लाल किला धमाके के बाद भारत की तटीय सुरक्षा पर गंभीर सवाल, 26/11 जैसी आशंका बढ़ी
भारत की समुद्री सुरक्षा संरचना को सरल, स्पष्ट और तकनीक-सक्षम बनाने की आवश्यकता है। समुद्री प्रशिक्षण पर नया ध्यान और तटीय सुरक्षा का बेहतर एकीकरण ही यह सुनिश्चित कर सकता है कि 26/11 जैसी त्रासदी दोबारा न हो।
दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले के पास 10 नवंबर को हुए कार बम विस्फोट ने 26/11 मुंबई आतंकी हमलों की 17वीं बरसी से पहले सुरक्षा एजेंसियों की चिंताओं को बढ़ा दिया है। इसके बाद जहां जमीनी सीमाओं पर सुरक्षा कड़ी की गई है। वहीं, तटीय सीमाएं नई तकनीकों, विशेषकर ड्रोन के बढ़ते उपयोग के कारण अधिक संवेदनशील होती जा रही हैं।
तटीय इलाकों में खतरे की आशंका बढ़ी
ऑपरेशन सिंदूर के बाद खासकर कच्छ के रण और सिर क्रीक क्षेत्र में खतरे की आशंका काफी बढ़ी है। बढ़ती पाकिस्तानी गतिविधियों के जवाब में हाल ही में भारतीय सशस्त्र बलों ने यहां “ऑपरेशन ब्रह्म शिरा” चलाया, जो बड़े पैमाने पर चल रहे ऑपरेशन त्रिशूल का हिस्सा है। भारत की संशोधित 11,098 किमी लंबी समुद्री सीमा, 13 तटीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के साथ, तटीय सुरक्षा की मुख्य रेखा है। हालांकि केंद्र इस दिशा में गंभीर है, कई राज्य सरकारें इसे केंद्र की जिम्मेदारी मानकर अपेक्षित सक्रियता नहीं दिखा रही हैं।
तीन स्तरीय तटीय सुरक्षा व्यवस्था
26/11 के बाद केंद्र ने 13 तटीय राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में स्टेट मरीन पुलिस (SMP) बनाई। नई तीन-स्तरीय सुरक्षा संरचना इस प्रकार है:-
SMP— तट से 12 नॉटिकल मील तक गश्त
कोस्ट गार्ड (ICG)— 200 नॉटिकल मील के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन (EEZ) तक
भारतीय नौसेना (Navy)— EEZ के बाहर
कस्टम्स मरीन विंग— 24 नॉटिकल मील के ‘कंटिग्युअस ज़ोन’ तक
इसके अलावा, BSF की वॉटर विंग गुजरात के क्रीक क्षेत्रों और सुंदरबन में तैनात है, जबकि CISF बड़े बंदरगाहों व तटीय ढांचे की सुरक्षा में जुटी है।
समुद्री कौशल की कमी सबसे बड़ी चुनौती
नौसेना और कोस्ट गार्ड को छोड़कर बाकी सुरक्षा बलों के पास विशेषज्ञ ‘सी-गोइंग कैडर’ की कमी है। 2018 में गुजरात के द्वारका में स्थापित *नेशनल एकेडमी ऑफ कोस्टल पुलिसिंग (NACP)* अभी पूरी तरह क्रियाशील नहीं हुई है। BSF के अधीन इस अकादमी की कमान, विशेषज्ञता को देखते हुए, कोस्ट गार्ड को देना अधिक उपयुक्त माना जा रहा है। कौशलयुक्त समुद्री कैडर के अभाव में प्रशिक्षण का लाभ अक्सर कर्मियों के बार-बार तबादलों से खत्म हो जाता है।
जमीनी वास्तविकताएं
तटीय रक्षा की अंतिम पंक्ति मानी जाने वाली SMP कई चुनौतियों से जूझ रही है। जैसे पुराने जहाज़, समुद्री स्थिति 3 से आगे संचालन में अक्षम (4 फीट वेव हाइट), तकनीकी सहायता की कमी, प्रशिक्षण की कमी और मानवबल की कमी।
बदलता सुरक्षा परिदृश्य
2008 के बाद से भारतीय महासागर क्षेत्र (IOR) में चीन की गतिविधियां काफी बढ़ी हैं। चीन के ट्रॉलर—जो अक्सर खुफिया जानकारी जुटाने में भी इस्तेमाल होते हैं—भारत के EEZ के आसपास देखे जाते हैं। अरब सागर में पकड़ी जाने वाली ड्रग्स, जो अधिकतर पाकिस्तान के मकरान तट से आती हैं, में तेज वृद्धि दर्ज की गई है। पूर्वी तट पर बांग्लादेश की राजनीतिक अस्थिरता और पाकिस्तान-चीन से उसकी बढ़ती निकटता चिंता बढ़ा रही है। म्यांमार की अस्थिर स्थिति और रोहिंग्या मुद्दा भी भारत के लिए सुरक्षा चुनौती बना हुआ है।
भारतीय नौसेना पर बढ़ता बोझ
नौसेना समुद्री सुरक्षा की प्रमुख जिम्मेदारी निभा रही है, जिसमें तटीय और अपतटीय सुरक्षा दोनों शामिल हैं। हालांकि, इसकी जिम्मेदारियों का कोस्ट गार्ड से आंशिक ओवरलैप है, जिसे सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है। तटीय सुरक्षा में लगातार तैनाती से नौसेना के मुख्य युद्धक दायित्वों पर असर पड़ सकता है। नौसेना पहले से ही मिशन-आधारित तैनाती, मल्टीलैटरल अभ्यास, चीनी जहाज़ों व पनडुब्बियों की निगरानी, सोमालिया के पास एंटी-पाइरेसी ऑपरेशन, दक्षिण चीन सागर की तैनाती और ‘इंडो-पैसिफिक इनिशिएटिव’ में व्यस्त है—जिससे उसका संसाधन खिंच गया है।
जिम्मेदारी कोस्ट गार्ड को देने का सुझाव
लगभग पांच दशकों में कोस्ट गार्ड एक मजबूत समुद्री बल बन चुका है। जहां जहाज़, हेलीकॉप्टर और एयरक्राफ्ट की बड़ी संख्या मौजूद है। विशेषज्ञों का मानना है कि तटीय सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी अब कोस्ट गार्ड के सुपुर्द कर देनी चाहिए, जिससे नौसेना अपने मुख्य युद्धक दायित्वों पर ध्यान केंद्रित कर सके। साथ ही, कोस्ट गार्ड को रक्षा मंत्रालय से हटाकर गृह मंत्रालय के तहत लाने की सिफारिश भी की जा रही है, ताकि SMP के साथ बेहतर तालमेल और निगरानी सुनिश्चित हो सके।
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