सिस्टम पर मार है मुफ्त राशन, सरकारी खजाने की सेहत हो सकती है खराब

आम बजट के अनुमान के मुताबिक, वित्त वर्ष 2026 तक खाद्य सब्सिडी 2.03 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच सकती है। यह वर्तमान वर्ष के मुकाबले तीन प्रतिशत अधिक होगी।;

Update: 2025-03-31 15:24 GMT

देश की आबादी में 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त चावल और गेहूं की आपूर्ति से खजाने का बोझ लगातार बढ़ रहा है। चालू वित्त वर्ष 2025-26 में अनाज की सरकारी खरीद, ढुलाई भाड़ा, गोदामों में रखरखाव और किराया के अलावा कई और तरह की लागत बढ़ने से आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियां बढ़ने वाली हैं। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत देश की दो तिहाई आबादी को प्रत्येक महीने पांच किलोग्राम मुफ्त अऩाज देने का प्रावधान किया गया है। इसके लिए सालाना 6.2 करोड़ टन से अधिक अनाज की आवश्यकता पडती है, जिसके बाबत सरकार निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर अनाज खरीदती है।

किसानों के हित में गेहूं व चावल समेत अन्य खाद्यान्न की होने वाली खरीद केंद्र सरकार की निर्धारित एमएसपी पर होती है। केंद्र सरकार की सरकारी नोडल एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) खरीद, ढुलाई, भंडारण और राज्यों के सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए अऩाज की आपूर्ति जैसे कार्यों का संचालन करता है। एफसीआई के पास खरीदकर गोदामों में पड़े चावल और गेहूं की लागत महीना दर महीना बढ़ती जाती है। गोदामों में रखे गेहूं का लागत मूल्य 2980 रुपए और चावल की 4173 रुपए प्रति क्विंटल हो चुका है। यह वित्त वर्ष 2022 के मुकाबले क्रमशः 21 प्रतिशत और 17 प्रतिशत अधिक है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि एक और लागत मूल्य बढ़ने से अनाज की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं. वहीं, इसके विपरीत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत अनाज की निर्गत होने वाली कीमतें जस की तस हैं, यानी निर्गत मूल्य अपरिवर्तित बना हुआ है.

राजनीतिक वजहों से एफसीआई हर साल निर्धारित एमएसपी पर गेहूं व चावल की खरीद बदस्तूर कर रही है। वर्ष 2022 से जहां एमएसपी बढ़ रही है. वहीं, भंडारण से लेकर ढुलाई समेत अन्य खर्च बढ़ रहा है। सरकार किसानों से आखिरी दिन तक (ओपन एंडेड) खरीद करती है, जिससे बफर स्टॉक के नाम पर अनाज की मात्रा बढ़ती जा रही है। इस सरप्लस अनाज के रखरखाव का खर्च बढ़ने खाद्य सब्सिडी का आकार साल दर साल बढ़ रहा है।

एफसीआई के अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2026 में आज के मुकाबले गेहूं के मूल्य में 4.5 प्रतिशत और चावल के मूल्य में 3.2 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। एजेंसी के आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने प्रति वर्ष 7.6 करोड़ टन अनाज की खरीद की है। जबकि, पीएमजीकेएवाई के लिए 5.6 से 5.8 करोड़ टन अनाज की जरूरत पड़ती है। अऩाज की मांग के मुकाबले होने वाली अधिक खरीद का सरप्लस अनाज खाद्य सब्सिडी पर भारी बोझ बनता जा रहा है। साल दर साल सरप्लस खरीद से सरकार के माथे पर बल पड़ने लगे हैं। सरकारी एजेंसी एफसीआई अपना फंसा हुआ धन निकालने के लिए बीच बीच में ओपन मार्केट में गेहूं व चावल बेचने का उपक्रम करती रहती है। लेकिन इससे बात नहीं बनती है।

आम बजट के अनुमान के मुताबिक, वित्त वर्ष 2026 तक खाद्य सब्सिडी 2.03 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच सकती है। यह वर्तमान वर्ष के मुकाबले तीन प्रतिशत अधिक होगी। लेकिन सरकार ने पुराने स्टॉक के सरप्लस चावल को ठिकाने नहीं लगाया तो यह सरकारी खजाने के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है। एफसीआई के पास फिलहाल 5.085 करोड़ टन अनाज है, जिसमें 3.79 करोड़ टन चावल और 1.21 करोड़ टन गेहूं है। अऩाज की यह मात्रा एक अप्रैल को निर्धारित बफर स्टॉक 2.14 करोड़ टन के मुकाबले बहुत अधिक है। यह स्थिति तब है जब एफसीआई ने बीते वित्त वर्ष में तीन लाख टन गेहूं और 17 लाख टन चावल को खुले बाजार में बेची है। इसके अलावा 23 लाख टन चावल की बिक्री एथनॉल निर्माताओं को बेचा है।

नई चुनौतियां

राशन दुकानों से देश के 80 करोड़ से अधिक उपभोक्ताओं को गेहूं व चावल के मुफ्त वितरण की योजना पांच वर्षों के लिए घोषित की गई थी, यानी यह योजना वर्ष 2028 तक निर्बाध चलती रहेगी। अपने तरीके की दुनिया की इस सबसे बड़ी योजना पर तक तक कुल 11.8 ट्रिलियन रुपए खर्च हो जाएंगे, जो राजकोष की सेहत पर भारी पड़ सकता है। सरकारी खरीद में शामिल प्रमुख फसलों गेहूं, चावल और श्रीअन्न की एक एमएसपी पर खरीद, ढुलाई और भंडारण समेत अन्य खर्च में 7 से 8 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है। पीएमजीकेएवाई में जनवरी 2023 के पहले तक 80.1 करोड़ उपभोक्ताओं को पांच किलोग्राम चावल व गेहूं का वितरण अति रियायती दरों पर होता था. लेकिन इसके बाद राजनीतिक कारणों से सरकार ने इसे अगले पांच वर्षों तक के लिए पूरी तरह मुफ्त कर दिया। इससे भी तीन से चार प्रतिशत तक की वृद्धि हो चुकी है। इसका सीधा असर सरकारी खजाने पर पड़ रहा है।

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