‘सोशलिस्ट’ और ‘सेक्युलर’ शब्दों पर विवाद, क्या है असली मुद्दा?

इस विवाद को जल्द से जल्द शांत करना भारत के संविधान और लोकतंत्र के लिए बेहतर होगा। क्योंकि यह राष्ट्रीय एकता, संवैधानिक मूल्यों और सामूहिक भावना को ठेस पहुंचा सकता है।;

Update: 2025-07-05 09:42 GMT

आरएसएस के प्रचार प्रमुख दत्तात्रेय होसबले ने आपातकाल (Emergency) की एक नई पुस्तक के विमोचन के दौरान भारतीय संविधान की भूमिका (Preamble) में 1976 के 42वें संशोधन से जोड़े गए शब्दों को हटाने का सुझाव दिया है। उन्होंने रेखांकित किया कि उस संशोधन में ‘socialist’ और ‘secular’ जोड़े गए थे और यह सवाल उठाया कि क्या इन शब्दों को अब भी भूमिका में मौजूद होना चाहिए।

होसबले का कहना है कि संविधान की भूमिका को वापस उस प्रारंभिक रूप में लाया जाए, जिसमें लिखा था:

> “WE, THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN DEMOCRATIC REPUBLIC…”

> और ‘socialist’ तथा ‘secular’ शब्दों को बीच से हटा दिया जाए।

उन्होंने उल्लेख किया कि यह विचार नया नहीं है। हिंदू विचारधारा वाले नेताओं ने समय-समय पर इन शब्दों को हटाने की मांग उठाई है। होसबले ने यह भी बताया कि मूल भूमिका में मौजूद “FRATERNITY assuring the dignity of the individual and the unity of the Nation” में “and integrity” जोड़ा गया, जिससे यह वाक्यांश संशोधित हो गया। हालांकि, यह परिवर्तन इतना विवादास्पद नहीं रहा, जितना ‘socialist’ या ‘secular’ शब्दों का जोड़।

संशोधन इतिहास और संवैधानिक चिंता

1976 वाले 42वें संशोधन के बाद 44वें संशोधन (1978) द्वारा कई अन्य बदलाव वापस लिए गए, लेकिन भूमिका में बदलाव को नहीं हटाया गया। इसके पीछे कारण था कि यह शब्द संविधान की मूल संरचना और केंद्र- वाम-धार्मिक दलों की विचारधारा से मेल खाते थे। संवैधानिक विशेषज्ञ कहते हैं कि यह शब्द संविधान की basic structure का हिस्सा बन चुके हैं, ऐसे फिर इन्हें हटाना कानूनी रूप से भी चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 28 जून को कहा कि भाषा और भावना के साथ तर्क-वितर्क होना चाहिए। किसी संविधान की भूमिका उसकी आत्मा होती है। भारत के संविधान की भूमिका अलग और लोगों द्वारा ही लिखी गई है। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश हो जिसका अपना संविधान का प्रस्तावना बदली गई हो। उन्होंने यह सुझाव दिया कि इन शब्दों को हटाना देश में और अधिक विवाद पैदा करेगा।

संविधान की विचारधारा पर विचार

राष्ट्र निर्माण के समय के नेताओं ने सिर्फ राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि जाति-आधारित असमानता की भी जड़ से लड़ाई की। इसलिए संपत्ति के वितरण, सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्ष राज्य जैसी अवधारणाएं मूल रूप से संविधान में समाहित की गईं। Socialist शब्द भारत को सामाजिक न्याय की ओर ले जाता है। Secular शब्द यह सुनिश्चित करता है कि राज्य सभी धर्मों का समान आदर करे, जबकि Integrity राष्ट्र की अखंडता दर्शाता है। यह शब्द भारतीय संवैधानिक मूल्यों और विचारकों की सोच का हिस्सा बन गए हैं।

विरोध, विवाद और अंततः क्या?

होसबले ने सुझाव दिया कि इन शब्दों को हटाना एक संवैधानिक विसंगति पैदा कर सकता है और राष्ट्र की सार्वभौमिक भावना के खिलाफ जा सकता है। उनका कहना है कि यह सवाल संवैधानिक रूप से सही लग सकता है मगर “उन्हें हटाने से ज्यादा विवाद और झगड़ा पैदा होगा; इसलिए इसकी बजाय – इन्हें भावनात्मक और संवैधानिक दृष्टिकोण से समझना बेहतर होगा।

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