इन खामोश लक्षणों के साथ फैलता है ल्यूकेमिया, ये है जानलेवा ब्लड कैंसर

अमेरिका में हर साल लगभग 61,000 नए ल्यूकेमिया केस आते हैं। भारत में भी यह तेजी से बढ़ रहा है, बच्चों में होने वाले कैंसर में ल्यूकेमिया लगभग 30-35% होता है...;

Update: 2025-09-11 11:16 GMT
ल्यूकेमिया के प्रकार, लक्षण और उपचार
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ल्यूकेमिया (Leukemia) एक प्रकार का रक्त कैंसर है। यह हमारी अस्थि-मज्जा (Bone marrow) से शुरू होता है, जहां नए रक्त की (लाल रक्त कणिकाएं, सफेद रक्त कणिकाएं और प्लेटलेट्स) बनते हैं।

ल्यूकेमिया में अस्थि-मज्जा ज़रूरत से ज़्यादा और असामान्य श्वेत रक्त कणिकाएं  (white blood cells) बनाना शुरू कर देती है। ये सेल्स सामान्य रूप से काम नहीं करते और धीरे-धीरे खून और अस्थि-मज्जा में भर जाते हैं। इसका नतीजा ये होता है कि शरीर के अन्य स्वस्थ रक्त कोशिकाएं बनने में रुकावट आ जाती है।

बच्चों में भी हो सकता है ल्यूकेमिया

रक्त और अस्थि मज्जा (bone marrow) में शुरू होता है ल्यूकेमिया, वयस्कों में इसका खतरा अधिक है, वहीं बच्चे भी इससे अछूते नहीं हैं। एक्यूट लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (ALL) बच्चों में सबसे सामान्य प्रकार माना जाता है।

ल्यूकेमिया में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इसके लक्षण अन्य सामान्य बीमारियों जैसे लगते हैं और इनसे काफी मिलते-जुलते होते हैं। जैसे, लगातार थकान रहना, हड्डियों में दर्द होना, बार-बार संक्रमण होना, बिना कारण वजन घटना, आसानी से चोट लगना या खून बहना। अगर ऐसे संकेत लगातार बने रहें तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेना बेहद ज़रूरी है। 


भारत और दुनिया में आंकड़े

ग्लोबल स्तर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, हर साल लगभग 4,74,500 नए ल्यूकेमिया केस दर्ज होते हैं और करीब 3,11,500 मौतें होती हैं। भारत में ल्यूकेमिया के आंकड़ों की बात करें तो  इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के 2022 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल करीब 25,000 से 30,000 नए केस सामने आते हैं। इनमें बच्चों में सबसे ज्यादा ALL (Acute Lymphocytic Leukemia) और वयस्कों में AML (Acute Myeloid Leukemia) के मामले देखे जाते हैं।

विश्व स्तर पर ल्यूकेमिया के मरीजों में सर्वाइवल रेट विकसित देशों में बच्चों के ALL का 5-साल का सर्वाइवल रेट 85-90% तक है, जबकि भारत जैसे देशों में यह औसतन 40-50% ही है। इसका बड़ा कारण है देर से डायग्नोसिस और ट्रीटमेंट तक सीमित पहुंच है। अमेरिकन कैंसर सोसाइटी के अनुसार, हर साल अमेरिका में लगभग 61,000 नए ल्यूकेमिया केस सामने आते हैं। भारत में भी यह कैंसर तेजी से बढ़ रहा है और बच्चों में पाए जाने वाले कैंसर में ल्यूकेमिया का हिस्सा लगभग 30-35% है।


ल्यूकेमिया के प्रकार

ल्यूकेमिया मुख्य रूप से चार बड़े प्रकारों में बांटा जाता है...

तीव्र लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (Acute Lymphoblastic Leukemia (ALL) – यह बच्चों में सबसे कॉमन है।

तीव्र माइलॉयड ल्यूकेमिया (Acute Myeloid Leukemia (AML) – यह ज़्यादातर वयस्कों में पाया जाता है।

क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (Chronic Lymphocytic Leukemia (CLL) – आमतौर पर बुजुर्गों में होता है।

क्रोनिक मिलॉइड ल्यूकेमिया (Chronic Myeloid Leukemia (CML) – यह धीरे-धीरे बढ़ने वाला प्रकार है।


ल्यूकेमिया के लक्षण (Leukemia Symptoms)

जैसा कि प्रारंभ में बताया गया है कि ल्यूकेमिया के लक्षण शुरुआत में साधारण थकान जैसे लग सकते हैं। लेकिन धीरे-धीरे गंभीर हो जाते हैं...

लगातार थकान और कमजोरी

बार-बार संक्रमण होना

हड्डियों और जोड़ों में दर्द

अचानक वजन घटना

बुखार और पसीना आना

लिम्फ नोड्स (गांठें) का बढ़ जाना

असामान्य खून बहना या आसानी से चोट लगना यानी हल्की-सी ठसक या धक्के से चोट लगना।


ल्यूकेमिया के उपचार से जुड़ी बातें

अगर समय सभी सतर्क रहें और समय पर इस बीमारी का पता लग जाए तो इसे पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। क्योंकि अब CAR-T सेल थेरेपी और टार्गेटेड थेरेपी जैसी नई खोजें कैंसर के इलाज में क्रांतिकारी बदलाव ला रही हैं। इनसे कैंसर का केवल इलाज नहीं होता बल्कि इसे पूरी तरह ठीक भी किया जा सकता है।

ल्यूकेमिया के निदान में आमतौर पर ब्लड काउंट, बोन मैरो बायोप्सी, इमेजिंग स्कैन और मॉलिक्यूलर टेस्ट शामिल होते हैं। इन तरीकों के साथ डॉक्टर्स एडवांस्ड टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर सही स्टेजिंग और व्यक्तिगत इलाज सुनिश्चित करते हैं। टार्गेटेड और इम्यूनोथेरेपी और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के व्यापक उपयोग से पेशेंट लंबा और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।

ल्यूकेमिया के इलाज के विकल्पों में कीमोथेरेपी, रेडिएशन, टार्गेटेड थेरेपी, इम्यूनोथेरेपी, स्टेम सेल ट्रांसप्लांट और CAR-T सेल थेरेपी शामिल हैं। वैश्विक स्तर पर, ल्यूकेमिया रक्त कैंसर का एक बड़ा हिस्सा है, जिसके जोखिम कारकों में परिवार का इतिहास, आनुवांशिक विकार, धूम्रपान, रेडिएशन का संपर्क और हानिकारक रसायनों का असर शामिल हैं।


डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहल डॉक्टर से परामर्श करें।

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