100 दिन में बदली तस्वीर, ‘आप’ की दिल्ली से दूरी बढ़ी,जमीनी ताकत पर सवाल
दिल्ली में हार के बाद AAP अंदरूनी कलह, नेताओं के पलायन और कमजोर नेतृत्व से जूझ रही है। छात्र संगठन ASAP से वापसी की कोशिश में जुटी है।;
दिल्ली की सत्ता पर 10 साल के शासन के बाद आम आदमी पार्टी (AAP) की पकड़ ढीली पड़ती नजर आ रही है। पिछले 100 दिनों में पार्टी को राजनीतिक, सांगठनिक और छवि के स्तर पर कई गंभीर झटके लगे हैं। कभी स्थानीय मुद्दों पर ऊंची आवाज़ उठाने वाली AAP की दिल्ली में राजनीतिक और प्रशासनिक उपस्थिति दोनों ही कमजोर हुई है। पार्टी अंदरूनी असंतोष, अपने पारंपरिक वोटबैंक के मोहभंग और ज़मीनी कार्यकर्ताओं की घटती सक्रियता से जूझ रही है। खासकर वे मतदाता, जो कांग्रेस छोड़कर 2013 में पार्टी के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान से जुड़े थे।
विधानसभा में ताकत घटी
दिल्ली विधानसभा में पार्टी की सीटें 62 से घटकर 22 रह गई हैं, वहीं नगर निगम पर भी AAP का नियंत्रण खत्म हो गया है। हाल ही में हुए मेयर चुनावों में AAP ने हिस्सा तक नहीं लिया और बीजेपी ने जीत दर्ज की। साथ ही, एंटी-डिफेक्शन कानून MCD पर लागू न होने के चलते AAP के कई पार्षद बीजेपी में चले गए, जिससे पार्टी की संख्या 134 से घटकर 97 रह गई।आंतरिक कलह और नेतृत्व की चुप्पी
AAP ने अपने दिल्ली नेतृत्व को अन्य राज्यों में जिम्मेदारियां सौंपकर राष्ट्रीय विस्तार की रणनीति अपनाई है। पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया अब पंजाब प्रभारी हैं, जहां वे और पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन चुनावी रणनीति पर काम कर रहे हैं। अरविंद केजरीवाल ने भी अपना ध्यान पंजाब की ओर केंद्रित किया है। पूर्व दिल्ली संयोजक गोपाल राय को गुजरात भेजा गया है, जबकि अन्य नेताओं को विभिन्न चुनावी राज्यों में लगाया गया है। लेकिन दिल्ली में नेतृत्व का खालीपन गहराता जा रहा है।
18 मई को यह संकट तब उजागर हुआ जब 15 पार्षदों ने इस्तीफा देकर ‘इंद्रप्रस्थ विकास पार्टी’ नाम से नया मोर्चा बना लिया। कुछ ही दिन बाद एक और पार्षद उनके साथ जुड़ गए। पार्टी के पूर्व विधायक और अब बीजेपी में शामिल कैलाश गहलोत जैसे नेता भी सार्वजनिक मंचों से गायब हैं, जिससे कई लोग इसे AAP से दूरी बनाने की रणनीति मान रहे हैं।
स्वाति मालीवाल की बगावत
राज्यसभा सांसद और कभी पार्टी में महिला अधिकारों की प्रबल आवाज़ रहीं स्वाति मालीवाल अब पार्टी की कटु आलोचक बन चुकी हैं। उन्होंने केजरीवाल के सहयोगी बिभव कुमार पर मारपीट का आरोप लगाकर नेतृत्व से सीधा टकराव ले लिया। विधानसभा चुनावों से पहले उन्होंने सरकार की विफलताओं पर भी खुलकर बोला, जिसे बीजेपी की रणनीति से मेल खाते देखा गया।अब मालीवाल पंजाब सरकार को कानून-व्यवस्था और जनसेवाओं पर घेर रही हैं।
कानूनी मोर्चे पर भी घेराबंदी
बीजेपी लगातार AAP पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाती रही है। मई में दिल्ली सरकार के सतर्कता विभाग ने पूर्व स्वास्थ्य मंत्रियों सौरभ भारद्वाज और सत्येंद्र जैन के खिलाफ अस्पताल निर्माण में गड़बड़ियों की जांच की अनुमति मांगी है।मनीष सिसोदिया और जैन पर 2,000 करोड़ के “क्लासरूम घोटाले” में मामला दर्ज हुआ है। वहीं केजरीवाल के खिलाफ द्वारका में अवैध होर्डिंग्स पर फंड के दुरुपयोग का केस भी दर्ज हुआ है। शराब नीति घोटाले में भी केस की सुनवाई कोर्ट में जारी है।
अब आगे का क्या है रास्ता?
दिल्ली में अब पार्टी के सीमित नेता ही ज़िम्मेदारी संभाल रहे हैं। दिल्ली राज्य संयोजक बने सौरभ भारद्वाज स्थानीय मामलों को देख रहे हैं। विपक्ष की नेता आतिशी बिजली कटौती और स्कूल फीस बढ़ोतरी जैसे मुद्दों पर मुखर रही हैं। निजी स्कूलों पर कानून बनाने की घोषणा को AAP ने अपनी उपलब्धि बताया है।
21 मई को AAP ने अपना छात्र संगठन ‘ASAP’ (Association of Students for Alternative Politics) के नाम से फिर शुरू किया। इस लॉन्च में केजरीवाल और सिसोदिया की दिल्ली में दुर्लभ सार्वजनिक उपस्थिति देखी गई। इसका मकसद छात्र राजनीति के ज़रिए पार्टी की जमीनी पकड़ को फिर से मजबूत करना है।
यह पहल फिलहाल बिखरी हुई और असंगठित दिख रही हैं। कभी सड़क पर संघर्ष और रोज़ प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए मशहूर AAP की राजनीतिक गतिविधियां अब शांत होती नजर आ रही हैं। आने वाले महीनों में पार्टी के सामने खुद को फिर से स्थापित करने की चुनौती सबसे बड़ी होगी खासकर तब, जब विपक्ष में रहकर उसे नई भूमिका निभानी है।