SAARC और BIMSTEC के लिए सबसे बड़ा खतरा, भारत की चुप्पी या चीन की चाल?

भारत के संदर्भ में सबसे बड़ा सवाल यह है कि सार्क और बिम्सटेक जैसी मौजूदा क्षेत्रीय योजनाओं का भविष्य क्या होगा, जिनकी पहल मुख्य रूप से ढाका के प्रस्ताव पर की गई थी।;

Update: 2025-07-06 02:11 GMT
चीन चाहेगा कि भारत, भूटान और नेपाल प्रस्तावित संगठन में शामिल हों। चीन की बीआरआई योजनाओं का पहले भी विरोध करने के बाद भारत से अपने रुख में बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती। यह तस्वीर चीन के कुनमिंग में 19 जून को बांग्लादेश-चीन-पाकिस्तान त्रिपक्षीय तंत्र की उद्घाटन बैठक में चीन, बांग्लादेश और पाकिस्तान के अधिकारियों को दिखाती है। फाइल फोटो: X/@ForeignOfficePk

चीन द्वारा पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ मिलकर दक्षिण एशिया में एक नई त्रिपक्षीय भू-राजनीतिक गठबंधन की शुरुआत करना कई मायनों में विरोधाभास भरा कदम प्रतीत होता है। लेकिन समयबद्धता के लिहाज़ से यह निर्णय पूरी तरह से रणनीतिक है। भले ही शुरू में चीन ने इस गठबंधन के पीछे भारत को अलग-थलग करने के उद्देश्य से इनकार किया हो, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य भारत-बांग्लादेश के बीच घनिष्ठ संबंधों को कमजोर करना और भारत को क्षेत्रीय रूप से अलग-थलग करना है।

चुनाव से पहले चीन की पहल

संकेत मिल रहे हैं कि चीन इस प्रस्तावित संगठन के लिए एक प्रशासनिक ढांचा तैयार करेगा, ताकि इसे एक सक्रिय और कार्यशील इकाई के रूप में प्रस्तुत किया जा सके। यह कार्य संभवतः बांग्लादेश के आम चुनाव से पहले किया जाएगा, जो अप्रैल से जून 2026 के बीच कभी भी हो सकते हैं।

भारत की क्षेत्रीय स्थिति अलग-थलग

इस पहल का सबसे बड़ा प्रभाव यह होगा कि बांग्लादेश में चुनाव परिणाम सामने आने तक भारत के नीति-निर्माताओं के पास प्रभावी जवाबी रणनीति बनाने का अवसर सीमित रहेगा। जब तक नई सरकार स्पष्ट नहीं हो जाती, भारत के पास भरोसेमंद राजनीतिक सहयोगियों की कमी रहेगी, विशेषकर बांग्लादेश जैसा मजबूत साझेदार अब पहले जैसा समर्थन नहीं देगा।

नेपाल, भूटान और श्रीलंका के साथ शुरुआती वार्ताएं कुछ खास लाभ नहीं दे सकतीं। साथ ही, संभावना जताई जा रही है कि जैसे ही यह नया 'विकास-आधारित संगठन' काम शुरू करेगा, वह अन्य छोटे देशों को भी इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित कर सकता है।

भारत का प्रभावहीन हो जाना?

दरअसल, भारत को अपने अतीत के उस प्रभावशाली समय की तुलना में अब लंबे समय तक क्षेत्रीय राजनीतिक अलगाव का सामना करना पड़ सकता है। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि फिलहाल प्रतिबंधित अवामी लीग (AL) खुद को फिर से उभार पाती है या नहीं। फिलहाल बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथी तत्वों की सत्ता है और धर्मनिरपेक्ष (भारत समर्थक) ताकतों की वापसी की संभावना बेहद कम है।

विशेषज्ञों का मानना है कि पश्चिमी देशों द्वारा समर्थित सत्ता परिवर्तन दक्षिण एशिया में एक बड़े क्षेत्रीय पुनर्संरचना की योजना का पहला कदम था। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख डॉ. मुहम्मद यूनुस ने अमेरिका में एक बैठक में इस बात को खुले तौर पर स्वीकारा। लेकिन महज़ 11 महीने के भीतर, चीन ने पश्चिमी देशों को मात देते हुए एक नई त्रिपक्षीय विकास योजना प्रस्तुत कर दी। दिलचस्प बात यह है कि प्रो-चीन और प्रो-वेस्ट दोनों खेमों के लिए ‘प्रेरक कारक’ वही विवादास्पद डॉ. यूनुस हैं, जिन्हें भारत की राष्ट्रवादी मीडिया ने हमेशा नकारा।

भारत के खिलाफ तीव्र शत्रुता

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के चीफ़ एडमिनिस्ट्रेटर ने बीजिंग में चीन के शीर्ष नेताओं से मुलाकात की, जहां इस नए त्रिपक्षीय समूह पर चर्चा हुई। भारत के लिए चिंता की बात यह है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश की मीडिया भारत के खिलाफ तीखी बयानबाज़ी कर रही हैं और भारत के हर क्षेत्रीय कदम को ‘साम्राज्यवादी’ कहकर प्रचारित किया जा रहा है।

नेपाल, पाकिस्तान और अब बांग्लादेश जैसे देश भी भारत को ‘अहंकारी शक्ति’ के रूप में देख रहे हैं। लेकिन यह केवल शब्दों की लड़ाई नहीं है। चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने इस आर्थिक समूह के बारे में प्रमुख जानकारी प्रकाशित की है, जिससे साफ होता है कि चीन काफी पहले से पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ मिलकर यह योजना बना रहा था, और भारत को जानबूझकर इससे बाहर रखा गया।

व्यापार में असंतुलन और निर्भरता

चीनी विश्लेषकों ने साफ कहा है कि चीन की अर्थव्यवस्था भारत से पांच गुना बड़ी है। भारत-बांग्लादेश और भारत-चीन व्यापार में असंतुलन गंभीर हैभारत को घाटा है, चीन को भारी लाभ। भारत का चीन पर फार्मा, इलेक्ट्रॉनिक्स, रिन्यूएबल एनर्जी आदि क्षेत्रों में भारी निर्भरता है। इस निर्भरता को खत्म करने की भारत की कोशिशें अब तक असफल रही हैं।

बांग्लादेश में चीन की मदद और BRI

चीन ने अब तक बांग्लादेश में $25 बिलियन से अधिक निवेश किया है। पद्मा ब्रिज जैसे बड़े प्रोजेक्ट में चीन ने मदद दी। चीन की Belt and Road Initiative (BRI) योजना से बांग्लादेश और नेपाल को लाभ मिला, जबकि भारत ने राजनीतिक कारणों से इससे दूरी बनाए रखी।

चीनी टिप्पणीकारों के अनुसार, भारत न तो तकनीकी रूप से सक्षम है, न आर्थिक रूप से इतना समृद्ध, कि वह अपने पड़ोसी देशों को वास्तविक मदद दे सके। जबकि चीन इंफ्रास्ट्रक्चर, निवेश, टूरिज़्म, ऊर्जा, हथियार और लॉन्ग-टर्म लोन के माध्यम से इस त्रिपक्षीय संगठन को मजबूत करेगा।

CPEC जैसा मॉडल, SAARC का भविष्य अनिश्चित

यह नई योजना लगभग चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) जैसी होगी। इसमें भरोसे, सम्मान और साझेदारी की भावना होगी। इससे SAARC और BIMSTEC जैसी क्षेत्रीय संस्थाओं का भविष्य अधर में पड़ सकता है, जिनमें भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

बांग्लादेश में छह रेलवे परियोजनाएं, भारत के साथ हेल्थ टूरिज्म और शिक्षा, और सीमा व्यापार जैसी योजनाएँ AL की सत्ता से बाहर होने के बाद धीमी या बंद हो गई हैं।

बांग्लादेश और नेपाल का नजरिया भिन्न

भारत जहां पीछे हट गया है, वहीं नेपाल और बांग्लादेश ने BRI को अपनाकर अपनी आधारभूत संरचना को मज़बूत किया। बांग्लादेश अब बेहतर नदी मार्गों, नौसैनिक योजनाओं, चिटगांव और मोंगला बंदरगाहों के आधुनिकीकरण, और बंगाल की खाड़ी में चीनी वर्चस्व को बढ़ावा देना चाहता है। बाढ़ और जल प्रबंधन, विशेष रूप से तीस्ता परियोजना, में चीन से तकनीकी सहयोग की मांग की जा रही है।

SAARC की निष्क्रियता और भारत की रणनीतिक चुप्पी

SAARC पहले से ही निष्क्रिय है। चीन चाहता है कि भारत, भूटान और नेपाल भी उसके इस नए संगठन में शामिल हों, लेकिन भारत ने पहले ही BRI का विरोध किया है, इसलिए उसके रुख में बदलाव की संभावना नहीं है। फिलहाल भारत के पास 'रुको और देखो' (Wait and Watch) के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा है।

दक्षिण एशिया में भारत का प्रभुत्व अब गंभीर चुनौती के दौर से गुजर रहा है। चीन की यह त्रिपक्षीय रणनीति सिर्फ आर्थिक ही नहीं, बल्कि एक व्यापक भू-राजनीतिक दबाव है।अब सवाल ये है कि क्या भारत इस नई धुरी का मुकाबला करने के लिए अपनी विदेश नीति और क्षेत्रीय कूटनीति में कोई बड़ा बदलाव करेगा, या फिर वह अपनी परंपरागत नीति पर अड़ा रहेगा? आने वाला समय ही इसका उत्तर देगा।

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