गलत खाने” की समस्या नहीं है। बल्कि यह उनकी लाइफस्टाइल, तनाव और हार्मोनल हेल्थ से गहराई से जुड़ी हुई समस्या है।
डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।