बिहार में मामदानी के लिए राह बंद, मोदी-शाह और EC का दबदबा

क्या आज चुनाव कार्यालय और सरकार के हाथों लोकतंत्र की आत्मा दबाई जा रही है? बिहार के पहले चरण का मतदान इस सवाल का जवाब देने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

Update: 2025-11-06 16:21 GMT
बिहार में चुनाव आयोग ने बेहद पक्षपातपूर्ण रवैया दिखाया, ज़रा भी सावधानी बरतने की ज़हमत नहीं उठाई। तस्वीर में मतदाता पटना के दानापुर में वोट डालने से पहले गंगा पार करने के लिए एक नौका पर सवार दिखाई दे रहे हैं।
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न्यूयॉर्क सिटी के मेयर के पद के लिए अपने चुनावी अभियान में सभी बाधाओं को पार करते हुए शानदार जीत दर्ज करने वाले ज़ोहरान मामदानी पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गए। 34 वर्षीय “डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट” और भारतीय मूल के मामदानी के खिलाफ ट्रंप ने पूंजीपति नेताओं को लामबंद किया और उन्हें धमकाने के लिए संघीय फंड काटने की धमकी तक दी। हालांकि, संभावना है कि अगर नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे नेता उनके सामने होते तो मामदानी बिहार या पटना निगम चुनाव में भी किसी तरह का प्रभाव नहीं डाल पाते।

चुनावी प्रक्रिया पर सवाल

विश्लेषकों का कहना है कि ट्रंप जैसी हस्तियां भारतीय राजनीतिक माहिरों के सामने टिक नहीं सकतीं। भारत में सत्ता का प्रमुख मंत्र है — किसी भी कीमत पर सत्ता हासिल करना, यहां तक कि निष्पक्ष मतदान की प्रक्रिया को प्रभावित करके भी। इस प्रक्रिया में हिंदू राष्ट्र के वैचारिक प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाना और बड़े पूंजीपतियों तथा क्रोनी कैपिटलिज़्म को लाभ पहुंचाना शामिल है।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 5 नवंबर को नई दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस में विस्तार से बताया कि हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में कथित रूप से चुनावी गड़बड़ी हुई, जो शीर्ष नेतृत्व के निर्देश पर कांग्रेस पार्टी की हार सुनिश्चित करने के लिए की गई। चुनाव आयोग (EC) ने इस पर कोई ठोस जवाब नहीं दिया, जबकि लोकतंत्र में निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना आयोग की जिम्मेदारी है, न कि राजनीतिक दलों की।

चुनाव आयोग पर दबाव और पक्षपात

चुनाव आयोग पर आरोप हैं कि उसने पिछले दो CEC और उनके सहयोगियों के चयन में सरकार की पसंद को महत्व दिया। दिसंबर 2022 में संविधान में बदलाव के बाद मुख्य न्यायाधीश को चयन प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया। इसके चलते आयोग के निर्णय राजनीतिक रूप से पक्षपातपूर्ण दिखाई देते हैं। बिहार में भी इसी तरह की स्थिति देखी जा रही है। 3 अक्टूबर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने राज्य की महिलाओं के बैंक खातों में सीधे ₹10,000 ट्रांसफर किए, जबकि चुनाव की घोषणा केवल तीन दिन बाद हुई। इससे मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट की भावना को ठेस पहुंची।

मतदाता प्रक्रिया की हानि

यदि राहुल गांधी द्वारा आरोपित गड़बड़ी सही है तो मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए बूथ तक जाते हैं, लेकिन वास्तविक प्रक्रिया केवल दिखावा बनकर रह गई है। विशेष सुधार (SIR) अभ्यास के बाद भी चुनावी सूची में कई मतदाता एक से अधिक बूथ पर वोट करने के लिए सक्षम हो सकते हैं, जिन्हें ट्रैक करना मुश्किल है।

लोकतंत्र का संकट

बीते समय में बिहार में “बूथ कैप्चरिंग” की घटनाएं हुई थीं, लेकिन मजबूत और स्वतंत्र CECs जैसे TN शेषन और JM लिंगडोह ने राजनीतिक अपराधियों को नियंत्रित किया। आज, स्वतंत्रता का यह दौर कमजोर पड़ गया है और सवाल उठता है कि क्या भारत वास्तव में लोकतंत्र की मजबूत नींव पर खड़ा है।

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की याद

इन चुनौतीपूर्ण समयों में यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि कवि रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा था:- “नहीं पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध।” मामदानी ने अपनी जीत भाषण में इन्हीं पंक्तियों का उल्लेख कर संभवतः न्यूयॉर्क के हजारों समर्थकों को प्रेरित किया। उन्होंने नेहरू के प्रसिद्ध 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' भाषण की भावना का हवाला देते हुए कहा कि किसी राष्ट्र की suppressed आत्मा को व्यक्त करने का समय बहुत कम आता है।

बिहार की चुनौती

क्या आज चुनाव कार्यालय और सरकार के हाथों लोकतंत्र की आत्मा दबाई जा रही है? बिहार के पहले चरण का मतदान इस सवाल का जवाब देने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

(फेडरल सभी पक्षों के विचारों और राय को प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। लेख में दी गई जानकारी, विचार या राय लेखक की हैं और जरूरी नहीं कि वे फेडरल के विचारों को प्रतिबिंबित करें।)

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