130वां संशोधन बिल: असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की चाल?
130वां संशोधन विधेयक एक ऐसी रणनीति है, जिससे जनता और विपक्ष को भ्रमित किया जा सके। लेकिन मौजूदा स्थिति में इसका पारित होना संभव नहीं है। विपक्ष को अब ज़रूरत है कि वह सरकार की असल विफलताओं पर जनता का ध्यान केंद्रित करे — न कि इस तरह के 'ध्यान भटकाऊ विधेयकों' पर लड़ाई में उलझे।;
130वां संविधान संशोधन विधेयक (Constitution Amendment Bill) सरकार की तरफ से लाया गया एक ऐसा प्रस्ताव है, जिसे कई राजनीतिक विश्लेषक जनता और विपक्ष का ध्यान असली समस्याओं से भटकाने की कोशिश मान रहे हैं। सरकार इस बिल के जरिए यह प्रावधान करना चाहती है कि यदि किसी मुख्यमंत्री या मंत्री को किसी अपराध में 5 साल या उससे अधिक की सज़ा वाले केस में गिरफ़्तार किया जाए और वह कम से कम 30 दिन तक जेल में रहे तो राष्ट्रपति या राज्यपाल उन्हें पद से हटा सकते हैं— बिना किसी न्यायिक प्रक्रिया या दोषसिद्धि के। लेकिन इस प्रावधान को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं, खासकर जब न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही किसी को "अनैतिक" या अयोग्य" ठहराया जा रहा है।
असली समस्याओं से ध्यान हटाना ही मकसद?
लेख में यह तर्क दिया गया है कि सरकार का उद्देश्य इस विधेयक को लाकर विपक्ष और जनता को गंभीर मुद्दों से भटका देना है, जैसे कि भारतीय निर्यातकों को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों से बचाने में नाकामी, चुनाव आयोग द्वारा लाखों नागरिकों का वोटिंग अधिकार छीनना, बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था की बदहाली और ऑनलाइन गेम्स पर प्रतिबंध से हजारों नौकरियों का खत्म होना।
क्या बिल को पास कराना संभव?
संविधान संशोधन के लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। मौजूदा समय में सत्तारूढ़ एनडीए के पास लोकसभा में 293 सीटें हैं, जबकि ज़रूरत है 362 की राज्यसभा में भी बहुमत नहीं है। इस स्थिति में बिल का पारित होना लगभग असंभव है।
नायडू देंगे साथ?
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, जो विपक्ष में रहते हुए 52 दिन जेल में रह चुके हैं, शायद ही ऐसे विधेयक का समर्थन करें। इसके अलावा, प्रवर्तन निदेशालय (ED) की कुल 2.5% दोषसिद्धि दर को देखते हुए, कई नेताओं को बिना सजा के वर्षों तक जेल में रखना एक आम बात बन गई है।
“ध्यान भटकाना” है असली मंशा?
लेख में कहा गया है कि यह बिल भ्रष्टाचार के खिलाफ नैतिक गुस्से का प्रतीक नहीं है, बल्कि एक राजनीतिक चाल है। राजनीति में फंडिंग आज भी पारदर्शिता से कोसों दूर है और बड़े नेता चाहे वो मोदी-शाह हों या राहुल गांधी — सब इसकी हकीकत जानते हैं।
विकास नहीं, विभाजन का सहारा
जब सरकार विकास के मोर्चे पर कमजोर पड़ती है तो बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक की राजनीति, हिंदी बनाम क्षेत्रीय भाषाओं का मुद्दा, जाति आधारित पहचान की राजनीति जैसे विभाजनकारी हथकंडों का सहारा लिया जाता है।
चुनाव आयोग की भूमिका भी सवालों में
बिहार में EC द्वारा आधार कार्ड को वोटर पहचान के रूप में स्वीकारना तो ठीक है, लेकिन मतदान के बाद 5 बजे के बाद अचानक वोट प्रतिशत बढ़ने और फिर CCTV फुटेज को नष्ट करने की बात, इन पर सवाल उठ रहे हैं। CEC ज्ञानेश कुमार ने CCTV हटाने का कारण बताया — महिलाओं की गरिमा की रक्षा। यह तर्क न सिर्फ बेतुका है, बल्कि महिलाओं को सार्वजनिक जीवन से अलग करने की कोशिश जैसा है। राष्ट्रीय महिला आयोग को इस बयान पर संज्ञान लेना चाहिए।
विपक्ष को चाहिए कि असली मुद्दों पर ध्यान दे
विपक्ष को सलाह है कि वो जनता की समस्याओं पर फोकस करे, सरकार की ध्यान भटकाने वाली चालों में न फंसे और बेरोज़गारी, महंगाई, स्वास्थ्य, शिक्षा और लोकतांत्रिक संस्थाओं की गिरती स्थिति जैसे मुद्दों को उठाए।
(फेडरल सभी पक्षों से विचार और राय प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। लेख में दी गई जानकारी, विचार या राय लेखक की हैं और जरूरी नहीं कि वे फेडरल के विचारों को प्रतिबिंबित करें।)