स्क्रीन एडिक्शन थक रहा दिमाग, तेजी से घट रही हैं ये नैचुरल स्किल्स

दिमाग का थकना, कभी-कभी कुछ चीजें याद ना आना एक कॉमन प्रॉब्लम है। जब भी हम अधिक थक जाते हैं तो ऐसा होता है। लेकिन अब समस्या और भी बड़ी है और यूथ इससे जूझ रहा है;

Update: 2025-04-16 16:04 GMT
इन नैचुरल स्किल्स में पिछड़ रहे हैं युवा

Mental Health: आज की डिजिटल दुनिया में हम सुबह आंख खुलते ही सबसे पहले फोन देखते हैं। फिर दिन भर लैपटॉप या मोबाइल पर काम करते हैं और रात में नींद आने तक स्क्रीन से चिपके रहते हैं। लेकिन क्या आपने कभी महसूस किया है कि जैसे-जैसे हमारा स्क्रीन टाइम बढ़ रहा है, वैसे-वैसे हमारी दिमागी क्षमता घट रही है? इसे ही कहते हैं स्क्रीन एडिक्शन की थकान। ये एक ऐसी थकान है, जिसे हम नजरअंदाज कर रहे हैं लेकिन ये हमारी मानसिक सेहत पर गहरा असर डाल रही है और उन नैचरल स्किल्स को हमसे छीन रहा है, जो इंसान को इंटेलिजेंट बनाती हैं। यहां जानें, कैसे बढ़ रही है परेशानी और क्या है बचाव का उपाय...

दिमाग पर ओवरलोड का असर

जब हम लगातार सोशल मीडिया स्क्रोल करते हैं, वीडियो देखते हैं या फोन पर नोटिफिकेशन चेक करते हैं, तो दिमाग हर सेकंड नई जानकारी प्रोसेस करने में लगा रहता है। यह लगातार इनपुट ओवरलोड ब्रेन की प्रोसेसिंग क्षमता को थका देता है। दिमाग को कोई भी चीज समझने और याद रखने के लिए ठहराव चाहिए होता है, लेकिन स्क्रीन की दुनिया में वह ठहराव कहीं नहीं मिलता।

फोकस और ध्यान में गिरावट

स्क्रीन एडिक्शन का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि यह हमारे अटेंशन स्पैन यानी ध्यान केंद्रित करने की ताकत को कमजोर करता है। पहले जहां हम 20 मिनट तक बिना भटके कुछ पढ़ सकते थे, आज 2-3 मिनट में ही ध्यान भटक जाता है। हर नोटिफिकेशन, हर मैसेज ध्यान को तोड़ देता है और दिमाग की गहराई से सोचने की ताकत कम हो जाती है।

कमज़ोर होती याददाश्त

जो जानकारी हम बिना ध्यान दिए देखते हैं, वह लंबे समय तक दिमाग में नहीं टिकती। स्क्रीन पर तेजी से बदलती विजुअल और ऑडियो स्टिमुलेशन केवल सतही समझ देते हैं। नतीजा? हमें चीज़ें जल्दी भूलने की आदत पड़ जाती है। चाहे वह पढ़ाई से जुड़ी हो या रोज़मर्रा की बातें।

नींद पर असर और थका हुआ मस्तिष्क

स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी (blue light) हमारे स्लीप साइकिल को प्रभावित करती है। इससे शरीर को यह संकेत नहीं मिल पाता कि अब आराम का समय है। परिणामस्वरूप नींद अधूरी रह जाती है और दिमाग को रिकवरी का समय नहीं मिलता। यह सीधे तौर पर सीखने और स्मरण शक्ति पर असर डालता है।

क्या करें स्क्रीन एडिक्शन से बचने के लिए?

हर 30 मिनट पर 5 मिनट का ब्रेक लें। आंखें बंद करें, गहरी सांस लें, थोड़ा स्ट्रेच करें।

“स्क्रीन टाइम ट्रैकर ऐप्स” से पता लगाएं कि आप कितना समय और कहां बर्बाद कर रहे हैं।

सोने से एक घंटा पहले सभी डिजिटल डिवाइसेस बंद कर दें। इसकी जगह किताब पढ़ें या ध्यान लगाएं।

हफ्ते में एक दिन डिजिटल डिटॉक्स डे बनाएं, जिसमें कोई स्क्रीन नहीं, सिर्फ ऑफलाइन एक्टिविटीज़।

बागवानी, ड्राइंग, बोर्ड गेम्स, म्यूजिक या वॉकिंग जैसी शारीरिक और मानसिक शांति देने वाली चीज़ों को दिनचर्या में शामिल करें।

स्क्रीन से जुड़ाव तकनीक का हिस्सा है और अब हमारी लाइफ में इसकी अपनी जरूरतें हैं। लेकिन अगर यह लत बन जाए तो दिमाग को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। अगर आप चाहते हैं कि आपकी सोचने, समझने और याद रखने की क्षमता बनी रहे तो स्क्रीन से संतुलित दूरी बनाना जरूरी है। दिमाग भी मांसपेशियों की तरह ही है, उसे भी आराम, रिकवरी और संतुलन चाहिए। तभी वह आपके लिए बेहतर काम कर पाएगा।

डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श करें।


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