गठबंधन से दूरी, बिहार में सभी सीटों पर लड़ेगी आम आदमी पार्टी
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में आम आदमी पार्टी ने INDIA गठबंधन से अलग होकर सभी सीटों पर अकेले लड़ने का फैसला किया है।;
लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हर एक दल को सियासी समर में उतरने का अधिकार है। अपनी पार्टी के विस्तार का भी आधार है। चुनाव में जीत और हार का सिलसिसा चलता रहता है, हमारे इरादे मजबूत हैं। इस तरह के बयान हम सब अलग अलग दलों के नेताओं से सुनते हैं। उनमें से ही एक दल है आम आदमी पार्टी। आम आदमी पार्टी की इस समय देश के एक सूबे पंजाब में सरकार है, दिल्ली में विपक्ष में है। गुजरात और गोवा में जमीनी स्तर पर खुद को विकल्प देने भरोसा देती है। ऐसे में आम आदमी पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया है। लेकिन चुनाव वो इंडिया गठबंधन के बैनर तले या महागठबंधन के बैनर नहीं लड़ेंगे। चुनावी मैदान में एनडीए से अकेले भिड़ेंगे।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 पर आप दिल्ली अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज ने कहा, "पार्टी ने फैसला किया है कि वह बिहार में सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी... गुजरात उपचुनाव के दौरान तय हुआ था कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी निर्धारित सीटों पर चुनाव लड़ेंगी, लेकिन आखिरी सीट पर कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ उम्मीदवार घोषित कर दिया... हम बिहार चुनाव स्वतंत्र रूप से लड़ रहे हैं..
आप का यह फैसला उस स्थिति की ओर इशारा करता है जहां विपक्षी दलों के बीच समन्वय और विश्वास की कमी स्पष्ट दिखाई देती है। INDIA गठबंधन में आम आदमी पार्टी की भूमिका को लेकर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। गुजरात में सीट बंटवारे को लेकर हुए टकराव के बाद अब पार्टी ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वह बिहार में अपने दम पर मैदान में उतरेगी।
चुनावी समीकरणों में नया मोड़
बिहार विधानसभा चुनाव में पहले से ही एनडीए, महागठबंधन और वाम दलों के समीकरण मौजूद हैं। अब ‘आप’ के स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने के फैसले से चुनावी मुकाबला और जटिल हो सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आम आदमी पार्टी बिहार में किस प्रकार का जन समर्थन जुटा पाती है। बिहार की राजनीति मुख्य रूप से जातीय समीकरण, गठबंधन शक्ति और क्षेत्रीय प्रभावों से संचालित होती है। ऐसे में AAP जैसी दिल्ली और पंजाब तक सीमित पार्टी के लिए पूरे राज्य में अकेले उतरना एक साहसी लेकिन जोखिमपूर्ण दांव है।
क्या 'आप' किसी एक जाति या क्षेत्र पर प्रभाव डाल पाएगी? क्या पार्टी वाकई सत्ता के समीकरण को प्रभावित कर पाएगी या सिर्फ वोट कटेगा? यह दोनों सवाल बेहद खास है। आखिर आम आदमी पार्टी के विश्वास के पीछे की वजह क्या है। दिल्ली और पंजाब में सत्ता में रहकर ‘आप’ ने शिक्षा, स्वास्थ्य और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर काम किया है। यही मॉडल बिहार में पेश किया जाएगा।पार्टी नेतृत्व मानता है कि बिहार की जनता बदलाव चाहती है, और वो बदलाव 'आप' पेश कर सकती है।
दिल्ली के मोहल्ला क्लिनिक, सरकारी स्कूलों में सुधार, और मुफ्त बिजली-पानी जैसी योजनाएं बिहार के ग्रामीण और शहरी मतदाता को आकर्षित कर सकती हैं। लेकिन आप का यह फैसला केवल बिहार तक सीमित नहीं है। यह INDIA गठबंधन में चल रहे अंतर्विरोधों की झलक भी देता है। लोकसभा चुनावों में भी पंजाब और दिल्ली में सीट बंटवारे को लेकर काफी तनाव रहा था।इस कदम से यह भी स्पष्ट हो गया है कि विपक्षी एकता की बातें अब केवल बयानबाज़ी तक सीमित हैं। 'आप' का अकेले लड़ना विपक्षी खेमें में दरार को और चौड़ा करता है।
चुनौती या मौका?
अगर 'आप' बिहार में एक या दो सीट भी जीतती है या प्रभावी प्रदर्शन करती है, तो यह पार्टी के लिए राष्ट्रीय विस्तार की नई खिड़की खोल सकती है।लेकिन अगर उसे ज़मीन नहीं मिलती, तो यह प्रयोग भविष्य की रणनीतियों को झटका भी दे सकता है।आम आदमी पार्टी का बिहार में अकेले उतरना एक रणनीतिक संदेश है—गठबंधनों के भरोसे नहीं, बल्कि अपनी पहचान और मुद्दों के बल पर आगे बढ़ना।