भूलने की बीमारी या दिमाग की लड़ाई, जानें आखिर क्यों होता है डिमेंशिया?

मैक्स हॉस्पिटल के सायकाइट्रिस्ट डॉ. राजेश कुमार ने डिमेंशिया पर जो कहा, वो हर किसी को पता होना चाहिए। क्योंकि सिर्फ 60 के बाद नहीं 40 में भी दिक्कत हो सकती है;

Update: 2025-08-02 13:23 GMT
डिमेंशिया सिर्फ 60 के बाद नहीं होता बल्कि 40 में भी दिक्कत हो सकती है

Dementia Health Care: बड़ी उम्र के लोगों को सिर्फ ये सोचकर अनदेखा नहीं कर देना चाहिए कि ये अपनी उम्र जी चुके हैं और हमें ज्ञान दे रहे हैं...या फिर ये जो कुछ भी कह रहे हैं वो सब ओल्ड फैशन है। ऐसा इसलिए क्योंकि आज वो जो हैं, वह स्थिति हमारा भविष्य है। और अपने भविष्य को लापरवाही के चलते अनदेखा नहीं किया जा सकता। इस लिहाज से हमारे घर के बड़े-बुजुर्ग केवल हमारा बीता हुआ कल नहीं है बल्कि हमारे आने वाले कल की झलक भी हैं।

आखिर हम इतनी भारी-भरकम बातें आपसे क्यों बता रहे हैं...वो इसलिए क्योंकि 60 साल की उम्र के बाद अक्सर लोगों में याददाश्त से जुड़ी बीमारी की समस्या हो जाती है। मेडिकल जर्नल Lancet Neurology Commission (2024) की रिपोर्ट के अनुसार, 60 से 69 साल की उम्र में डिमेंशिया का खतरा शुरू होता है। वहीं, 70 से 79 साल की उम्र में हर 20 में से 1 व्यक्ति को डिमेंशिया हो जाता है। वहीं, 80 की उम्र के बाद हर 5 में से 1 व्यक्ति में इसके लक्षण दिखने लगते हैं तो 90 की उम्र के बाद इस रोग की संभावना हर व्यक्ति में 40 प्रतिशत बढ़ जाती है।

आखिर क्या है डिमेंशिया?

डिमेंशिया एक मेडिकल कंडीशन है, जिसमें इंसान की याददाश्त, सोचने-समझने की शक्ति, भाषा, निर्णय लेने की क्षमता और व्यवहार धीरे-धीरे खत्म होने लगता है। और सबसे खतरनाक बात यह है कि ये प्रक्रिया इतनी धीरे और चुपचाप शुरू होती है कि न मरीज को पता चलता है, न परिवार को। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में 5.5 करोड़ से ज्यादा लोग डिमेंशिया से जूझ रहे हैं। भारत में ये आंकड़ा अब 40 लाख के पार जा चुका है और हर साल इसमें 10% की दर से बढ़ोतरी हो रही है।

एग्जाइटी (चिंता), डिप्रेशन (अवसाद) में भी भूलने की समस्या हो सकती है। उदासी की समस्या में भी फिजिकल ऐक्टिविटी कम होने से फोकस कम हो जाता है और इसमें भी भूलने की समस्या हो सकती है। ट्रॉमेटिक ब्रेन इंजरी, इंफेक्शन इत्यादि में याददाश्त से जुड़ी समस्या हो सकती है। ऐसे में डिमेंशिया और अन्य चीजों से जुड़ी समस्या हो सकती है। डिमेंशिया सिर्फ याददाश्त की समस्या नहीं है। ये बीमारी से ऊपर की चीज है, ये एक सिंड्रोम है मतलब बहुत सारी बीमारियों का कलेक्शन है। ये एक अंब्रेला टर्म है, जिसमें लॉस ऑफ मेमरी भी एक समस्या है। इसमें सोच से जुड़ी समस्या भी होती है, जो डेली लाइफ को अफेक्ट करती है।

लक्षण जो दिखते हैं… लेकिन समझे नहीं जाते

कोई सामान रखकर ध्यान ना रहने की दिक्कत कभी-कभार होती है तो ये एक सामान्य बात है। लेकिन जब दैनिक जीवन में इस तरह की दिक्कत होने लगे तो इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। जैसे...

चाबियां कहां रखी हैं, याद नहीं

पास के रिश्तेदार का नाम भूल जाना

बार-बार एक ही सवाल पूछना

समय, तारीख या जगह को लेकर कन्फ्यूजन

अपने ही घर का रास्ता भटक जाना

स्वभाव में चिड़चिड़ापन, लगातार गुस्सा या डर

लैग्वेज से जुड़ी समस्या भी होने लगती हैं।

पर्सेप्शन से जुड़ी समस्या भी हो जाती है।

लिखने में दिक्कत होने लगती है। व्यक्ति अपने सिग्नेचर तक भूल जाते हैं।

इसमें याददाश्त के साथ-साथ अटेंशन की दिक्कत होती है। अवेयर नहीं होते आस-पास की चीजों से।


आप सोचेंगे, "अरे बुढ़ापे में तो ये सब होता है!" लेकिन यही सोच डिमेंशिया की पहचान में सबसे बड़ी देरी कराती है। डॉक्टर्स के अनुसार, अगर ये लक्षण 6 महीने से ज्यादा समय तक नियमित रूप से दिखें तो आपको तुरंत सायकाइट्रिस्ट या न्यूरोलॉजिस्ट से संपर्क करना चाहिए

डिमेंशिया का इलाज नहीं है पर समाधान हैं

सच तो यही है कि डिमेंशिया का अब तक कोई स्थायी इलाज नहीं है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप लाचार हैं। अगर लक्षणों की जल्दी पहचान हो जाए और मरीज की सही देखभाल की जाए तो हालत को सालों तक स्थिर रखा जा सकता है। यानी स्थिति को बिगड़ने से बचाया जा सकता है।

डिमेंशिया से बचने के उपाय

डॉक्टर कुमार कहते हैं कि 50 की उम्र के बाद केवल शरीर को नहीं बल्कि दिमाग को भी कसरत चाहिए होती है। इसके लिए आप Sudoku और क्रॉसवर्ड सॉल्व करना, दोस्तों से मिलना, घर के बच्चों को कहानियां सुनाना जैसी ऐक्टिविटीज में खुद को जरूर व्यस्त रखें। आप ये ऐक्टिविटीज भी अपना सकते हैं...

अखबार जोर से पढ़ना

पुराने गाने याद करना

नई स्किल्स सीखना (जैसे गिटार, पेंटिंग, योग)

ये गतिविधियां इसलिए जरूरी हैं क्योंकि जैसे-जैसे शरीर बूढ़ा होता है, दिमाग को ऐक्टिव रखना अधिक आवश्यक हो जाता है। क्योंकि उम्र के साथ दिमाग की कोशिकाएं भी शिथिल पड़ने लगती हैं, जिससे इनकी कार्यक्षमता कमजोर होने लगती है।

हार्वर्ड न्यूरोसाइंस स्टडी साल 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, 60 साल से अधिक उम्र के उन लोगों में डिमेंशिया का खतरा 60% तक बढ़ जाता है, जो सामाजिक रूप से ऐक्टिव नहीं रहते और लोगों से मिलना-जुलना बंद करके अकेले में अधिक समय बिताते हैं।

परिवार इस बीमारी का असली इलाज है

डॉक्टर राजेश अपनी बात जारी रखते हुए कहते हैं 'डिमेंशिया से बचाव और इसके इलाज में परिवार का अहम रोल होता है। क्योंकि ये कोई अकेले झेली जाने वाली बीमारी नहीं है। इसमें एक परिवार की भी परीक्षा होती है। इसलिए अगर आपकी मां हर दिन एक ही बात पूछती हैं तो ये उनकी भूल नहीं बीमारी है।

अगर आपके पापा आपको पहचानने में समय लगाते हैं तो वे आपको भूल नहीं रहे, वे खुद को खोते जा रहे हैं। इसलिए आप उनके साथ बैठिए, बात कीजिए, पुराने एल्बम दिखाइए, कहानी दोहराइए। क्योंकि जब यादें मुरझा जाती हैं तो रिश्तों का साथ ही आखिरी उम्मीद बनता है। किसी बीमार व्यक्ति के जीवन में खुशियां लाने की।

डिमेंशिया का इलाज

ये तो पहले ही क्लियर किया जा चुका है कि इस बीमारी का अब तक कोई पुख्ता इलाज नहीं है। लेकिन कुछ दवाओं के माध्यम से इसकी गति को धीमा किया जा सकता है और मरीज की स्थिति को बहुत खराब होने से रोका जा सकता है। इसलिए अपने डॉक्टर से नियमित रूप से संपर्क में रहें और समय-समय पर गाइडेंस लेते रहें।

क्या 40 की उम्र में भी हो सकता है डिमेंशिया?

डॉक्टर कुमार इस बारे में कहते हैं, जैसा कि बताया जा चुका है कि याददाश्त से जुड़ी समस्या अन्य कारणों से भी हो सकती है, जैसे कि चिंता, अवसाद या उदासीपन। इन स्थितियों में होने वाली याददाश्त संबंधी समस्या हो स्यूडो डिमेंशिया

(Pseudo Dementia ) भी कहा जाता है। अगर इन समस्याओं पर समय रहते ध्यान ना दिया जाए तो डिमेंशिया का रिस्क बढ़ सकता है। हालांकि प्राकृतिक कारणों से आमतौर पर डिमेंशिया का खतरा 60 साल की उम्र के बाद अधिक देखा जाता है। लेकिन सायकाइट्री से जुड़ी हाल की कुछ रिसर्च बताती हैं कि इसके लक्षण 40 की उम्र के बाद भी धीरे-धीरे शुरू हो सकते हैं, खासकर अगर लाइफस्टाइल, नींद, डाइट और मानसिक सक्रियता में लगातार गिरावट हो।


डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।

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