Rare Earth Minerals की जंग, चीन के आगे दुनिया नतमस्तक! Deng Xiaoping की दूरदर्शिता ने बदला वैश्विक समीकरण
चीन के पास दुनिया के सबसे बड़े लगभग 4.4 करोड़ (44 मिलियन) टन रेयर अर्थ्स का भंडार हैं. दूसरे स्थान पर ब्राज़ील है, जिसके पास 2.1 करोड़ टन, और तीसरे स्थान पर भारत है, जिसके पास लगभग 69 लाख टन रेयर अर्थ्स हैं.
ये व्यापक रूप से माना जाता है कि चीन के सबसे प्रभावशाली नेता देंग शियाओपिंग (Deng Xiaoping) (1978-1997 में उनकी मृत्यु तक) ने 1992 में कहा था कि “मिडिल ईस्ट के पास तेल है, और चीन के पास रेयर अर्थ (Rare Earths) हैं.” देंग शियाओपिंग एक महान दूरदर्शी नेता थे जिन्होंने चीन की क्रांति के नेता माओ ज़ेदोंग (Mao Zedong) द्वारा स्थापित प्रणाली को बदल दिया. देंग ने आधुनिक चीन की नींव रखी वह चीन जो आज अमेरिका को वैश्विक नेतृत्व में कड़ी टक्कर दे रहा है. यदि देंग की यह टिप्पणी सच है, तो यह दर्शाती है कि उन्हें पहले से ही यह समझ थी कि भविष्य में रेयर अर्थ्स और अन्य महत्वपूर्ण खनिज कितने अहम हो जाएंगे.
चीन के पास है सबसे बड़ा रेयर अर्थ्स का भंडार
चीन के पास दुनिया के सबसे बड़े लगभग 4.4 करोड़ (44 मिलियन) टन रेयर अर्थ्स का भंडार हैं. दूसरे स्थान पर ब्राज़ील है, जिसके पास 2.1 करोड़ टन, और तीसरे स्थान पर भारत है, जिसके पास लगभग 69 लाख टन रेयर अर्थ्स हैं.
अन्य देशों के विपरीत, चीन ने लगातार रेयर अर्थ्स का खनन, परिशोधन (refining) और फिर उन्हें चुंबक व अन्य उत्पाद बनाने में उपयोग किया. वर्तमान में चीन दुनिया के 60% रेयर अर्थ्स का खनन करता है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वह विश्व स्तर पर निकाले गए रेयर अर्थ्स का 91% रिफाइनिंग करता है और 94% रेयर अर्थ मैग्नेट्स बनाता है.
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) की वेबसाइट पर हाल में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है “दो दशक पहले, कारों, पवन टरबाइनों, औद्योगिक मोटरों, डेटा केंद्रों और रक्षा प्रणालियों में उपयोग होने वाले सिन्टर्ड परमानेंट मैग्नेट्स के उत्पादन में चीन की हिस्सेदारी लगभग 50% थी. आज यह बढ़कर 94% हो गई है, जिससे चीन उन शक्तिशाली मोटरों के निर्माण में सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन गया है, जो कई अत्याधुनिक तकनीकी अनुप्रयोगों के लिए आवश्यक हैं.”
रेयर अर्थ के मामले में पिछड़ गया अमेरिका
पिछले तीन दशकों में अमेरिका ने पर्यावरण प्रदूषण के कारण रेयर अर्थ्स के रिफाइनिंग को लगभग छोड़ दिया. आज उसे उस निर्णय पर पछतावा हो रहा है. लंबे समय तक अमेरिका और कई अन्य देश रेयर अर्थ उत्पादों खासकर मैग्नेट्स के मामले में उदासीन रहे, जब तक कि इस वर्ष अप्रैल से चीन ने उनके निर्यात पर नियंत्रण लगाना शुरू नहीं किया.
चीन की सख्ती का असर भारत पर
IEA की रिपोर्ट बताती है, “चीन सरकार ने सात भारी रेयर अर्थ तत्वों, उनसे संबंधित सभी यौगिकों, धातुओं और मैग्नेट्स पर निर्यात नियंत्रण लागू किया. अप्रैल और मई में निर्यात मात्रा में भारी गिरावट के कारण अमेरिका, यूरोप और अन्य देशों में कई वाहन निर्माता स्थायी मैग्नेट प्राप्त नहीं कर सके कुछ को अपने संयंत्रों का उत्पादन घटाना पड़ा या अस्थायी रूप से बंद करना पड़ा.” यह भी ज्ञात है कि चीन के निर्यात नियंत्रण का असर भारत के इलेक्ट्रिक वाहन निर्माताओं पर भी पड़ा.
रेयर अर्थ्स उत्पादों के एक्सपोर्ट्स पर चीन सख्त
अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव बढ़ने पर, लगभग दो सप्ताह पहले चीन ने रेयर अर्थ्स उत्पादों के निर्यात पर और कड़े नियंत्रण लगाए हैं. IEA ने इन नए नियंत्रणों के विश्व उद्योग पर प्रभाव को लेकर कहा, “नए नियमों के तहत विदेशी कंपनियों को उन उत्पादों के निर्यात के लिए चीन से लाइसेंस लेना होगा जिनमें चीन से प्राप्त रेयर अर्थ्स सामग्री शामिल है, या जो चीनी तकनीक से बने हैं. यह नियम तुरंत चीन में बने उत्पादों पर लागू हो गया है. 1 दिसंबर 2025 से यह नियंत्रण उन ‘अंतरराष्ट्रीय उत्पादों’ पर भी लागू होगा जिनमें चीनी स्रोत सामग्री या तकनीक का उपयोग हुआ है, भले ही वे घरेलू रूप से बेचे जा रहे हों. ‘पार्ट्स, कंपोनेंट्स और असेंबलीज़’ को नियंत्रण के दायरे में लाने से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर गहरा असर पड़ सकता है, क्योंकि ऊर्जा, ऑटोमोबाइल, रक्षा, सेमीकंडक्टर, एयरोस्पेस, औद्योगिक मोटर्स और एआई डेटा सेंटर जैसे रणनीतिक क्षेत्र इन सामग्रियों पर निर्भर हैं.”
चीन के कदम ने ट्रंप को चौंकाया
चीन के इन कदमों पर अमेरिका की प्रतिक्रिया तीखी रही. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे “चकित करने वाला” बताया जबकि वास्तव में चकित होने की बात नहीं थी, क्योंकि वैश्विक व्यापार युद्ध की शुरुआत खुद ट्रंप ने ही की थी. उन्होंने टैरिफ (शुल्क) को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया. कई देश अमेरिकी बाजार और तकनीक पर निर्भरता के कारण उन्हें मनाने की कोशिश करते रहे, पर चीन ने पलटवार किया रेयर अर्थ्स पर यह नियंत्रण उसी प्रतिशोध का हिस्सा है.
ट्रंप की चीन को धमकी
ट्रंप ने चेतावनी दी है कि यदि चीन ने अपने प्रतिबंध नहीं हटाए तो अमेरिका 100% तक टैरिफ बढ़ा देगा. साथ ही अमेरिका ऑस्ट्रेलिया जैसे खनिज-समृद्ध देशों से समझौते कर रहा है ताकि वहां से महत्वपूर्ण खनिजों तक पहुंच बनाई जा सके. इसी प्रक्रिया के तहत अमेरिका ने अपनी कंपनी US Strategic Metals को पाकिस्तान सेना के स्वामित्व वाली कंपनी Pakistan Frontier Works के साथ साझेदारी के लिए प्रोत्साहित किया है. बताया जाता है कि एक पाकिस्तानी फील्ड मार्शल ने बलूचिस्तान के महत्वपूर्ण खनिजों का एक डिब्बा ट्रंप को व्हाइट हाउस में दिखाया था.
10 साल लगेंगे US को चीन की बराबरी करने में
कई विश्लेषकों के अनुसार, अमेरिका को चीन की बराबरी करने में यदि वह कर भी पाया तो कम से कम 10 वर्ष लगेंगे. खनन, परिशोधन और उत्पाद निर्माण की पूरी प्रक्रिया विकसित करने में इतना समय लगता है। इसलिए, आने वाले वर्षों तक चीन का रेयर अर्थ्स और महत्वपूर्ण खनिजों पर वैश्विक नियंत्रण जारी रहेगा जिसका असर बैटरी उत्पादन पर भी पड़ेगा.
अमेरिका पर भरोसे का संकट
अमेरिका अब चीन के निर्यात नियंत्रण के खिलाफ एक बहुपक्षीय (multilateral) रणनीति बना रहा है. अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने कहा है कि अमेरिका “यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, भारत और अन्य एशियाई लोकतंत्रों” के साथ मिलकर इस पर काम करेगा. लेकिन समस्या यह है कि अमेरिका एक ओर इन देशों से चीन के खिलाफ सहयोग चाहता है, और दूसरी ओर उन्हीं पर टैरिफ हथियार के रूप में लगाता है यह दोहरी नीति है.
भारत भी रेयर अर्थ खनन की तैयारी में
भारत सरकार ने इस वर्ष राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन (National Critical Minerals Mission) शुरू किया है. इसका उद्देश्य “भारत की महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखला को सुरक्षित बनाना, घरेलू और विदेशी स्रोतों से खनिज उपलब्धता सुनिश्चित करना, और तकनीकी, नियामक व वित्तीय ढांचे को मजबूत कर नवाचार, कौशल विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना है.”
भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग (GSI) को अब से लेकर मार्च 2031 तक 1200 स्थलों की खोज का लक्ष्य दिया गया है. यह महत्वाकांक्षी योजना है, लेकिन यदि भारत भविष्य की औद्योगिक क्रांति में भूमिका निभाना चाहता है तो इसे पूरा करना अनिवार्य है. केवल खनन ही नहीं, बल्कि रिफाइिंग और उत्पाद निर्माण की क्षमता भी विकसित करनी होगी. यह अच्छी बात है कि यह मिशन शुरू हुआ है पर इसे कम से कम पंद्रह साल पहले शुरू हो जाना चाहिए था.
चीन से मिल रही चुनौती
इस क्षेत्र में भारत और विश्व को चीन से कड़ी चुनौती मिल रही है. लेकिन इस पूरी “रेयर अर्थ्स” बहस का एक महत्वपूर्ण सबक यह भी है कि दूरदर्शी नेतृत्व, जैसा देंग शियाओपिंग ने चीन को दिया, किसी भी राष्ट्र के लिए कितना निर्णायक साबित हो सकता है. देंग का दृष्टिकोण भविष्य की ओर था वह केवल चीन की प्राचीन सभ्यता की गौरव गाथा में अटका नहीं था.