हर 5वें कर्मचारी को हेल्थ सपोर्ट की नीड, 40 से पहले रिजाइन को मजबूर
मेंटल हेल्थ इस रिपोर्ट का एक प्रमुख मुद्दा है। Plum की टेलीहेल्थ बुकिंग्स में से 20% मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी हैं। इनमें सबसे अधिक एंग्जाइटी (Anxiety) देखी गई;
Corporate Mental Health Burnout: कॉर्पोरेट हेल्थ क्राइसिस का इससे बड़ा उदाहरण शायद कुछ और नहीं हो सकता कि हर 5 में से 1 कर्मचारी मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health Support) सहायता ले रहा है। इतना ही नहीं करीब 20% कर्मचारी 40 की उम्र से पहले ही पुरानी बीमारियों के कारण नौकरी छोड़ने को मजबूर हैं। मेंटल हेल्थ इस रिपोर्ट का एक प्रमुख मुद्दा है। Plum की टेलीहेल्थ बुकिंग्स में से 20% मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी हैं। इनमें सबसे अधिक पेशेंट एंग्जाइटी के देखने को मिल रहे हैं। और इनमें से 80% लोगों ने खुद आगे बढ़कर संपर्क किया। इससे पता चलता है कि इस तरह की हेल्पलाइन की कितनी अधिक उपयोगिता है।
Plum की "एम्प्लॉयी हेल्थ रिपोर्ट 2025" के अनुसार, हर पांच में से एक कर्मचारी मानसिक स्वास्थ्य सहायता ले रहा है और लगभग 20% कर्मचारी बर्नआउट या किसी पुरानी बीमारी के चलते नौकरी छोड़ने की सोच रहे हैं। हजारों कंसल्टेशन और क्लेम्स के आधार पर यह रिपोर्ट भारत के सफेदपोश कर्मचारियों में जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों और मानसिक संघर्षों में वृद्धि को उजागर करती है। डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी पुरानी बीमारियां 40 की उम्र से पहले ही प्रोफेशनल्स को प्रभावित कर रही हैं।
पुरानी बीमारियाँ और गिरती उम्र
रिपोर्ट के मुताबिक, पुरानी बीमारियों की शुरुआत की औसत उम्र 40 से नीचे जा चुकी है। जो बीमारियां एक से दो दशक पहले तक 60 साल की उम्र के बाद होती थी वे अब 40 से भी कम उम्र में लोगों को अपना शिकार बना रही हैं...
हृदय रोग: 32 वर्ष
कैंसर: 33 वर्ष
डायबिटीज: 34 वर्ष
क्रॉनिक किडनी डिज़ीज़: 35 वर्ष
ब्रेन स्ट्रोक (सेरेब्रोवैस्कुलर डिज़ीज़): 36 वर्ष
सबसे अधिक चिंता की बात
20% कर्मचारी मानसिक स्वास्थ्य सहायता ले रहे हैं।
20% कर्मचारी बर्नआउट के कारण नौकरी छोड़ने की सोच रहे हैं।
भारत की 35 वर्ष से कम आयु वाली जनसंख्या पर यह असर आर्थिक विकास और उत्पादकता को प्रभावित कर रहा है।
क्रॉनिक बीमारियाँ एक कर्मचारी की प्रति वर्ष 30 कार्यदिवस तक उत्पादकता छीन सकती हैं।
मानसिक स्वास्थ्य और बर्नआउट – एक चुपचाप फैलती महामारी:
टेलीहेल्थ बुकिंग्स का 20% हिस्सा मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा।
80% लोग खुद ही मानसिक स्वास्थ्य सेवा लेते हैं, जबकि जनरल फिजीशियन के लिए यह 64% है।
20% कर्मचारी रोज़ाना गुस्सा अनुभव करते हैं (वैश्विक औसत से 10% अधिक)।
87% नियमित रूप से मध्यम से उच्च स्तर के तनाव का सामना करते हैं।
55% में एंग्ज़ायटी के लक्षण दिखे।
36% ने पिछले महीने मानसिक स्वास्थ्य के कारण छुट्टी ली।
20% ने पिछले साल मानसिक स्वास्थ्य के कारण नौकरी छोड़ी।
कार्यस्थल (Workplace) और सामाजिक अलगाव (Social Isolation)
केवल 14% कर्मचारी कार्यस्थल पर फल-फूल रहे हैं (वैश्विक औसत: 34%)
30% कर्मचारी कार्यस्थल पर अकेलापन महसूस करते हैं
प्रोडक्टिविटी में कमी और फाइनैंशियल बर्डन
NCDs भारत में अस्पताल में भर्ती के 40% और बाह्य रोगी के 35% दौरे के लिए ज़िम्मेदार हैं।
Presenteeism absenteeism से भी अधिक महंगा साबित हो रहा है।
पुरानी बीमारियों वाले कर्मचारी काम बंद करने की 4% अधिक संभावना रखते हैं और आउटपुट सीमित करने की 11% अधिक संभावना रखते हैं।
हेल्थ चेकअप की कमी भी इसका एक बड़ा कारण है। केवल 20% कंपनियां ही नियमित स्वास्थ्य जांच प्रदान करती हैं और जहां कंपनिया हेल्थ चेकअप कराती भी हैं, वहां करीब 38% कर्मचारी ही इनका उपयोग करते हैं
हेल्थ कैंप के निष्कर्ष
63% हाई बीपी
38% उच्च कोलेस्ट्रॉल
17% मोटापे की स्थिति
11% प्री-डायबिटिक
71% मध्यम जोखिम पर
5% को तात्कालिक चिकित्सा हस्तक्षेप की ज़रूरत
जेंडर गैप
पुरुष (30–49 आयु वर्ग) स्वास्थ्य सेवाओं में 58% भागीदारी करते हैं लेकिन मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं लेने में हिचकते हैं
मानसिक स्वास्थ्य की पहली कंसल्टेशन में पुरुषों में 54% अधिक लक्षण गंभीर
पुरुषों में पहला सेशन लेने के बाद छोड़ने की दर 42% अधिक
OCD (69%), ADHD (63%), एडिक्शन (89%) में पुरुष अधिक प्रभावित
महिलाएं 50–59 में तेज़ी से लाभ उठाती हैं-68% क्लेम इसी आयु वर्ग से
23% महिलाओं की कंसल्टेशन रिप्रोडक्टिव हेल्थ के लिए
32% हार्मोनल हेल्थ के लिए
18% मासिक धर्म से जुड़ी समस्याएं
42% महिलाएं पिरियड पेन के दौरान भी काम करती हैं
70% से अधिक को लगता है कि वर्तमान स्वास्थ्य लाभ उनकी जरूरतें पूरी नहीं करते
केवल इंश्योरेंस नहीं, सोच बदलनी होगी
100% की वृद्धि हुई है कंपनियों द्वारा प्रिवेंटिव और फ्लेक्सिबल हेल्थकेयर में
फिर भी केवल 34% कंपनियां कर्मचारियों की असली ज़रूरतों के अनुसार लाभ देती हैं
हर 3 में से 1 कर्मचारी के पास अपनी सेहत का ध्यान रखने का समय नहीं
Plum के को-फाउंडर अभिषेक पोद्दार कहते हैं “सिर्फ बीमा नहीं बल्कि समग्र हेल्थकेयर मॉडल की जरूरत है, जो मानसिक, शारीरिक और सामाजिक भलाई को कवर करे। ”वहीं, Plum के सह-संस्थापक सौरभ अरोड़ा का कहना है “हमें अब lifespan नहीं, healthspan सुधारने पर ध्यान देना होगा। सही AI-संचालित हस्तक्षेप के जरिए कर्मचारियों को बेहतर आदतों की ओर प्रेरित करना संभव है।”
डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।