तालिबान 2.0: भारत से नजदीकी, पाकिस्तान से दूरी! दक्षिण एशिया में बदलते समीकरण
अगस्त 2021 में सत्ता में लौटा कट्टरपंथी समूह, जिसने काबुल में अमेरिका समर्थित सरकार को हटा दिया, वह वही संगठन नहीं है, जिसने 1996 में सत्ता पर कब्ज़ा किया था।
साल 1999 में जब इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट IC-814 को आतंकियों ने अपहरण कर कंधार ले जाया था, तब किसी ने भी यह कल्पना नहीं की थी कि एक दिन तालिबान भारत से नजदीकी बढ़ाएगा और पाकिस्तान से दूरी बना लेगा। लेकिन आज की बदलती भूराजनीतिक स्थिति में यही हो रहा है। तालिबान के नेतृत्व वाले अफगानिस्तान के साथ भारत के संबंधों में, जो नई कूटनीतिक गर्मजोशी देखी जा रही है, वह भारत के लिए एक अप्रत्याशित लेकिन रणनीतिक बढ़त के रूप में सामने आ रही है। यह उस समय और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है, जब भारत का परंपरागत प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान न केवल सऊदी अरब के साथ रक्षा समझौता कर चुका है, बल्कि भारत के पुराने मित्र रूस से आधुनिक हथियार भी हासिल कर रहा है। विश्लेषकों के अनुसार, तालिबान का पाकिस्तान से हटकर भारत की ओर झुकाव, दक्षिण एशिया की भूराजनीति को नई दिशा देने वाला परिवर्तन साबित हो सकता है।
मुत्ताकी की महत्वपूर्ण भारत यात्रा
अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने नई दिल्ली का दौरा किया और भारतीय विदेश कार्यालय के अधिकारियों के साथ लंबी बातचीत की। इस कदम ने इस्लामाबाद में हलचल मचा दी। लेकिन यहां सबसे बड़ी बात यह है कि यदि यह यात्रा फलदायी सिद्ध होती है तो दक्षिण एशिया की भूराजनीति (geopolitics) को पूरी तरह ही बदलने की शक्ति रखती है।
कंधार अपहरण से आज तक – बदलाव की कहानी
तालिबान का उदय पाकिस्तान में हुआ और 1996 में उसे सत्ता मिली। 1999 में कंधार अपहरण के बाद तालिबान और पाकिस्तान ने मिलकर दबाव डाला कि भारत मसूद अजहर, सईद शेख और मुश्ताक ज़रगर को रिहा करे। उस समय भारत को मजबूरन ऐसा करना पड़ा। लेकिन 11 सितंबर 2001 के आतंकी हमलों और अमेरिका के नेतृत्व में अफ़ग़ानिस्तान पर कब्जे के बाद तालिबान और पाकिस्तान संबंध बिगड़ने लगे। पाकिस्तान को अमेरिकी दबाव में तालिबान और अल-कायदा के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी। साथ ही, पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI और सेना ने गुप्त रूप से तालिबान का समर्थन जारी रखा — इस तरह इस्लामाबाद ने दोनों तरफ संतुलन बनाए रखने की कोशिश की, लेकिन इस तरह उसने वाशिंगटन और काबुल सरकार दोनों को नाराज कर दिया।
पाकिस्तान में उठता आतंकी खतरा – टीटीपी का उदय
पाकिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के हमलों में सुरक्षा बलों को भारी क्षति हुई है। इस वर्ष के पहले तीन क्वार्टर में लगभग 2,400 पाकिस्तान सुरक्षा कर्मी TTP हमलों में मारे गए हैं—ऐसे आंकड़े इस्लामाबाद के एक थिंक टैंक द्वारा रिपोर्ट किए गए हैं। यह दिखाता है कि तत्कालीन इस्लामाबाद सरकार ने जो तालिबान को समर्थन दिया था, वह अंततः पाकिस्तान के लिए ही घातक साबित हुआ है।
तालिबान 2.0 और पाकिस्तान का टूटता रिश्ता
2021 में तालिबान फिर से काबुल में सत्ता में आए, लेकिन यह वही पुराना तालिबान नहीं था। उन्होंने 2001–2021 की अवधि में पाकिस्तान की दोहरी नाराजगी को माफ़ नहीं किया। इस अवधि में पाकिस्तान ने अपना रुख बदला था, लेकिन तालिबान ने इसे स्वीकार नहीं किया। इस बीच TTP का असर बढ़ा और इस्लामाबाद ने तालिबान से मांग की कि वह TTP को दबाए, पर तालिबान ने कहा कि वे दो अलग संगठन हैं। हाल के अफ़गान–पाक सीमा संघर्षों में लगभग 200 तालिबान लड़ाके और 58 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए, जो दोनों देशों के बीच तनाव की गवाही है।
इसलिए अब पाकिस्तान–तालिबान की दोस्ती टूटती दिख रही है — यह भारत के लिए एक रणनीतिक अवसर है, जिसे वह गंवाना नहीं चाहेगा। इसी बीच भारत ने मुत्ताकी को दिल्ली बुलाया और अफ़ग़ानिस्तान के साथ दीर्घकालीन संबंध मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।
पाकिस्तान की हड़बड़ी
मुत्ताकी की दिल्ली आगमन के दिन 9 अक्टूबर को काबुल में दो धमाके हुए। हालांकि पाकिस्तान ने जिम्मेदारी स्वीकार नहीं की, लेकिन माना जाता है कि इस्लामाबाद या उसके समर्थक गुटों ने यह कार्रवाई मुहताज चेतावनी के रूप में की—तालिबान को भारत से अधिक न जुड़ने का संदेश। अगर यह सच है तो यह पाकिस्तान की हड़बड़ी दिखाता है कि वह तालिबान पर नियंत्रण रखना चाहता है। लेकिन तालिबान अब अपनी राह खुद तय करना चाहता है: भारत, चीन और रूस के साथ संबंधों को बढ़ावा देना।
तालिबान का नया कूटनीतिक चेहरा
तालिबान ने रूस की मान्यता प्राप्त की है। चीन के साथ रणनीतिक वार्ताएं हो रही हैं और उन्हें निवेश का प्रस्ताव दिया गया है। भारत ने मुत्ताकी की यात्रा के दौरान कई इन्फ्रास्ट्रक्चर योजनाओं, खनन निवेशों और संबंध सुदृढ़ करने के प्रस्ताव दिए हैं। तालिबान को अगर विश्व स्तर पर मान्यता चाहिए तो उसे अब पुरानी कट्टर नीतियों को पुनर्मूल्यांकन करना होगा—विशेषकर महिलाओं और अल्पसंख्यकों के प्रति अपनी नीतियों को।
भारत की जटिल चुनौतियां
भारत के लिए यह अवसर सुनहरा है, लेकिन साथ ही चुनौती भी बड़ी। भारत को सामाजिक और राजनीतिक विरोध का सामना करना पड़ सकता है यदि तालिबान के साथ संबंध बढ़ाए जाएं। चीन एक बड़ी भूमिका निभा सकता है, क्योंकि वह नज़दीकी से पाकिस्तान का समर्थन करता है। अगर अफ़गान–पाकिस्तान संबंध बिगड़ते हैं तो चीन मध्यस्थ भूमिका निभा सकता है। वर्तमान तालिबान सरकार आर्थिक संकट में है, जिससे वह चीन पर आश्रित है। इस बीच भारत ने तालिबान को आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग देने के संकेत दिए हैं, जिससे तालिबान के लिए भारत से दूरी बनाना आसान नहीं होगा।