ब्रेन-डेड डोनर, रोबोटिक सर्जरी और ऑर्गन ट्रांसप्लांट में नया कीर्तिमान

डीड एडल्ट डोनर की किडनी का रोबोटिक ट्रांसप्लांट किया गया। यह केवल सर्जिकल उपलब्धि नहीं बल्कि भारत में ऑर्गन ट्रांसप्लांट टेक्नोलॉजी की दिशा बदलने वाला क्षण है..

Update: 2025-11-26 16:13 GMT
भारतीय ऑर्गन ट्रांसप्लांट इतिहास में एक नया अध्याय
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कई महीनों से डायलिसिस पर निर्भर एक बुज़ुर्ग मरीज के लिए नई जिंदगी की उम्मीद तब बनी, जब बेंगलुरु के फोर्टिस हॉस्पिटल में कर्नाटक का पहला रोबोट-असिस्टेड डीड डोनर किडनी ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक किया गया। ट्रांसप्लांट के लिए किडनी एक ब्रेन-डेड डोनर से मिली, जिसके परिजनों ने मृत्यु के बाद अंगदान का बड़ा निर्णय लिया। सर्जरी में रोबोटिक तकनीक की मदद से नसों और ऊतकों को बेहद सटीकता के साथ जोड़ा गया, जिससे ऑपरेशन के दौरान खून बहने का जोखिम और पोस्ट-ऑपरेशन दर्द दोनों कम रहे। रिपोर्ट के अनुसार, मरीज अब रिकवरी पर है और डॉक्टर्स ने इसे अंगदान व रोबोटिक सर्जरी तकनीक के संयुक्त उपयोग की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि बताया है।


कहां हुई यह सर्जरी?

बेंगलुरु के बैनरघट्टा रोड स्थित फॉर्टिस हॉस्पिटल ने चिकित्सा इतिहास में एक ऐसा कीर्तिमान रचा है, जिसे आने वाले कई वर्षों तक याद किया जाएगा। यहां पहली बार डीड (deceased) एडल्ट डोनर की किडनी का रोबोट की मदद से सफल ट्रांसप्लांट किया गया। यह केवल एक सर्जिकल उपलब्धि नहीं बल्कि भारत में ऑर्गन ट्रांसप्लांट टेक्नोलॉजी की दिशा बदलने वाला क्षण है।

घटना एक 68 वर्षीय बुज़ुर्ग मरीज से जुड़ी है, जो डायबिटीज़, हाइपरटेंशन से पीड़ित और CKD Stage-V के कारण पूरी तरह डायलिसिस पर निर्भर थे। उसकी किडनियां जवाब दे चुकी थीं और हर हफ्ते होने वाली हेमो-डायलिसिस ने जीवन को बेहद कठिन बना दिया था। फिर एक दिन एक ब्रेन-डेड डोनर से किडनी उपलब्ध हुई। उसी समय अस्पताल का रोबोटिक ऑपरेशन थिएटर सक्रिय हो गया और टीम ने निर्णय लिया कि परंपरागत ओपन सर्जरी के बजाय रोबोट-असिस्टेड ट्रांसप्लांट किया जाएगा, वह भी डीड डोनर किडनी के साथ, जो आमतौर पर सबसे चुनौतीपूर्ण मानी जाती है।

यह फैसला जोखिम भरा था लेकिन यहीं से इतिहास लिखा गया। मृतक डोनर की किडनी में समय बेहद निर्णायक होता है क्योंकि Viability (वायबिलिटी का मतलब होता है किसी अंग, कोशिका या ऊतक के जीवित रहने और ठीक से कार्य करते रहने की क्षमता।) घटने से पहले अंग ट्रांसप्लांट करना पड़ता है। लेकिन सही योजना, समय प्रबंधन और तैयार रोबोटिक सेटअप की वजह से पूरी प्रक्रिया बिना देरी पूरी की गई।


यह उपलब्धि क्यों विशेष है?

रोबोटिक ट्रांसप्लांट में कटाव कम, खून बहाव कम, ऊतकों को कम क्षति और शरीर पर कुल प्रभाव न्यूनतम होता है। यही कारण है कि मरीज पारंपरिक सर्जरी की तुलना में अधिक तीव्रता से रिकवरी करती है, कम दर्द और जल्दी सामान्य जीवन की ओर लौट पाता है। इस बुज़ुर्ग के साथ भी ऐसा ही हुआ। एक समय जो व्यक्ति हफ्ते-हफ्ते डायलिसिस पर रहते थे, अब नई और सक्रिय किडनी के साथ रिकवरी पर हैं।

इस ऑपरेशन में कई विशेषज्ञ विभागों ने मिलकर काम किया, जिनमें नफ्रोलॉजी, यूरोलॉजी, एनेस्थीसिया, इंटेंसिव केयर और एक ऐसी टीम जो सेकंड-टू-सेकंड सटीकता के साथ काम में लगी रही। डॉक्टर्स के अनुसार इस सर्जरी की सफलता के तीन बड़े स्तम्भ रहे हैं... जिनमें, समय पर निर्णायक निर्णय, पहले से पूरी तरह तैयार रोबोटिक सर्जरी सेटअप और किडनी की viability बरकरार रहते हुए तुरंत ट्रांसप्लांट करना सम्मिलित हैं।

यह उपलब्धि केवल एक मरीज की जीत नहीं बल्कि उन हजारों लोगों के लिए एक नई आशा का संदेश है, जो मृत डोनर किडनी की प्रतीक्षा में हैं। विशेष रूप से भारत जैसे देश में, जहां ऑर्गन डोनेशन की मानसिकता अभी भी संघर्ष में है। यह साबित करता है कि जब प्रौद्योगिकी + तैयारी + संवेदनशीलता एक साथ हों, तब “असंभव” समझी जाने वाली सर्जरी भी सुरक्षित और सफल बनाई जा सकती है।

शायद आने वाले वर्षों में लोग मृत डोनर के ट्रांसप्लांट को अब डर और असमंजस से नहीं बल्कि आशा और विश्वास के साथ देखेंगे। क्योंकि यह सर्जरी दिखाती है कि जीवन कभी-कभी मृत्यु के बाद भी दिया जा सकता है।



डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।


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