डिजिटल स्ट्रेन से बचेंगे तो उम्रभर साथ निभाएंगी आंखें, ये हैं ट्रिक्स
डॉक्टर अरोड़ा कहते हैं कि जिन भी लोगों को अधिक स्क्रीन एक्सपोजर के चलते समस्याएं हो रही हैं, इनमें से 99 प्रतिशत लोग आसान उपाय अपनाकर ठीक हो सकते हैं...;
Eye Care Tips: डिजिटल आई स्ट्रेन या कहिए कि कंप्यूटर आई सिंड्रोम। ये ऐसी स्थिति है, जिसमें व्यक्ति की आंखें थकी हुई और बोझिल रहती हैं। आंखों में दर्द की शिकायत भी हो सकती है और दूर की चीजें देखने में दिक्कत होती है। आई स्पेशलिस्ट और सर्जन डॉक्टर अजय अरोड़ा के अनुसार, वर्तमान समय में 100 में से 42 पेशेंट इस समस्या से ग्रसित हैं। स्थिति यही बनी रही तो आंकड़े बताते हैं कि साल 2047 तक भारत का ही नहीं बल्कि साउथ ईस्ट एशिया का हर दूसरा व्यक्ति डिजिटल स्ट्रेन की गिरफ्त में होगा...
डिजिटल आई स्ट्रेन के कारण क्या हैं?
डिजिटल स्ट्रेन या डिजिटल आई स्ट्रेन यानी टीवी, लैपटॉप, टीवी या किसी अन्य डिवाइस की स्क्रीन के कारण होने वाला तनाव। ये तनाव स्क्रीन पर काम करने से नहीं होता है बल्कि बहुत अधिक काम करने या काम के दौरान निश्चित समय पर ब्रेक ना लेने के कारण होता है। इसलिए हमें अपनी आंखों के डिजिटल एक्सपोज़र को बहुत समझदारी के साथ व्यवस्थित करना होगा। ताकि ना तो हमारा काम प्रभावित हो और ना ही हमारी आंखों को किसी तरह की समस्या हो।
डिजिटल आई स्ट्रेन के लक्षण क्या हैं?
आंखों में सूखापन अनुभव होना
खुजली होना
लगातार चुभन होना
आंखों में भारीपन रहना
आंखें हर समय थकी हुई रहना
दूर की चीजें देखने में समस्या होना
धुंधला दिखना
आंखें हर समय लाल रहना
कैंसे पहचानें आंखों में दिक्कत हो रही है?
जब भी कुछ पढ़ना या ध्यान लगाकर काम करना हो तो बेचैनी अनुभव होना। काम में ध्यान लगाने में दिक्कत होना।
सिर में दर्द रहना या गर्दन में दर्द रहना भी डिजिटल आई स्ट्रेस का लक्षण हो सकता है।
सुबह के समय साफ दिखता है लेकिन शाम को अस्थिर और धुंधला दिखने लगता है।
स्यूडो मायोपिया भी हो सकता है। इसमें सामान्य रूप से तो दूर की चीजें साफ दिखती हैं। लेकिन स्क्रीन पर टाइम बिताने के बाद धुंधला दिखने लगता है।
डिजिटल आई सिंड्रोम से बचाव के तरीके
डॉक्टर अजय इस सिंड्रोम से बचने के लिए बहुत आसान लेकिन इफेक्टिव उपाय बताते हैं। जिसे इन्होंने नाम दिया है, 20-20-20 रूल। यानी स्क्रीन पर काम करते समय हर 20 मिनट बाद 20 सेकंड का ब्रेक लें और 20 मीटर की दूरी तक चहलकदमी करें या दूर देंखें या किसी कॉलीग से बात करें। ऐसा करने से आंखों-मस्तिष्क-शरीर तीनों को प्राकृतिक रूप से कार्य करने का समय मिलता है।
आप जहां भी बैठकर काम करते हैं, ध्यान रखें कि एयर कंडीशनर यानी एसी की हवा सीधे आपके सिर या चेहरे पर नहीं आनी चाहिए। क्योंकि इससे भी आंखों में सूखापन बढ़ सकता है। खुजली या जलन की समस्या हो सकती है।
तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि आपके लैपटॉप या कंप्यूटर की स्क्रीन आपकी आंखों से एक हाथ की दूरी पर होनी चाहिए। डिजिटल स्क्रीन पर काम करने की यह एक आदर्श स्थिति है।
स्क्रीन पर काम करते समय अपना सिटिंग पॉश्चर सही रखने के साथ ही पलकें झपकना ना भूलें। ऐसा करने से आंखों में टियर ग्लैंड्स सक्रिय रहती हैं और सूखेपन की समस्या नहीं होती है। डॉक्टर अरोड़ा बताते हैं कि'हाइपर फोकस्ड वर्क के चलते ज्यादातर लोग पलकें झपकना भूल जाते हैं। और ब्लिंक रेट घटने से आंखों की टियर फिल्म कमजोर हो जाती है इससे आंखों में दिक्कत होती है।'
पांचवी सबसे अहम बात है कि आप ब्लू लाइट प्रोटेक्शन फिल्म का उपयोग करें। इस फिल्म को आप अपने लैपटॉप या कंप्यूटर पर भी लगवा सकते हैं या फिर काम करते समय पहनने के लिए क
डिजिटल आई स्ट्रेन का इलाज क्या है?
उपचार के बारे में बताते हुए डॉक्टर अरोड़ा कहते हैं कि सबसे पहले मरीज के काम और दैनिक जीवन से संबंधित जानकारी ली जाती है। ताकि पता चल सके कि कहां सुधार की आवश्यकता है। साथ ही ओप्टिकल सरफेस एनालिसिस (OSA) करके हम देखते हैं कि व्यक्ति की आंखों की स्थिति क्या है, तब उनका इलाज किया जाता है।
मरीज की आंखों की स्थिति के अनुसार दवाएं दी जाती हैं और जरूरी होने पर सर्जरी की जाती है। हालांकि ज्यादातर पेशेंट्स में सर्जरी की आवश्यकता नहीं होती है। यदि किसी पेशेंट को चश्मा या लैंस लगाने की आवश्यकता होती है तो इन्हें तैयार किया जाता है। कुछ मरीज ऐसे भी होते हैं जो चश्मा नहीं लगाना चाहते तो उनके लिए लैंस तैयार कराए जाते हैं।
दैनिक जीवन में जरूर सुधार
डॉक्टर अरोड़ा कहते हैं कि जिन भी लोगों को अधिक स्क्रीन एक्सपोजर के चलते समस्याएं हो रही हैं, इनमें से 99 प्रतिशत लोग आसान उपाय अपनाकर ठीक हो सकते हैं। बस इन आवश्यक सुधारों पर ध्यान दें...
डिजिटल आई स्ट्रेन से बचने के लिए अपने काम के अतिरिक्त जो टाइम आप ऑनस्क्रीन बिताते हैं, उसमें कमी करें। जैसे, घर में टीवी देखना, सोशल मीडिया पर समय बिताना, रील्स इत्यादि देखना। इस टाइम में आप शारीरिक गतिविधि करें। टहलने के लिए निकल जाएं या कोई गेम खेलें। ये आपकी शारीरिक और मानसिक सेहत को अच्छा बनाए रखेंगे।
खाना खाते समय टीवी या मोबाइल जैसी किसी भी डिवाइस का उपयोग ना करें। ऐसा करने से आप केवल अपनी आंखों को ही नहीं बल्कि अपने स्वास्थ्य के कई दूसरे पहलुओं को भी ठीक रखते हैं। जैसे, ओवर इटिंग से बचाव, भोजन पर पूरा ध्यान लगाकर खाने से मेटाबॉलिज़म सही रहता है, कॉग्नेटिव हेल्थ अच्छी रहती है।
प्राकृतिक रोशनी में समय बिताना भी आंखों को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी होता है। ये विज़न को सही रखने में तो मदद करता ही है, साथ ही शरीर और मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए भी आवश्यक है।
अधिक पलूशन वाली जगहों पर जाने से बचें और जाना ही हो तो आंखों की सुरक्षा का ध्यान रखें। एसी की हवा डायरेक्टली आंखों को हिट नहीं करनी चाहिए।
लंबे समय तक अंधेरे में स्क्रीन नहीं देखनी चाहिए। टीवी देख रहे हैं,मोबाइल देख रहे हैं या फिर लैपटॉप पर काम कर रहे हैं, ऐसे में अपने चारों तरफ रोशनी रखें। साथ ही जो लाइट आपने लगाई है, वो सीधे आपकी आंखों पर या डेस्क पर नहीं पड़नी चाहिए। इससे भी डिजिटल स्ट्रेन बढ़ता है,इससे बचने के लिए एम्बिऐंट लाइट्स को ऑन रखना जरूरी है।
ये दूसरी बीमारी पसार रही है पैर
ऐसा नहीं है कि लंबे स्क्रीन एक्सपोजर के कारण केवल आंखों में थकान और जलन जैसी अन्य सामान्य समस्याएं ही हो रही हैं। बल्कि मायोपिया यानी कि दूर की नजर से संबंधिक दृष्टि दोष तेजी से बढ़ रहा है। इसमें पेशेंट को दूर की चीजें धुंधली दिखने लगती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन और दूसरी हेल्थ सोसायटीज की समय-समय पर आने वाली रिपोर्ट्स के आधार पर बात करें तो 2047 तक इंडिया में हर दूसरा व्यक्ति मायोपिया की समस्या से ग्रसित होगा। पूरे साउथ इस्ट एशिया की बात करें तो व्यापक रूप से अभी भी हर 100 में से 45 लोग इस तरह की दिक्कत से जूझ रहे हैं।
डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श अवश्य करें।