Nobel Peace Prize: क्या डोनाल्ड ट्रंप अब भी नोबेल शांति पुरस्कार के हकदार हैं?
अगर ट्रंप वास्तव में शांति के अग्रदूत हैं तो उन्हें नोबेल पुरस्कार मिलेगा। लेकिन यदि उनकी कार्रवाइयां शक्ति और दबाव के आधार पर रही तो “शांति विजेता” कहना अतिशयोक्ति है।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप नोबेल शांति पुरस्कार की दावेदारी कर रहे हैं, यह दावा करते हुए कि उन्होंने सात युद्धों को समाप्त किया और अब आठवें युद्ध गाजा संघर्ष को भी खत्म किया है। इसके बावजूद नोबेल समिति ने यह पुरस्कार वेनेज़ुएला के एक लोकतांत्रिक कार्यकर्ता को देने का निर्णय लिया है। इज़राइल के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दोनों ने नोबेल समिति से आग्रह किया है कि यह पुरस्कार ट्रंप को दिया जाए। पाकिस्तान के नेता भी इस समर्थन में शामिल हुए हैं।
ट्रंप की दावेदारी और विवाद
ट्रंप का कहना है कि उन्होंने निम्नलिखित युद्धों को बंद कराया है:-
* ईरान–इज़राइल
* रवांडा–कांगो
* आर्मेनिया–अज़रबैजान
* मिस्र–इथियोपिया
* सर्बिया–कोसोवो
* कंबोडिया–थाईलैंड
* भारत–पाकिस्तान
लेकिन इन दावों की सत्यता पर कई आलोचनाएं हैं।
संघर्ष अभी हल नहीं हुए
भारत–पाकिस्तान मामले में अमेरिका की भूमिका सीमित या राजनयिक रही है, न कि सैन्य जीत। ईरान–इज़राइल संघर्ष अभी भी सक्रिय है और शांत समझौता नहीं हुआ। रवांडा और कांगो विवाद में विद्रोही समूहों ने अभी भी शांति समझौते को स्वीकार नहीं किया। मिस्र, इथियोपिया और सूडान के बीच जल विवाद आज भी जारी है—ग्रैंड रेनासां डैम को लेकर मतभेद हैं। सर्बिया–कोसोवो संबंधों में NATO शांति सैनिक मौजूद है, युद्ध की स्थिति पूरी तरह नहीं बनी। कंबोडिया–थाईलैंड संघर्ष में ट्रंप का दबाव व्यापार समझौतों को रोकने का प्रचार रहा है, लेकिन स्पष्ट युद्धविराम का योगदान विवादित है।
गाजा शांति समझौते पर विवाद
ट्रंप ने दावा किया है कि उन्होंने गाजा युद्ध को समाप्त किया है—यह उनका प्रमुख मामला है। लेकिन गाजा संघर्ष का इतिहास बहुत पुराना है और प्रथम स्तर पर यह विवाद 1948 में इजराइल की स्थापना के बाद से चला आ रहा है। ट्रंप की बहस यह है कि उन्होंने इज़राइल की प्रधानमंत्री नेतन्याहू को उस समझौते को स्वीकार करने के लिए दबाया, जिसे उन्होंने पहले ठुकराया था। परंतु यह दायित्व “शांति” देने के बजाय, उन्हें “इजराइली जीत” को मानने वाला माना जा सकता है।
भेड़िये और सारस की कहानी
ट्रंप समर्थक यह तर्क देते हैं कि भेड़िये की कहानी की तरह अगर भेड़िये ने सारस को न माराकर उसे छोड़ दिया तो इसे करुणा कह सकते हैं। इसी तरह ट्रंप को भी उस गाजा समझौते के लिए श्रेय दिया जाए। लेकिन आलोचकों का कहना है कि अगर अमेरिका पूरी तरह से हथियारों की आपूर्ति बंद कर दे या कूटनीतिक समर्थन छोड़ दे तो युद्ध स्वतः खत्म हो जाता। इस दृष्टिकोण में, यह कहना कि ट्रंप ने “युक्तिपूर्वक” कार्य किया, अतिशयोक्ति है।
मौत, विनाश और आलोचना
गाजा युद्ध ने हजारों फिलिस्तीनियों की जान ली—कम से कम 67,000 लोग, जिनमें लगभग तीन प्रतिशत बच्चे थे। संरचनाएं बुरी तरह तबाह हुईं और यह युद्ध दुनिया भर में व्यापक धार्मिक और सांप्रदायिक तनाव को प्रेरित करता है। ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका की रक्षा बजट बढ़ी है और इसने अन्य देशों पर भी दबाव डाला कि वे अपने रक्षा बजट बढ़ाएं। ट्रंप को “शांति निर्माता” के बजाय “युद्ध स्तंभ” कहा जा सकता है—उन्होंने कई आक्रामक कदम उठाए हैं, जैसे ग्रीनलैंड को कब्जे का प्रस्ताव, पनामा नहर से नियंत्रण की बात, वेनेज़ुएला में नौकाओं पर हमले, ईरान पर बमबारी आदि।
अमेरिकी प्रभुत्व का पतन
ट्रंप की नीतियों ने अमेरिकी एकाधिकार को कमजोर किया है। वे यूरोपीय देशों को स्वयं सुरक्षा पर निर्भर बनाना चाहते हैं और भारत-एशिया देशों को अधिक आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं। उनकी व्यापार नीतियां, प्रवासी नियंत्रण और डॉलर पर उनकी भरसक भरोसा कम करना वैश्विक संतुलन को बदलने की दिशा में संकेत देते हैं। यदि अमेरिकी प्रभुत्व कमजोर हुआतो अन्य शक्तियां संवाद, समझौता और बहुवादवाद (multilateralism) को अधिक महत्व देंगी।
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