हरियाणा के फौजी परिवारों में चिंता, 2026 के बाद क्या करेंगे अग्निवीर?
अग्निपथ योजना से जुड़ी उम्मीदें अब असमंजस में हैं। चार साल की सेवा के बाद अग्निवीर युवाओं को भविष्य की चिंता सता रही है। सेना की इज़्ज़त या गार्ड की नौकरी?
जब केंद्र सरकार ने 2022 में अग्निपथ भर्ती योजना शुरू की, तो उसके प्रचार की तस्वीरें बहुत सोच-समझकर बनाई गई थीं लड़ाकू वर्दी में दुबले-पतले युवा, उनके पीछे लहराता तिरंगा, और यह वादा कि भारत के गांव अब एक नई पीढ़ी के सैनिकों को सीमाओं पर भेजेंगे। हरियाणा जैसे राज्यों में, जहां सेना में भर्ती होना सिर्फ रोज़गार नहीं बल्कि पहचान है, यह योजना पुरानी आकांक्षा को नए तरीके से पूरा करने का वादा लग रही थी “वर्दी में स्थायी सरकारी नौकरी” और उसके साथ आने वाली इज़्ज़त।
अब पक्की नौकरी वाली इज़्ज़त मिल गई थी
झज्जर जिले के एक किसान परिवार से आने वाले 19 वर्षीय दिनेश (बदला हुआ नाम) को आज भी वह दिन याद है जब उन्होंने अग्निपथ की शारीरिक और लिखित परीक्षा पास की थी। झज्जर का संबंध भारतीय सेना से दशकों पुराना है यहां के ढाकला गांव के रिसालदार बदलू सिंह को प्रथम विश्व युद्ध के दौरान बहादुरी के लिए विक्टोरिया क्रॉस से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था।
दिनेश बताते हैं, “घर में ढोल बजा था… सबने कहा अब पक्की नौकरी वाली इज़्ज़त मिल गई।” मिठाई बांटी गई, रिश्तेदारों ने बधाई दी। लेकिन तीन साल बाद माहौल बदल गया है। अब 22 साल के दिनेश 2026 की गिनती कर रहे हैं — जब उनकी चार साल की सेवा अवधि खत्म हो जाएगी।
योजना का ढांचा और असमंजस की शुरुआत
अग्निपथ योजना के तहत 17.5 से 21 वर्ष के युवाओं को चार साल के लिए “अग्निवीर” के रूप में भर्ती किया जाता है। इस अवधि के बाद 25 प्रतिशत अग्निवीरों को स्थायी रूप से 15 वर्षों के लिए सेना में रखा जाता है, बाकी को एकमुश्त वित्तीय पैकेज और प्रमाणपत्र देकर विदा कर दिया जाता है।
दिनेश कहते हैं, “2026 के बाद क्या होगा, यही रोज़ की बातचीत होती है।” उनके बड़े भाई अश्वनी कुमार बताते हैं कि अस्थिर भविष्य का असर सामाजिक जीवन पर भी पड़ने लगा है। भाई के लिए अब तक कोई शादी का रिश्ता नहीं आया। लोग सुनते हैं कि 2026 में रिटायर हो जाएगा, तो पीछे हट जाते हैं। सोचिए, 22 साल की उम्र में रिटायर्ड का टैग कौन लगाना चाहेगा?”
सरकार के प्रयास और युवाओं की चिंता
इस हफ्ते हरियाणा सरकार ने ‘सेवानिवृत्त’ अग्निवीरों को राहत देते हुए सरकारी नौकरियों में ग्रुप C और D पदों पर आयु सीमा में 3 से 5 वर्ष की छूट देने की घोषणा की। इसके साथ ही पुलिस, वन रक्षक, जेल वार्डन जैसे पदों में भी आरक्षण और कौशल आधारित नौकरियों में अवसर देने की बात कही गई।
केंद्र ने भी हाल ही में राज्यों और निजी सुरक्षा एजेंसियों से कहा है कि वे पूर्व-अग्निवीरों को सुरक्षा नौकरियों में प्राथमिकता दें, क्योंकि उनके पास अनुशासित सैन्य प्रशिक्षण है। लेकिन यह घोषणा, जो कागज़ पर अवसर लगती है, व्यवहार में चिंता बढ़ा रही है क्या चार साल की सेना सेवा के बाद युवाओं को मॉल, कॉलोनियों या एटीएम के बाहर गार्ड की वर्दी पहननी पड़ेगी?
'हम सैनिक बनना चाहते थे, बाउंसर नहीं'
रोहतक के पास के एक गांव में रहने वाले 22 वर्षीय रितिक (बदला हुआ नाम) कहते हैं, “हमने सपने में सैनिक बनने की सोची थी, नाइटक्लब का गार्ड नहीं।” वे बताते हैं कि अगर नाम चयनित 25 प्रतिशत में नहीं आया तो उन्हें मजबूरन दूसरी नौकरियां देखनी पड़ेंगी।
उनकी तनख्वाह से परिवार ने पुराने कर्ज का कुछ हिस्सा चुकाया और बहन की कॉलेज फीस भरी। लेकिन वे जानते हैं कि निजी सुरक्षा की नौकरी में कम वेतन, सीमित लाभ और अस्थिर भविष्य मिलेगा। उनके पिता सवाल उठाते हैं अगर आखिर में गार्ड बनना ही था, तो यहां गांव में ही नौकरी कर लेता, इतनी जान जोखिम में क्यों डाली?
सेना बनाम सुरक्षा गार्ड सम्मान की लड़ाई
रितिक के पिता का सवाल सीधा है “अगर अंत में गेट पर खड़े होकर सलाम करना ही है, तो सैनिक और गार्ड में फर्क क्या रह जाएगा?” यही सवाल अब हजारों परिवारों की बेचैनी का कारण बन गया है।
सेना हमेशा सिर्फ रोज़गार नहीं, बल्कि त्याग और सम्मान की जीवन कहानी रही है। लेकिन अग्निपथ योजना ने इस जीवनगाथा को चार वर्षों में समेट दिया है और बाकी सब बाज़ार पर छोड़ दिया है।
कोचिंग संस्थानों पर असर और आलोचना की आवाज़ें
रोहतक के मिशन डिफेंस एकेडमी के संचालक रमेश दुबे कहते हैं, “अग्निपथ से किसी को फायदा नहीं हुआ। चार साल बाद युवा बेरोजगार हो जाएंगे, सेना में अनुभवी सैनिकों की कमी होगी, और हम जैसे ट्रेनिंग संस्थान बंद हो रहे हैं। दुबे के अनुसार, पहले रोहतक में करीब 300 आर्मी ट्रेनिंग एकेडमियां थीं, अब मुश्किल से तीन-चार बची हैं।
'यूज़-एंड-थ्रो सोल्जर' का खतरा
झज्जर के रिटायर्ड कर्नल योगेंद्र सिंह का कहना है कि अग्निपथ जैसी योजनाएं रणनीतिक सोच की कमी से पैदा होती हैं। वे कहते हैं, सरकार सैनिकों को दीर्घकालिक राष्ट्रीय संपत्ति के रूप में देखने के बजाय उन्हें सस्ता और अल्पकालिक श्रम मान रही है। आधे-अधूरे प्रशिक्षण के बाद सैनिकों को छोड़ देना सेना की संस्कृति को कमजोर करेगा।”
अक्टूबर में कांग्रेस के पूर्व-सैनिक विभाग के प्रमुख कर्नल (रिटायर्ड) रोहित चौधरी ने कहा था कि “2026 सरकार के लिए बड़ा संकट लेकर आएगा जब हजारों प्रशिक्षित युवा सिर्फ गार्ड की नौकरी तक सीमित रह जाएंगे।” उन्होंने सवाल उठाया, “अगर सरकार सच में अग्निवीरों को सरकारी नौकरियों में समाहित करना चाहती थी, तो उसे निजी सुरक्षा एजेंसियों से उन्हें रखने का अनुरोध क्यों करना पड़ा?”
हरियाणा जैसे राज्य, जहां लगभग हर गली में “फौजी परिवार” है, अब असमंजस में हैं। जिन युवाओं ने देश की सेवा का सपना देखा था, वे अब यह सोचने को मजबूर हैं कि चार साल की सेवा के बाद क्या वाकई उन्हें सिर्फ गार्ड की टोपी पहननी होगी। अग्निपथ योजना ने एक पीढ़ी को अनुशासन सिखाया है लेकिन क्या इस अनुशासन के बदले उन्हें सिर्फ अस्थायी सम्मान और अस्थिर भविष्य ही मिलेगा?