इतिहास की खुदाई या विचारधारा की लड़ाई? कीलाड़ी पर ASI ने तोड़ी चुप्पी
कीलाड़ी रिपोर्टों में देरी और पक्षपात के आरोपों पर एएसआई ने सफाई दी। प्रवक्ता ने कहा- रिपोर्टें वैज्ञानिक जांच के बाद ही प्रकाशित की जाती हैं।;
Keeladi Excavation: कीलाड़ी खुदाई रिपोर्ट के प्रकाशन में देरी और संस्थागत दबाव के आरोपों के बीच द फेडरल ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की आधिकारिक प्रवक्ता नंदिनी भट्टाचार्य साहू से बातचीत की। इस बेबाक बातचीत में साहू ने रिपोर्ट में देरी के कारणों, निष्पक्षता पर उठे सवालों और एएसआई के वैज्ञानिक मानकों को लेकर स्थिति स्पष्ट की।
पहली दो रिपोर्टें अब तक अप्रकाशित, तो तीसरी रिपोर्ट क्यों?
सबसे पहले यह सवाल उठा कि जब पहली और दूसरी चरण की कीलाड़ी खुदाई रिपोर्टें अब तक प्रकाशित नहीं हुईं, तो तीसरी रिपोर्ट को लेकर एएसआई क्यों सक्रिय है? इस पर साहू ने कहा, एएसआई अपनी पहल पर तीसरी रिपोर्ट प्रकाशित नहीं कर रही है। तीसरे चरण के उत्खननकर्ता ने खुद कीलाड़ी और कोडुमनाल (2018) की खुदाई रिपोर्ट लिखने की अनुमति मांगी थी। कीलाड़ी खुदाई उन्होंने 2017-18 में की थी। यह एएसआई की मानक प्रक्रिया है कि जो अधिकारी खुदाई करता है, वह रिपोर्ट भी जमा करता है। बस वही हो रहा है।
क्या अमरनाथ रामकृष्ण ने रिपोर्ट में संशोधनों का विरोध किया?
यह सवाल भी उठा कि क्या कीलाड़ी के पूर्व उत्खननकर्ता अमरनाथ रामकृष्ण ने एएसआई को किसी औपचारिक आपत्ति से अवगत कराया है?
साहू का जवाब था – "नहीं, अब तक उन्होंने महानिदेशक को कोई औपचारिक सूचना नहीं दी है। कम से कम मेरी जानकारी में ऐसा कुछ नहीं है।
क्या अमरनाथ रामकृष्ण को उनके निष्कर्षों के लिए निशाना बनाया गया है?
इस आरोप को साहू ने सिरे से खारिज किया। उन्होंने कहा, "बिलकुल नहीं। रामकृष्ण द्वारा की गई खुदाइयों सहित सभी परियोजनाएं एएसआई के महानिदेशक द्वारा पूरी तरह वित्तपोषित होती हैं। किसी को निशाना बनाने का सवाल ही नहीं उठता।"
रिपोर्टों में देरी को संस्थागत सज़ा क्यों माना जा रहा है?
साहू ने स्पष्ट किया, "यह धारणा सही नहीं है। हम किसी भी खुदाई की रिपोर्ट तभी प्रकाशित करते हैं जब विशेषज्ञों द्वारा उसकी पूरी तरह से समीक्षा कर ली जाती है। यह केवल कीलाड़ी के लिए नहीं, भारत के हर स्थल पर लागू होता है।"
क्या एएसआई रामकृष्ण के निष्कर्षों का विरोध कर रही है?
इस सवाल पर साहू ने कहा, यह विरोध नहीं बल्कि वैज्ञानिक समीक्षा की सामान्य प्रक्रिया है। रामकृष्ण हमारे सहकर्मी हैं। जब वरिष्ठों को किसी रिपोर्ट में तथ्यात्मक अंतर या वैज्ञानिक पुष्टि की आवश्यकता लगती है, तो वे संशोधन की सलाह देते हैं। यही हुआ है।
तमिलनाडु सरकार की नई खुदाई और ताज़ा खोजें?
साहू ने कहा कि एएसआई इस पर अभी टिप्पणी नहीं कर सकती, क्योंकि आधिकारिक रूप से कुछ भी प्रस्तुत नहीं किया गया है। तमिलनाडु सरकार स्वतंत्र रूप से कार्य कर रही है और उनके पास पूर्ण अधिकार है कि वे वैज्ञानिक विश्लेषण करें और प्रक्रिया अपनाएं।
क्या सरस्वती परियोजना को प्राथमिकता दी जा रही है?
इस आरोप को भी साहू ने नकारते हुए कहा, जैसे कीलाड़ी में दो सत्रों तक खुदाई हुई, वैसे ही सरस्वती परियोजना से जुड़ा बहेज स्थल भी मौसम के कारण इस वर्ष बंद हुआ है। सभी स्थल अपने चक्र और निष्कर्षों के अनुसार स्वतंत्र रूप से संचालित होते हैं।"
श्रीरामन की रिपोर्ट की क्या स्थिति है?
जब पूछा गया कि श्रीरामन ने कहा था कि तीसरे चरण की खुदाई में कोई बड़ा निष्कर्ष नहीं निकला, फिर रिपोर्ट क्यों प्रकाशित हो रही है?साहू ने जवाब दिया, "एएसआई ने रिपोर्ट लिखने की पहल नहीं की है। श्रीरामन ने स्वयं कीलाड़ी और एक अन्य स्थल की रिपोर्ट लिखने की अनुमति मांगी है। रिपोर्ट जमा होने के बाद वही समीक्षा प्रक्रिया लागू होगी।"
क्या हर उत्खननकर्ता रिपोर्ट लिख सकता है?
इस पर उन्होंने कहा, बिलकुल। हर उत्खननकर्ता को उस खंड पर रिपोर्ट लिखने का अधिकार है, जिस पर उसने काम किया है। यह अनुमति पत्र में स्पष्ट शर्त होती है। रकिगढ़ी की तरह जहां कई टीमों ने खुदाई की है, हर टीम ने या तो रिपोर्ट सौंपी है या प्रक्रिया में है।
एएसआई की प्रवक्ता ने स्पष्ट किया कि संस्थान रिपोर्टों के प्रकाशन में वैज्ञानिक निष्पक्षता, प्रमाणिकता और प्रक्रिया को सर्वोपरि मानता है। विवादों के बीच यह बातचीत संस्थागत पारदर्शिता की एक झलक देती है, लेकिन कीलाड़ी जैसे ऐतिहासिक स्थलों की रिपोर्टों को समय पर प्रकाशित करना, शोध और जनहित के लिहाज़ से अनिवार्य है।