बंगाल, तेलंगाना चाहे यूपी, दवा की होगी कमी तो टीबी पर कैसे कसेगी नकेल
मार्च में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के केंद्रीय प्रभाग ने राज्यों को तीन महीने के लिए स्थानीय स्तर पर दवाएं खरीदने को कहा था, लेकिन अब भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ है
Jerk To TB Eradication Programme: उत्तर प्रदेश के बिसरख जलालपुर निवासी 55 वर्षीय उमेश को जनवरी में फेफड़े की तपेदिक ( TB ) का पता चला था.
उनका उपचार शुरू किया गया, शुरूआती दो महीनों तक उन्हें बिना किसी परेशानी के दवा मिलती रही. लेकिन तीसरे महीने से दवा मिलने में काफी देर होने लगी. कभी-कभी तो उन्हें लगातार पांच दिनों तक बिना दवा के रहना पड़ता था और उन्हें भयंकर दर्द होता था.
दोहरा झटका
उमेश ने द फेडरल को बताया, "मैं निजी मेडिकल स्टोर से दवा नहीं खरीद सकता; ये बहुत महंगी है और इसकी मांग बहुत ज़्यादा है." "शुरुआती महीनों में मुझे सरकारी स्वास्थ्य केंद्र से टीबी की दवा मिली, लेकिन फिर मार्च में इसकी कमी हो गई. मुझे जिला अस्पताल से दवा लेने के लिए कहा गया."
उन्होंने याद करते हुए कहा, "अप्रैल की शुरुआत में एक समय ऐसा भी आया जब मेरा परिवार किसी निजी डीलर से दवा खरीदने के लिए तैयार था, लेकिन दवा कहीं भी उपलब्ध नहीं थी." "जून के पहले दो हफ़्तों में दवा की आपूर्ति में कुछ हद तक सुधार हुआ, लेकिन अब फिर से इसकी कमी हो गई है."
उमेश निराशा से भरे हुए हैं. वे बीमारी और दवाओं की कमी से निपटने में असमर्थ हैं. उनके साथ, भारत भर में हज़ारों टीबी रोगी इस घातक बीमारी से लड़ रहे हैं और दवाओं की कमी की समस्या का भी सामना कर रहे हैं.
स्थानीय खरीद
मार्च 2024 में केंद्रीय टीबी डिवीजन ने सभी राज्यों को पत्र लिखकर राज्य स्तरीय अधिकारियों से अगले तीन महीनों के लिए स्थानीय स्तर पर दवाएँ खरीदने के लिए कहा, लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है.
ये पहली बार नहीं है जब भारतीय राज्य टीबी की दवाओं की कमी से जूझ रहे हैं. सितंबर 2021 और अगस्त-अक्टूबर 2023 में भारत में टीबी की दवाओं की कमी की कई शिकायतें आई थीं. कई डॉक्टरों और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने मार्च 2024 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर चेतावनी दी थी कि इस कमी के कारण देश में टीबी के दवा प्रतिरोधी उपभेद विकसित हो सकते हैं.
भारत का ऊंचा लक्ष्य
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, विश्व के कुल टीबी मामलों में से 27 प्रतिशत भारत में हैं. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की भारत टीबी रिपोर्ट 2024 से पता चलता है कि संक्रमण के कारण होने वाली मौतें 2015 में 32 प्रति लाख की तुलना में 2023 में घटकर 23 प्रति लाख हो जाएंगी. हालांकि, 2023 के लिए लक्ष्य सिर्फ छह प्रति लाख था. मृत्यु दर और संक्रमण को कम करना महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत ने 2025 तक टीबी को खत्म करने का लक्ष्य रखा है, जो वैश्विक लक्ष्य से पांच साल पहले है.
छूटी हुई खुराकें
विशेषज्ञों का कहना है कि समय पर और बिना किसी देरी या रुकावट के दवाएं उपलब्ध कराना उन्मूलन की दिशा में पहला कदम है. चेन्नई स्थित प्रसिद्ध पल्मोनोलॉजिस्ट हिसामुद्दीन पापा ने कहा कि दवाओं की कमी से टीबी रोगियों में दवा प्रतिरोध बढ़ जाएगा.
डॉ. पापा ने कहा, "डॉक्टर मरीजों को बुखार और सामान्य सर्दी के लिए भी एंटीबायोटिक दवाओं का पूरा कोर्स लेने का सुझाव देते हैं. टीबी की दवाओं की खुराक छूट जाने से शरीर पर बुरा असर पड़ता है. जब दवाएँ एक अंतराल के बाद दी जाती हैं, तो मरीज के शरीर में प्रतिरोध विकसित हो सकता है, जिससे दवा का असर कम हो सकता है. दवा छूट जाने से सभी अंग प्रभावित हो सकते हैं और कुछ मामलों में ये जानलेवा भी हो सकता है."
उन्होंने दवाओं की कमी को दूर करने में विफल रहने और राज्यों को समय पर धन मुहैया न कराने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की. उन्होंने कहा, "भारत सरकार द्वारा 2025 तक टीबी को खत्म करने का वादा सिर्फ़ एक और झूठ है. टीबी रोगियों को पर्याप्त देखभाल प्रदान करने के लिए कोई प्रतिबद्धता या इच्छा नहीं है."
राज्यों की स्थिति कैसी है?
'द फ़ेडरल' ने विभिन्न राज्यों में टीबी दवा की कमी की स्थिति की जांच की तथा ये भी देखा कि राज्य सरकारें इससे कैसे निपट रही हैं.
नोएडा के एक वरिष्ठ चिकित्सक ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि नोएडा के जिला अस्पतालों में क्षय रोग रोधी उपचार (एटीटी) दवाओं की कमी है, जिससे मरीजों को खुले बाजार से ऊंची कीमतों पर दवाएं खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.
तेलंगाना में कमी
तेलंगाना में भी स्थिति कुछ अलग नहीं है. पिछले साल से ही टीबी की दवाइयों की कमी है. राज्य टीबी विभाग द्वारा पिछले दिनों चुकाए गए बिलों के लिए अभी तक धनराशि नहीं मिली है.
तेलंगाना राज्य टीबी सेल के संयुक्त निदेशक डॉ. ए राजेशम ने द फेडरल को बताया कि टीबी की रोकथाम के लिए प्राथमिक दवाएं उपलब्ध नहीं हैं, तथा उपचार के लिए आवश्यक रिफाम्पिसिन, लाइनजोलिड, क्लोफाजिमाइन और साइक्लोसेरिन की आपूर्ति में कमी है.
"टीबी सेल के आँकड़े बताते हैं कि तेलंगाना में टीबी के मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है. 2021 में तेलंगाना में 60,788 टीबी के मामले थे और अगले वर्ष यह संख्या 20 प्रतिशत बढ़ गई. टीबी के इलाज के लिए महंगी दवाओं की आवश्यकता होती है. अगर एंटीबायोटिक दवाओं का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया जाता है तो टीबी विकसित हो सकती है. अधिकांश रोगी अक्सर कमी के कारण दवा का उपयोग बीच में ही बंद कर देते हैं. टीबी को कम करने के लिए दवा का इस्तेमाल कोर्स के अनुसार ही करना चाहिए. अगर दवा का इस्तेमाल नहीं किया जाता है तो टीबी के बैक्टीरिया फैल सकते हैं," राजेशम ने द फेडरल को बताया.
तमिलनाडु में बफर स्टॉक
तमिलनाडु टीबी डिवीजन की प्रमुख आशा फ्रेडरिक ने 'द फेडरल' को बताया कि राज्यों को खुद ही दवाएँ खरीदने के लिए कहा गया था, लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोई अतिरिक्त धन मुहैया नहीं कराया. उन्होंने ये भी बताया कि महामारी के बाद जब नए मामले सामने आए तो स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्य स्तरीय टीबी डिवीजनों के साथ तालमेल नहीं रखा.
"पिछले साल हमें मुश्किल समय का सामना करना पड़ा था और अब हमने हालात के साथ चलना सीख लिया है. चूंकि तमिलनाडु मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन ने समय पर मदद की, इसलिए हम गंभीर कमी से बचने और बफर स्टॉक सुनिश्चित करने में सक्षम थे. हमने मरीजों से कहा है कि वे हर दो दिन में एक बार दवा लेने के लिए अस्पताल जाएं ताकि देश भर में कमी के दौरान बर्बादी से बचा जा सके. हम नहीं चाहते कि एक भी गोली बर्बाद हो. उत्तरी राज्यों में स्थिति बहुत खराब है," उन्होंने द फेडरल को बताया.
केरल, आंध्र और बंगाल
केरल और आंध्र प्रदेश के अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने तमिलनाडु के समान ही कमी का सामना किया है; वे भी खर्चों को पूरा करने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से धनराशि मिलने का इंतजार कर रहे हैं.
पश्चिम बंगाल में स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशक डॉ. सिद्धार्थ नियोगी ने पुष्टि की कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस वर्ष 18 मार्च से तपेदिक रोधी दवाओं की आपूर्ति बंद कर दी है.
उन्होंने कहा, "राज्य सरकार ने पिछले महीने खुले बाजार से एटीडी की करीब 50 लाख पत्ते खरीदें. ये स्टॉक करीब दो महीने तक चलेगा."
कर्नाटक में समस्या का समाधान
कर्नाटक में केंद्रीय क्षय रोग संस्थान (आरजेआईसीडी) के निदेशक डॉ. सी नागराज ने पुष्टि की कि राष्ट्रीय स्तर पर टीबी के इलाज के लिए दवाओं की कमी है. हालांकि, उन्होंने दावा किया कि अब ये समस्या हल हो गई है.
उन्होंने कहा, "कर्नाटक में तपेदिक के इलाज के लिए दवाओं की कमी थी. तीन महीने पहले रिफैम्पिसिन की कमी थी, लेकिन अब वो समस्या नहीं है. उस समय केंद्र ने खुले बाजार से दवा खरीदने का सुझाव दिया था. अब दवा उपलब्ध है."
(हैदराबाद से शेख सलीम, बेंगलुरु से नवीन अम्मेमबाला, कोलकाता से समीर के पुरकायस्थ और कोच्चि से राजीव रामचंद्रन के इनपुट के साथ)