नेपाल से श्रीलंका तक, सोशल मीडिया ने सत्ताओं की जड़ें हिला दीं

सोशल मीडिया की भूमिका सिर्फ़ दक्षिण एशिया में हुए तीन हालिया विद्रोहों तक ही सीमित नहीं है। इसकी शुरुआत कम से कम 15 साल पहले ट्यूनीशिया से हुई थी।;

Update: 2025-09-16 13:43 GMT
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नेपाल में हाल ही में हुए युवा‑आधारित विद्रोह (Gen Z protests) और पिछले चार सालों में भारत के पड़ोसी देशों‑बांग्लादेश व श्रीलंका में हुए दो अन्य बड़े विरोधों ने एक बड़ा सवाल उठाया है कि ये आंदोलन अचानक कैसे फैल गए? क्या ये स्व‑स्फूर्त (spontaneous) हुए या पहले से किसी योजना का हिस्सा थे? क्या भारत में भी ऐसी स्थिति बन सकती है?

क्या हुआ नेपाल में?

सरकार ने 4 सितंबर 2025 को सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की एक नई शर्त के तहत 26 सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को ब्लॉक कर दिया, जब उन्होंने स्थानीय पंजीकरण प्रक्रिया पूरी नहीं की थी। इस फैसले से युवाओं में भारी असंतोष हुआ, जिसे “Gen Z विरोध” कहा गया। युवा वर्ग ने इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला माना। विरोध-प्रदर्शनों में हजारों लोग जुटे, कपड़े‑कॉलेज यूनिफॉर्म में, हाथों में नारों और प्लेकार्ड्स के साथ। उन्होंने सोशल मीडिया प्रतिबंध, भ्रष्टाचार व राजनीतिक पारदर्शिता की कमी की शिकायत की। विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए—काठमांडू सहित कई जगहों पर प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें हुईं। पुलिस ने आंसू गैस, वॉटर कैनन, रबर की गोलियां और गोलीबारी का इस्तेमाल किया। कम से कम 19 लोग मारे गए, 100‑300 से अधिक घायल हुए। संसद भवन सहित कुछ सरकारी इमारतें तोड़‑फोड़ या आग के हवाले हुईं। सरकार को सोशल मीडिया प्रतिबंध वापस लेना पड़ा। गृह मंत्री ने इस्तीफा दिया।

अन्य देशों में हुए समान आंदोलन

बांग्लादेश में भी कुछ समय पहले छात्रों एवं युवा जनों ने न्याय, आर्थिक अवसरों और सरकारी जवाबदेही की मांग की थी। वहां भी सोशल मीडिया ने आंदोलन को संग‑ठित किया। श्रीलंका में आर्थिक संकट व महंगाई ने जनाक्रोश को जन्म दिया, जहां जनता ने बड़े पैमाने पर सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किए। सोशल मीडिया ने वहां भी सूचना साझा करने और लोगों को मंच प्रदान करने में अहम भूमिका निभाई।

सामाजिक मीडिया: आंदोलन की धुरी

सोशल मीडिया ने केवल सूचना साझा करने का माध्यम नहीं, बल्कि विरोध का प्रतीकात्मक और समन्वयकारी मंच बनाया। युवा लोग हैशटैग्स, वायरल पोस्ट्स, ऑनलाइन मीम्स आदि के ज़रिये एक दूसरे से जुड़े, सूचना फैलाई और प्रदर्शन की दिशा तय हुई। जब सरकारों ने सोशल मीडिया पर बंदिशें लगाईं या दर्ज न होने की धमकी दी, विरोध की चिंगारी बढ़ी। ये कदम युवाओं के बीच “स्वतंत्र आवाज़” और “कथित जनादेश” की सीमाएं तय करने के प्रयास के रूप में देखे गए।

आंदोलन पूरी तरह से नियन्त्रण से बाहर थे?

नेतृत्व की स्पष्टता कम थी। आंदोलन अक्सर नेता‑रहित दिखे। कोई खास व्यक्ति या पार्टी पूरे आंदोलन को नियंत्रित नहीं कर सकी। ये युवा, छात्र और आम नागरिक थे, जो विभिन्न माध्यमों से जुड़ते गए। सरकारें और सुरक्षा तंत्र इस अचानक हुए जनाक्रोश के लिए तैयार नहीं थे, सुरक्षाबलों द्वारा प्रतिक्रिया में देरी हुई और कभी‑कभी ज़बरदस्ती हुई।

आगे की राह

नेपाल में इस विरोध ने प्रधानमन्त्री KP शर्मा ओली के इस्तीफे और संसद भंग होने तक का मार्ग प्रशस्त किया। सरकार ने सोशल मीडिया प्रतिबंध वापस लिया। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि विरोध के बाद किस तरह की स्थायी राजनीतिक परिवर्तन होंगे। संरचनात्मक सुधार, निर्णय‑प्रक्रिया में पारदर्शिता और युवाओं को राजनीतिक एवं आर्थिक रूप से शामिल करना भविष्य में महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं।

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