भारतीय में रिसर्च 73% सफलता, ब्लड कैंसर के इलाज में जीन थेरेपी से उम्मीद

भारत में हुई रिसर्च में यह बात सामने आई है कि ब्लड कैंसर के मरीजों के इलाज में जीन थेरेपी एक क्रांतिकारी कदम साबित हो सकती है। इसमें 73 प्रतिशत तक सफलता मिली है..;

Update: 2025-03-18 05:32 GMT

Blood Cancer Treatment In India: ब्लड कैंसर के इलाज में जीन थेरेपी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बनकर सामने आई है। हाल ही भारत में किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि जीन थेरेपी 73% मामलों में प्रभावी साबित हुई है। यह शोध दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), टाटा मेमोरियल अस्पताल और अन्य प्रमुख भारतीय चिकित्सा संस्थानों में किया गया। अध्ययन के निष्कर्ष 'द लैंसेट' हेमाटोलॉजी जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं। शोध में मुख्य रूप से ल्यूकेमिया और लिम्फोमा से पीड़ित उन मरीजों को शामिल किया गया था, जिनके लिए पारंपरिक उपचार विफल हो चुके थे...

कैसे काम करती है जीन थेरेपी?

जीन थेरेपी, विशेष रूप से सीएआर-टी (CAR-T) थेरेपी, शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कैंसर से लड़ने के लिए अधिक सक्षम बनाती है। इस उपचार में मरीज की टी-कोशिकाओं (T-Cells) को प्रयोगशाला में जेनेटिक रूप से संशोधित किया जाता है। इन संशोधित कोशिकाओं को दोबारा मरीज के शरीर में डाला जाता है, जिससे वे कैंसर कोशिकाओं को अधिक प्रभावी तरीके से पहचानकर उन्हें नष्ट कर सकें।

टी-कोशिकाएं प्रतिरक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं, लेकिन जब बी-कोशिकाएं कैंसर से संक्रमित हो जाती हैं और इलाज के बाद भी बढ़ती रहती हैं, तो अन्य उपचार असफल हो जाते हैं। ऐसे मामलों में जीन थेरेपी एक नई आशा के रूप में उभरती है। इस थेरेपी का सबसे अधिक फायदा उन मरीजों को होता है जिनके बी-सेल ट्यूमर बार-बार बढ़ते हैं और जिन पर बाकी उपचार काम नहीं करते।

शोध के प्रमुख निष्कर्ष

इस अध्ययन के दौरान पाया गया कि जिन मरीजों को जीन थेरेपी दी गई, उनमें से 73% में यह उपचार सफल साबित हुआ। यह थेरेपी न केवल कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने में कारगर साबित हुई, बल्कि इसकी बदली हुई टी-कोशिकाएं लंबे समय तक शरीर में सक्रिय रह सकती हैं, जिससे मरीजों में बीमारी की पुनरावृत्ति की संभावना भी कम हो जाती है।

भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस शोध ने ब्लड कैंसर के लाखों मरीजों के लिए एक नई उम्मीद जगाई है। यह थेरेपी उन मरीजों के लिए जीवनदायी साबित हो सकती है, जिनके लिए बाकी सभी उपचार असफल हो चुके हैं।

भारत में जीन थेरेपी की उपलब्धता और कीमत

आईआईटी-बॉम्बे के प्रोफेसर राहुल पुरवार ने बताया कि भारत की पहली जीन थेरेपी के सफल परिणामों ने कैंसर से जूझ रहे मरीजों को नई उम्मीद दी है। भारत में इम्यूनोएक्ट कंपनी के जरिए इस थेरेपी को उपलब्ध कराया जा रहा है। इस उपचार के विकास में 11 वर्षों की मेहनत लगी, जिसमें दवा डिजाइनिंग, प्रयोगशाला परीक्षण और क्लिनिकल ट्रायल शामिल थे।

भारत में इस थेरेपी को टैलिकैब्टेजीन ऑटोल्यूसेल नाम से स्वीकृति मिल चुकी है और इसकी कीमत करीब 26 लाख रुपये तय की गई है। हालांकि यह कीमत अभी भी अधिक है। लेकिन उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में इस तकनीक को और किफायती बनाया जा सकेगा ताकि अधिक से अधिक मरीज इसका लाभ उठा सकें।

जीन थेरेपी का वैश्विक सफर

अगर जीन थेरेपी के वैश्विक सफर की बात करें तो अमेरिका में पहली बार 2009-2010 के बीच CAR-T थेरेपी पर शोध शुरू हुआ। वर्ष 2018 में इसे सरकारी मंजूरी मिली और उसी दौरान भारतीय वैज्ञानिकों ने भी इस पर अपना अध्ययन प्रारंभ किया। भारत ने मात्र 5 वर्षों में इस तकनीक को विकसित कर अस्पतालों तक पहुंचाया है।

अमेरिका और भारत के अलावा यह तकनीक स्पेन, जर्मनी और चीन जैसे देशों में भी उपलब्ध है। यह थेरेपी कैंसर मरीजों के इम्यून सेल्स पर आधारित है और भविष्य में इसके और अधिक विकसित होने की संभावना है।

भविष्य में जीन थेरेपी की संभावनाएं

ब्लड कैंसर के मरीजों के लिए जीन थेरेपी एक प्रभावी उपचार विकल्प बन रही है। इसकी उच्च सफलता दर इसे पारंपरिक इलाजों की तुलना में अधिक आशाजनक बनाती है। हालांकि इसकी वर्तमान लागत अधिक है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य में इसे और अधिक सुलभ और किफायती बनाया जा सकता है।

अगर इसे बड़े स्तर पर उपलब्ध कराया जाता है, तो यह थेरेपी ब्लड कैंसर के मरीजों के लिए जीवनदायी साबित हो सकती है। वैज्ञानिक इस तकनीक को और बेहतर बनाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। ताकि यह ज्यादा से ज्यादा लोगों के लिए एक व्यवहारिक और किफायती उपचार बन सके।

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