जानें, केरल में क्यों तेजी से बढ़ रहे हैं कैंसर के मरीज

केरल में आंकड़े इसलिए ज्यादा नजर आते हैं क्योंकि यहां रिपोर्टिंग और डेटा कलेक्शन बेहतर है। लेकिन इसके पीछे का सच ये भी है कि कैंसर के असली कारण...;

Update: 2025-06-29 14:07 GMT
हाई लिटरेसी के बाद भी क्यों केरल में लगातार बढ़ रहे हैं कैंसर के मरीज?

Kerala Health Update: केरल जैसा राज्य, जिसे स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सबसे अग्रणी माना जाता है,जहां साक्षरता सबसे ज्यादा है, जहां लोग हेल्थ-चेकअप को गंभीरता से लेते हैं और फिर भी वहां कैंसर जैसी बीमारी इतनी तेजी से क्यों फैल रही है?

क्योंकि केरल में हर लाख की आबादी पर 243 पुरुष और 219 महिलाएं कैंसर का शिकार हो रही हैं। जबकि पूरे देश में ये औसत क्रमशः सिर्फ 105 और 103 है। सवाल सिर्फ बीमारी का नहीं है बल्कि उस सोच का भी है, जो हमें अभी भी समय रहते अलर्ट नहीं करती।

उम्र और आदतें भी हैं जिम्मेदार

केरल में बुज़ुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। साल 2021 में ये 16.5% थी और 2036 तक 22.8% होने का अनुमान है। बुजुर्गों में कैंसर की आशंका वैसे भी ज्यादा होती है। लेकिन यही वो समय है, जब हमें चाहिए कि बुजुर्गों के लिए विशेष ‘Geriatric Oncology Services’ और कैंसर रोकथाम के प्रोग्राम प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से ही शुरू कर दिए जाएं।

स्तन कैंसर: 25 साल में 300 गुना बढ़ोत्तरी!

ऑन्कॉलजिस्ट्स के अनुसार, लगभग 90% स्तन कैंसर को शुरुआती चरण में ठीक किया जा सकता है, तब भी दो-तिहाई महिलाएं स्टेज 3 और 4 पर अस्पताल पहुंचती हैं। यह बेहद गंभीर चिंता का विषय है। यहां शिक्षा है, सुविधा है, फिर देरी क्यों? जवाब है, जागरूकता की कमी और शर्म का साया।

इलाज से ज्यादा इलाज के खर्च का डर

इलाज से ज्यादा डर है इलाज के खर्च का और यही डर सबसे ज्यादा लोगों को पीछे खींचता है। इलाज के शुरुआती स्टेप के बाद कई मरीज फॉलो-अप के लिए नहीं लौटते और वजह है इलाज का खर्च। बीमा कवर की कमी और रोजगार का नुकसान। यही वो मोड़ है, जहां बीमारी के साथ जंग लड़ते इंसान की हिम्मत टूटती है।

पुरुषों में तेजी से बढ़ते कैंसर

पुरुषों में सबसे ज्यादा फेफड़े (14%), मुंह (10%) और लिवर (8%) जैसे कैंसर सामने आ रहे हैं। यानी तंबाकू, शराब, वायु प्रदूषण जैसे कारकों को अब नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

डेटा बेहतर है या हालात बदतर?

एक्सपर्ट्स के अनुसार, केरल में आंकड़े इसलिए ज्यादा नजर आते हैं क्योंकि यहां रिपोर्टिंग और डेटा कलेक्शन बेहतर है। लेकिन इसके पीछे का सच ये भी है कि कैंसर के असली कारण, जैसे कि खाने में फाइबर की कमी, सब्जियों का कम सेवन, शराब और निष्क्रिय जीवनशैली को अब भी सार्वजनिक स्तर पर गंभीरता से नहीं लिया जा रहा।

क्या करना चाहिए अब?

इलाज की बजाय रोकथाम और जागरूकता पर ज्यादा जोर देना होगा। बुज़ुर्गों के लिए अलग व्यवस्था, कैंसर स्क्रीनिंग को नियमित बनाना और लोगों को यह समझाना कि हर बुखार वायरल नहीं होता ये सबसे जरूरी कदम हैं।

जिन इलाकों में बुज़ुर्ग ज्यादा हैं, वहां कैंसर की दर 300 प्रति लाख तक जा रही है। और अगर सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया तो केरल का यह कैंसर परिदृश्य आने वाले वर्षों में और भी डरावना हो सकता है।

अगर आप या आपके परिवार में कोई 40 के ऊपर है तो साल में एक बार स्क्रीनिंग करवाइए। क्योंकि कैंसर एकदम से नहीं आता वह धीरे-धीरे पनपता है। और मौका मिलते ही वार करता है।


डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। कोई भी सलाह अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।

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