बिहार चुनाव की ग्राउंड रिपोर्ट : 'जुमलों से नहीं जीता जाएगा बिहार', ऐसा क्यों बोले कैमूर के शिक्षक

बिहार की चुनावी यात्रा के तहत द फेडरल देश की टीम कैमूर इलाके में पहुंची। यहां कुछ ऐसे टीचर्स से बात की जोकि डिग्री कॉलेज के छात्रों को पढ़ाते हैं। उनसे यह समझने की कोशिश की कि आखिर बिहार के वोटर्स के मन में क्या चल रहा है?

By :  Lalit Rai
Update: 2025-10-14 17:51 GMT

बिहार का कैमूर कभी नक्सलवादी हिंसा के लिए बड़ा कुख्यात रहा है, लेकिन अब यहां शांति है। हालांकि चुनावी मौसम में उस नक्सलवादी दौर का साया जरूर पड़ता है क्योंकि मतदान दोपहर तीन बजे तक निपटा दिया जाता है। लेकिन नक्सलवाद अब धरातल पर नहीं दिखाई देता। नक्सल हिंसा से उबरा कैमूर में इन दिनों चुनावी फिज़ा गर्म है। द फेडरल देश की टीम अपनी चुनावी यात्रा के तहत पहुंची कैमूर के राजर्षि शारिवान डिग्री कॉलेज, जोकि सरकारी अऩुदान से चलने वाला एक डिग्री कॉलेज है। यहां उन प्राध्यापकों से बातचीत की जोकि राज्य के भविष्य यानी युवा पीढ़ी को संवारने में अपना योगदान दे रहे हैं।

हमने जानना चाहा कि आखिर कैमूर में राजनीतिक दलों के चुनावी वायदों का कैसा असर है? लोग इसे किस तरह से ले रहे हैं? यही सवाल हमने किया डॉ. मृत्युंजय कुमार सिंह से तो वह बोले, "तेजस्वी यादव ने हर घर एक सरकाराी नौकरी का जो वायदा किया है, वो बिहार के लिहाज से बहुत बड़ी बात है। उसका असर भी दिखना चाहिए लेकिन इसमें बहुत सी व्यावहारिक दिक्कतें हैं।"


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किस तरह की दिक्कतें?, इस सवाल पर डॉ.सिंह कहते हैं, "देखिए, राज्य में लगभग 3 करोड़ घर होंगे। तो इतनी बड़ी तादाद में नौकरियां कैसे दे पाएँगे? 70 साल में इतनी नौकरियां नहीं दी गई हैं, जितना इस चुनाव में वायदा किया जा रहा है। तो ये संभव ही नहीं है। इसलिए लगता है कि यह जुमला ही साबित होगा। 10 हजार रुपये भी चुनावी मौसम में दिया जा रहा है, लेकिन पब्लिक सब समझती है।" 

तो क्या इस चुनाव से भी कुछ नहीं बदलने वाला? इस सवाल के जवाब में डिग्री कॉलेज के एक अन्य प्राध्यापक डॉ. अमित कहते हैं, "जनता तो बदलाव चाहती है। बिहार में पिछले करीब 20 साल से नीतीश की ही सरकार है। शुरुआती 10 साल तक तो नीतीश की सरकार अच्छी चली लेकिन उसके बाद नीतीश की ढुलमुल नीति से जनता परेशान हो गई।"

डॉ. मृत्युंजय कुमार सिंह इसे और विस्तार से समझाते हैं। बोले,"नीतीश के आने के बाद से बिहार में बदलाव तो आया। खासकर, 2005 से 2010 के कार्यकाल के दौरान राज्य ने सराहनीय बदलाव देखे। तब यूपीए सरकार में रघुवंश प्रसाद केंद्र में मंत्री थे। उन्होंने बिहार को केंद्र से बहुत पैसा दिया। उसे नीतीश कुमार ने बहुत धरातल पर उतारा। लेकिन 2010 के बाद स्किल डेवलपमेंट नहीं हुआ। जब से डबल इंजन सरकार आई है, तब से चौमुखी विकास नहीं हो पाया।"

अगर पिछले करीब बीस साल से नीतीश की सरकार है तो फिर लालू प्रसाद यादव के दौर के कथित जंगल राज को अब तक चुनावों में इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है? इस सवाल पर इस कॉलेज के एक अन्य प्राध्यापक डॉ. शैलेंद्र कहते हैं, "दरअसल उस दौर को देखने वाली पीढ़ी ने इसे अपनी अगली पीढ़ी को बताया कि वो दौर कैसा था। इस तरह जंगलराज अब तक जिंदा रहा।"

इस सवाल पर कि तेजस्वी यादव के खिलाफ मुकदमे की मंजूरी को क्या आरजेडी चुनावी मौसम में नहीं भुनाएगी?, डॉ. शैलेंद्र कहते हैं, "दोनों पक्ष भुनाएंगे। विरोधी इनके खिलाफ भुनाएंगे तो ये सहानुभूति के लिए भुनाएंगे।"

इस बार बिहार चुनाव में कौन सा तबका सबसे अहम साबित होने वाला है? डॉ. शैलेंद्र बताते हैं कि महिलाओं का वोट बहुत अहम हो गया है। उनके मुताबिक, "महिलाओं का आर्थिक उत्थान बहुत हुआ है इन बीस वर्षों में।"

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