बिहार: मतदाता सूची सुधार में चुनाव आयोग की ‘गोपनीयता की चादर’ बनी बड़ी खामी

इसकी तैयारियां चुनाव आयोग द्वारा घोषणा से कई दिन या हफ्तों पहले ही शुरू कर दी गई होंगी, फिर भी इससे सीधे प्रभावित होने वाले पक्षों को इस बारे में अंधेरे में रखा गया।;

By :  Abid Shah
Update: 2025-07-05 14:50 GMT
बीजेपी और जेडीयू जो बिहार और केंद्र दोनों में सत्ता में हैं, ने या तो इस विशेष व्यापक पुनरीक्षण पर चुप्पी साध रखी है, या फिर इसका समर्थन जताया है। (फाइल फोटो)

बिहार में चल रहे मतदाता सूची पुनरीक्षण की शुरुआत ही एक विसंगति के साथ हुई, मुख्यतः इसलिए क्योंकि इसे 25 जून को लागू होने से ठीक 24 घंटे पहले तक गुप्त रखा गया। इस तरह के अभियान की तैयारी चुनाव आयोग (ECI) द्वारा कई दिन या हफ्ते पहले ही शुरू कर दी गई होगी, लेकिन मुख्य हितधारकोंजैसे  मतदाता, राजनीतिक दल और प्रत्याशी को इस प्रक्रिया की भनक तक नहीं दी गई।

सत्ता पक्ष को मिला लाभ?

यह कहना गलत होगा कि सभी पूरी तरह अंधेरे में थे। चुनाव आयोग द्वारा 24 जून को इस विशेष पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) के ऐलान से पहले ही 8 करोड़ से अधिक फॉर्म छपवाए जा चुके थे, जो एक बड़ा संकेत है कि इस पर लंबे समय से काम चल रहा था।

इन फॉर्म्स की छपाई और पूरे बिहार में इनका वितरण करने में कई दिन लगे होंगे। इसके बाद इन फॉर्म्स को सरकारी कर्मियों के माध्यम से हर घर तक पहुंचाना और फिर उन्हें भरवाकर वापस लेना भी एक संगठित प्रक्रिया है, जिसके लिए प्रशिक्षण और योजना की जरूरत होती है।

मतदाता से दो बार संपर्क करना होता है, एक बार फॉर्म देने के लिए और दूसरी बार भरकर वापस लेने के लिए। इसमें दस्तावेजों के संलग्न करने जैसी चीजें होती हैं, जिनमें समय लगता है।

यह स्पष्ट संकेत हैं कि चुनाव आयोग के पास अपने कर्मचारी नहीं होते, इसलिए वह सरकारी मशीनरी पर निर्भर रहता है यानी राज्य सरकार।

इससे यह आशंका गहराती है कि राज्य और केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी और जेडीयू गठबंधन को इस योजना की जानकारी काफी पहले से रही होगी।

आरजेडी-कांग्रेस का हमला

राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस और वाम दलों ने चुनाव आयोग के इस कदम की कड़ी निंदा की है। उनका कहना है कि शुरुआत से ही विपक्षी दलों और सत्ता पक्ष के साथ असमान व्यवहार हुआ है।

वहीं बीजेपी और जेडीयू, जो राज्य और केंद्र दोनों में सत्ता में हैं, या तो चुप हैं या इस पुनरीक्षण प्रक्रिया का समर्थन कर रहे हैं।

चुनाव आयोग ने 24 जून की शाम को प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा, “चुनाव आयोग सुनिश्चित करेगा कि प्रक्रिया न्यूनतम असुविधा के साथ सुचारु रूप से हो। सभी राजनीतिक दलों को इसमें सक्रिय भागीदारी करनी होगी, विशेष रूप से अपने बूथ लेवल एजेंट्स (BLAs) की नियुक्ति करके। BLAs की सक्रिय भागीदारी से प्रारंभिक चरण में ही विसंगतियों को दूर किया जा सकेगा।”

विपक्ष के लिए कठिन समय

चुनाव आयोग की यह सलाह सत्ता पक्ष को पहले से ज्ञात रही होगी, क्योंकि फॉर्मों की छपाई और वितरण, सरकारी कर्मियों का चयन और प्रशिक्षण,

क्षेत्र में परिचालन। यह सब पहले से नियोजित था और सत्तारूढ़ दलों को इन सूचनाओं का पूर्वाभास रहा होगा।

इससे यह धारणा बनती है कि मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण (SIR) जिस तरह से शुरू हुआ और संचालित हो रहा है, वह विपक्ष की नजर में निष्पक्ष नहीं है।

यह वही विपक्ष है जो बिहार में पिछले दो दशकों से सत्ता में जमी बीजेपी-जेडीयू सरकार को आगामी चुनाव में चुनौती देने की तैयारी में जुटा है।

Tags:    

Similar News