अली खान विवाद: विरासत बनाम विचार की टकराहट
प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद का मामला केवल एक व्यक्ति की गिरफ्तारी का नहीं, बल्कि भारतीय संविधान में निहित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक समन्वय के मूल्यों की रक्षा का है।;
अशोका यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को हाल ही में सोशल मीडिया पर 'ऑपरेशन सिंदूर' को लेकर कथित भड़काऊ पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया गया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत दे दी है। लेकिन मामले की गंभीरता और इसके पीछे की राजनीति ने कई संवैधानिक और सामाजिक सवाल खड़े कर दिए हैं।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने महमूदाबाद को अंतरिम जमानत देते हुए हरियाणा पुलिस के सीनियर अफसरों की एक विशेष जांच दल (SIT) गठित करने का आदेश दिया है। हालांकि, कोर्ट ने जांच की सीमा को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह केवल दो प्राथमिकी तक सीमित रहेगी और महमूदाबाद के डिजिटल उपकरणों की तलाशी लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी। साथ ही, कोर्ट ने महमूदाबाद को सोशल मीडिया पर इस मामले से संबंधित कोई भी पोस्ट करने से भी बैन किया है।
महमूदाबाद का बैकग्राउंड
महमूदाबाद परिवार की जड़ें 16वीं सदी में स्थित हैं, जब नवाब महमूद खान को सम्राट अकबर से 'नवाब' और 'खान बहादुर' की उपाधि प्राप्त हुई थी। यह परिवार उर्दू साहित्य, शिक्षा और सांस्कृतिक समन्वय का प्रतीक रहा है। महमूदाबाद के पूर्वजों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय भाग लिया था, विशेष रूप से 1857 के विद्रोह में।
कानूनी संघर्ष
महमूदाबाद की संपत्ति, जो लखनऊ, सीतापुर, नैनीताल और महमूदाबाद में फैली हुई है, को 1965 में 'शत्रु संपत्ति' अधिनियम के तहत सरकार ने जब्त कर लिया था। हालांकि, 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने महमूदाबाद के उत्तराधिकारी मोहम्मद आमिर खान को इन संपत्तियों का अधिकार बहाल किया था। लेकिन 2017 में एक नए संशोधन के तहत इन संपत्तियों को फिर से सरकार के नियंत्रण में ले लिया गया। यह कानूनी संघर्ष महमूदाबाद परिवार के लिए एक लंबी और कठिन यात्रा रही है।
शैक्षिक और बौद्धिक पहचान
प्रोफेसर महमूदाबाद एक प्रतिष्ठित इतिहासकार, राजनीतिक वैज्ञानिक, लेखक और कवि हैं। उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से MPhil और PhD की डिग्री प्राप्त की है और वर्तमान में अशोका विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख हैं। उनकी शोध रुचियां इस्लामी अध्ययन, दक्षिण एशियाई और मध्य पूर्वी राजनीति और आधुनिक इतिहास में हैं। उन्होंने महमूदाबाद संपत्ति में संरक्षित अरबी और फारसी पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण भी किया है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संवैधानिक प्रश्न
प्रोफेसर महमूदाबाद की गिरफ्तारी और उनके सोशल मीडिया पोस्ट पर कार्रवाई ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार पर गंभीर प्रश्न उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी भाषा को 'डॉग व्हिस्लिंग' करार दिया, जबकि उनकी टिप्पणियों में पाकिस्तान की सैन्य नीति की आलोचना, भारतीय महिलाओं की सशक्तिकरण की सराहना और युद्ध के विरोध में गांधीवादी दृष्टिकोण शामिल थे। इस मामले ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जा सकता है।
संपत्ति विवाद और राजनीतिक संदर्भ
महमूदाबाद परिवार की संपत्ति विवाद केवल कानूनी नहीं, बल्कि राजनीतिक भी है। महमूदाबाद के पूर्वजों ने पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के साथ निकट संबंध रखे थे और परिवार के सदस्य ने 1957 में पाकिस्तान की नागरिकता ग्रहण की थी। इस ऐतिहासिक संदर्भ ने परिवार को 'शत्रु संपत्ति' अधिनियम के तहत सरकार के नियंत्रण में आने का कारण बना। हालांकि, 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने परिवार के पक्ष में निर्णय दिया था। लेकिन 2017 के संशोधन ने फिर से इन संपत्तियों को सरकार के नियंत्रण में ले लिया।