IMF के दबाव में बिखर रही है पाकिस्तान की खेती, भारी पड़ रहा है लोन लेना
IMF के लोन के बाद पाकिस्तान में कृषि को आयकर दायरे में लाने का फैसला हुआ है। गेहूं की खरीद और एमएसपी व्यवस्था बंद हो गई है। इससे गेहूं बोआई का रकबा घटा और खाद्य सुरक्षा की चुनौती बढ़ी;
ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की धज्जियां उड़ा रखी हैं। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी IMF के लोन से जहां तात्कालिक राहत मिली है वहीं इसी के चलते पाकिस्तान के कृषि क्षेत्र के बिखर जाने का खतरा भी बढ़ गया है। उसकी शर्तें पाकिस्तान के किसानों और उपभोक्ताओं के लिए संकट पैदा करने लगी हैं।
पाकिस्तान में चालू रबी खरीद सीजन में गेहूं की सरकारी खरीद बंद कर दी गई है। महंगाई रोकने वाले कानूनों को समाप्त करने की प्रक्रिया शुरु कर दी गई है। कृषि क्षेत्र को आयकर के दायरे में लाने का फैसला कर लिया गया है, जिसे जनवरी 25 से लागू माना जाएगा। दूसरी ओर भारत के सिंधु नदी का पानी रोक देने से वहां की खेती पर विपरीत असर पड़ने का अंदेशा बना हुआ है।
पाकिस्तान में रबी पर MSP की घोषणा नहीं
कम पैदावार और बढ़ी घरेलू मांग के बीच खुले बाजार में खाद्य उत्पादों की महंगाई से जनता में हाहाकार मच सकता है। लोन लेने के लिए आईएमएफ से समझौते के तहत पाकिस्तान सरकार ने रबी सीजन के लिए फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा नहीं की।
इसी के चलते गेहूं का बोआई रकबा घट गया, जिससे गेहूं की पैदावार और घट गई है। पाकिस्तान पहले ही गेहूं की घरेलू मांग पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है। चालू फसल वर्ष में उसे और गेहूं आयात करना ही पड़ेगा, जिससे विदेशी मुद्रा की सख्त जरूरत पड़ेगी। जबकि पाकिस्तान विदेशी मुद्रा को लेकर पहले से ही हलकान है।
IMF लोन का असर दिखने लगा
इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (आईएमएफ) से पाकिस्तान को ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ही 7.11 अरब डॉलर का लोन प्राप्त हुआ था। लोन लेने की प्रक्रिया लंबे समय से चल रही थी, जिसमें पाकिस्तान को आईएमएफ की शर्तों को मानना अनिवार्य था।
इसमें कृषि क्षेत्र में सुधार के नाम पर कई सख्त शर्तें माननी पड़ी। इसमें उसे किसानों के लिए एमएसपी की घोषणा करने पर रोक लगानी पड़ी थी। सरकार किसानों से फसलों की खरीद नहीं करेगी। सब कुछ स्वाभाविक बाजार व्यवस्था के अधीन रहेगा। इस खतरे को भांपकर वहां के गेहूं किसानों ने बोआई का रकबा घटा दिया। दर
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के दबाव में पाकिस्तान ने चालू मार्केटिंग सीजन 2024-25 के लिए गेहूं का एमएसपी घोषित नहीं की है और न ही गेहूं की सरकारी खरीद हुई है।
भारत के एफसीआई की तर्ज पर वहां भी पाकिस्तान एग्रीकल्चरल स्टोरेज एंड सर्विसेज कारपोरेशन लिमिटेड (पीएएसएससीओ) स्थापित है जो देश की खाद्य सुरक्षा के मद्देनजर अनाज की सरकारी खरीद और भंडारण करता है। पाकिस्तान की इस बेहद अहम भंडारण व्यव्स्था को बंद करने की कवायद शुरु कर दी गई है।
आर्थिक संकट का जंजाल
भारत से अल्पकालिक युद्ध के बाद के तनावों से पाकिस्तान आर्थिक संकट में फंसता जा रहा है। आईएमएफ की शर्तों के चलते वहां कृषि क्षेत्र में ऐसे सुधारों का दौर चल रहा है जिससे वहां की जनता महंगाई की चपेट में है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के दबाव में पाकिस्तान में चालू रबी मार्केटिंग सीजन 2024-25 के लिए गेहूं का एमएसपी घोषित नहीं किया गया है। जिससे गेहूं की सरकारी खरीद नहीं की गई।
आईएमएफ ने एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी लोन के तहत पाकिस्तान को 2024-25 से 2027-28 के बीच 7.11 अरब डॉलर का कर्ज मंजूर किया है। समझौते पर अमल के लिए पाकिस्तान में कृषि क्षेत्र से जुड़े सख्त प्रावधान लागू किए जा रहे हैं। यह देश के किसानों और खेती के लिए घातक साबित होने लगा है।
गेहूं के सामने बड़ा संकट
पाकिस्तान में चालू फसल वर्ष के लिए गेहूं का एमएसपी घोषित नहीं होने से गेहूं के रकबा में तकरीबन पांच लाख हेक्टेयर कम हो गया है। अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) के मुताबिक चालू साल में पाकिस्तान का गेहूं खेती का रकबा 91 लाख हेक्टेयर रह गया। परिणामस्वरूप वर्ष 2024-25 में गेहूं की पैदावार पिछले वर्ष के 3.14 करोड़ टन से घटकर 2.85 लाख टन रहने का अनुमान है।
पाकिस्तान में वर्ष 2024-25 में गेहूं की खपत 3.15 लाख टन रहने का अनुमान है। गेहूं की घरेलू मांग को पूरा करने के लिए पाकिस्तान को गेहूं का आयात करना पड़ेगा। पाकिस्तान ने पिछले तीन वर्ष से लगातार गेहूं का आयात कर रहा है। आर्थिक संकट में फंसे पाकिस्तान को आईएमएफ की तमाम शर्तों का पालन करना पड़ा रहा है।
इन कदमों के चलते पहले ही गेहूं का आयात करने वाले पाकिस्तान का आयात और बढ़ेगा। पाकिस्तान ने 2023-24 में 35.90 लाख टन गेहूं का आयात किया था। जबकि इस साल उत्पादन घटेगा जिससे आयात निर्भरता और बढ़ेगा और विदेशी मुद्रा की सख्त दरकार होगी।
सरकारी खरीद बंद
पाकिस्तान ने पिछले साल (2023-24) के लिए गेहूं का एमएसपी 9750 रुपये प्रति क्विंटल तय किया था जो भारतीय रुपये में करीब 3000 रुपये प्रति क्विंटल बैठता है। पीएएसएससीओ ने 17.9 लाख टन गेहूं की खरीद की थी। लेकिन अप्रैल 2025 से शुरू हुए मार्केटिंग सीजन में कोई खरीद नहीं की है।
पाकिस्तान में प्रति व्यक्ति गेहूं की खपत 124 किलो सालाना है। पाकिस्तान में संघीय और राज्यों के स्तर पर कृषि उत्पादों की कीमतों को तय करना और उनकी कीमतों को नियंत्रित करने की पूरी व्यवस्था को ही समाप्त किया जा रहा है।
भारत में लागू आवश्यक वस्तु अधिनियम जैसे कानूनों को पाकिस्तान में तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिया गया है। इससे वहां महंगाई पर काबू पाने के सारे प्रावधान खत्म हो गये हैं। इस बदली व्यवस्था को वित्त पर्ष 2026 तक पूरा कर लिया जाएगा।
पाकिस्तान के संसदीय मामलों के मंत्री तारिक फजल चौधरी ने नेशनल असेंबली को बताया कि पीएएसएससीओ को बंद करने का ऐलान कर दिया है। जिससे गेहूं की सरकारी खरीद व एमएसपी स्वतः बंद हो गई है।
बंदी की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए पीएएसएससीओ के गोदामों और कार्यालयों की वैल्यूएशन के बाबत टीएजीएम एंड कंपनी नाम की एक कंसल्टेंसी को भी नियुक्त कर दिया गया है। यह संस्था को तीन महीने में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया है। इसी के साथ वर्ष 1973 में स्थापित पीएएसएससीओ जैसी 51 साल पुरानी संस्था का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।
आय कर के दायरे में खेती-किसानी
तयशुदा शर्तों के मुताबिक पाकिस्तान ने आईएमएफ को भरोसा दिया है कि वह देश में कृषि उत्पादों के मार्केट में हस्तक्षेप से जुड़े कानून और नियमों की दिसंबर, 2025 तक समीक्षा करेगी। इसमें प्राइस कंट्रोल एंड प्रीविंशन ऑफ प्रोफिटियरिंग एंड होर्डिंग एक्ट, 1977 समेत चारों राज्यों पंजाब, बलोचिस्तान, सिंध और खैबरपख्तूनख्वा के इस तरह के कानून शामिल हैं।
इन राज्यों में कृषि आय को कर मुक्त रखने वाले कानूनों को फेडरल स्तर पर व्यक्तिगत आय कर और कारपोरेट इनकम टैक्स की लाइन पर संशोधित किया जाएगा। इसका सीधा मतलब है कि पाकिस्तान में कृषि को आय कर के दायरे में लाया जाएगा। जनवरी, 2025 से इसे लागू भी माना जाएगा।
पाकिस्तान की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था ने आईएमएफ की इन शर्तों को किसानों और कृषि क्षेत्र से जुड़े फैसलों को लागू करने की स्थिति पैदा हुई है। इन फैसलों से साबित होता है कि पाकिस्तान की प्राथमिकताओं पर वहां की सैनिक व्यवस्था काबिज है। इन फैसलों का क्या असर होगा यह आने वाले कुछ बरसों में ही साफ होगा। लेकिन यह देखना भी दिलचस्प होगा कि कृषि क्षेत्र में सब कुछ बाजार पर छोड़ने की यह व्यवस्था किस तरह के परिणाम लेकर आएगी।
कभी भारत ने भी झेला ऐसा दबाव
भारत भी कभी इसी तरह के दबाव में था जब आईएमएफ से कर्ज लेना पड़ा। वर्ष 1991 में बैलेंस ऑफ पेमेंट के संकट के समय भारत को आईएमएफ से कर्ज लेने पर देश में आर्थिक सुधारों को लागू किया गया था। लेकिन भारत ने कृषि और खाद्य सुरक्षा के मामले में आईएमएफ की ऐसी किसी तरह की कोई शर्त मानने से साफ इनकार कर दिया था।
चालू साल में भारत में 11.75 करोड़ टन का गेहूं उत्पादन का अनुमान है। सरकार ने रबी मार्केटिंग सीजन 2025-26 के लिए 2425 रुपये प्रति क्विंटल की एमएपी तय की है। गेहूं की सरकारी खरीद भी तीन करोड़ टन के पार पहुंचने की संभावना है। गेहूं की सरकारी खरीद को कुछ राज्यों में 30 जून तक बढ़ा दी गई है। ऐसे में भारत के उत्पादन और यहां की नीतियों की पाकिस्तान के साथ कोई तुलना नहीं की जा सकती है। गेहूं के अलावा अन्य फसलों में भी वहां के मुकाबले हमारे उत्पादन और खपत में बहुत बड़ा अंतर है।