छोटी पार्टियां, बड़े सिरदर्द: बिहार में सीट शेयरिंग की डील अटकी क्यों है?
बिहार: जैसे ही शुक्रवार को नामांकन शुरू होने वाला है, दोनों गठबंधन छोटे सहयोगियों— पासवान, मांझी, कुशवाहा और सहनी — को खुश करने के लिए प्रयासरत हैं, जिनकी मांगें सीट शेयरिंग के समीकरण को बिगाड़ने की धमकी दे रही हैं।
बिहार विधानसभा चुनावों के पहले चरण की अधिसूचना जारी होने में अब सिर्फ एक दिन बचा है। ऐसे में राज्य के दो प्रमुख राजनीतिक खेमे सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी महागठबंधन — समय के खिलाफ दौड़ लगा रहे हैं ताकि अपनी-अपनी सीट शेयरिंग डील को अंतिम रूप दिया जा सके।
हालांकि, दोनों गठबंधनों की बड़ी पार्टियों के लिए छोटी सहयोगी पार्टियों की बढ़ती मांगें सिरदर्द बन गई हैं।
सीटों की लड़ाई
एनडीए के सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जेडीयू के बीच कई दौर की बातचीत के बाद यह तय हो चुका है कि दोनों कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। लेकिन औपचारिक घोषणा इसलिए टल गई क्योंकि:
चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा (हम), और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम)
तीनों ही अपने हिस्से से कहीं अधिक सीटें मांग रहे हैं, जितनी बड़ी पार्टियां देने को तैयार हैं।
महागठबंधन में भी उलझन
दूसरी ओर, राजद ने काफी समझाने-बुझाने के बाद कांग्रेस को 60 से कम सीटों पर मान लिया और लगभग 140 सीटें खुद के लिए रख लीं।
लेकिन अब विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी की अनियंत्रित मांगें और सीपीआई-एमएल (लिबरेशन) का कड़ा रुख इस गठबंधन की औपचारिक घोषणा में बाधा बन गया है।
एलजेपी(आर) की अलग चाल
एनडीए के भीतर, बीजेपी उम्मीद कर रही थी कि गतिरोध 9 अक्टूबर (गुरुवार) तक खत्म हो जाएगा। लेकिन उसी दिन चिराग पासवान की एलजेपी(रामविलास) ने पटना में अपने सांसदों और वरिष्ठ नेताओं की बैठक बुला ली, जबकि पासवान खुद दिल्ली में मंत्री पद के कामों में व्यस्त थे।
पासवान ने मीडिया से कहा कि उनकी पार्टी के नेता यह तय करने के लिए बैठक कर रहे हैं कि एलजेपी(आर) की भूमिका गठबंधन में क्या होगी, और वे मंत्री रहते हुए अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं।
उनके इस संकेतात्मक बयान के बाद यह अटकलें तेज हो गईं कि अगर पार्टी को “सम्मानजनक हिस्सेदारी” नहीं मिली तो क्या वे केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे सकते हैं।
पटना में, पासवान के साले और जमुई सांसद अरुण भारती ने घोषणा की कि पार्टी ने सर्वसम्मति से चिराग पासवान को 243 विधानसभा सीटों की रणनीति और गठबंधन में सीट शेयरिंग के मुद्दे पर अंतिम निर्णय लेने का अधिकार दे दिया है।
बीजेपी पर बढ़ता दबाव
बीजेपी सूत्रों के अनुसार, एनडीए के भीतर हालात इसलिए और उलझ गए हैं क्योंकि मांझी की मांगें “बेतुकी और गैर-वाजिब” मानी जा रही हैं।
दलित नेता और पूर्व मुख्यमंत्री मांझी, पासवान की तरह ही केंद्र सरकार में मंत्री हैं, लेकिन दोनों नेताओं के बीच तनावपूर्ण संबंध हैं।
मांझी के करीबी सूत्रों का कहना है कि वह इस बात से नाराज़ हैं कि बीजेपी पासवान को उनकी हैसियत से ज़्यादा तवज्जो दे रही है, और यह कि “हम जैसी पार्टियों से समझौता कराया जा रहा है ताकि पासवान खुश रहें।”
कुशवाहा की चुप्पी
तीसरे “छोटे साथी” उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम ने अब तक सार्वजनिक रूप से कोई बयान नहीं दिया है कि वे कितनी सीटें चाहते हैं।
हालांकि, उनके करीबी सूत्रों का कहना है कि उन्होंने बीजेपी को साफ संदेश दिया है कि “उनके समर्थन को हल्के में न लिया जाए।”
कहा जा रहा है कि कुशवाहा इस बात से भी खफ़ा हैं कि उन्हें हाल ही में अभिनेता-नेता पवन सिंह का बीजेपी और एनडीए में स्वागत करने को कहा गया, जबकि 2024 के लोकसभा चुनाव में पवन सिंह ने कुशवाहा के खिलाफ करकट सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था।
तब कुशवाहा उस सीट पर तीसरे नंबर पर रहे थे, जबकि सीपीआई-एमएल(एल) के राजा राम सिंह ने जीत हासिल की थी।
एनडीए में असहमति
एनडीए के सहयोगियों के साथ बातचीत में शामिल एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने The Federal को बताया कि पिछले हफ्ते चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा — तीनों ही इस बात पर सहमत हो गए थे कि एलजेपी(रामविलास) को 28 सीटें, हम (हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा) को 8 सीटें, और आरएलएम (राष्ट्रीय लोक मोर्चा) को 6 सीटें मिलेंगी।
लेकिन, सूत्रों के मुताबिक, तीनों छोटी पार्टियों ने बाद में इस समझौते से पीछे हटते हुए अपनी मांगें बढ़ा दीं।
बीजेपी नेता के अनुसार, पासवान अब “कम से कम 40 सीटें” मांग रहे हैं, जबकि मांझी और कुशवाहा दोनों “15-15 सीटें” चाहते हैं।
बीजेपी खुद 243 में से कम से कम 100 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है, और अगर वह सहयोगियों को ज़्यादा सीटें देती है, तो उसका खुद का हिस्सा घट जाएगा — इसलिए उसने अपनी पेशकश में कोई बदलाव नहीं किया है।
मांझी का अल्टीमेटम
मांझी ने बीजेपी को चेतावनी दी है, “हमने बीजेपी से बस एक सरल मांग की है — हम चाहते हैं कि हमारी पार्टी को आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त दल का दर्जा मिले, और इसके लिए हमें कम से कम 8 सीटें जीतनी होंगी। पिछली विधानसभा में हमारी स्ट्राइक रेट 60% से ज़्यादा थी (7 में से 4 सीटें जीती थीं)। इसलिए इस बार हमें 15-16 सीटें दी जाएं ताकि हम कम से कम 8 जीत सकें। अगर बीजेपी हमें इतनी सीटें नहीं देती तो फिर सिर्फ 6-7 सीटों पर लड़ना बेकार होगा।”
महागठबंधन में भी तनाव
महागठबंधन के भीतर भी हालात कुछ अलग नहीं हैं। मुकेश सहनी अपनी पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के लिए 30 सीटों की मांग पर अड़े हुए हैं, जबकि राजद और कांग्रेस अधिकतम 15 सीटें देने को तैयार हैं।
सहनी की एक और मांग है कि सीट बंटवारे की घोषणा के साथ ही तेजस्वी यादव उन्हें गठबंधन का उपमुख्यमंत्री चेहरा घोषित करें।
सीपीआई-एमएल(लिबरेशन), जिसने 2020 में राजद-कांग्रेस गठबंधन के साथ रहते हुए 19 में से 12 सीटें जीती थीं, इस बार दी जा रही 20 सीटों की पेशकश से भी असंतुष्ट है।
पार्टी ने अपनी “उत्कृष्ट स्ट्राइक रेट” और “25 सीटों पर पिछले पांच वर्षों में किए गए ग्राउंड वर्क” के आधार पर 5 और सीटों की मांग रखी है।
जातिगत समीकरणों में उलझे दोनों गठबंधन
इस बार बिहार चुनाव में अति पिछड़ा वर्ग (EBCs) और दलित समुदाय दोनों गठबंधनों के लिए मुख्य वोट बैंक बन गए हैं। इसी वजह से एनडीए में बीजेपी-जेडीयू या विपक्ष में राजद — सभी बड़ी पार्टियां छोटे सहयोगियों को खुश करने के लिए झुकने पर मजबूर हैं।
बीजेपी-जेडीयू के लिए पासवान और मांझी जैसे दलित नेताओं या कुशवाहा जैसे पिछड़े नेत* को नज़रअंदाज़ करना उतनी ही बड़ी चुनौती है, जितनी राजद के लिए सहनी (जो मल्लाह समुदाय से आते हैं) या सीपीआई-एमएल को नाखुश रखना।
डील फाइनल करने की उलटी गिनती
राजद के एक वरिष्ठ नेता ने *The Federal* से कहा —“हम जानते हैं कि सहनी की मांगें उनकी वास्तविक राजनीतिक ताकत से कहीं ज़्यादा हैं। हमें यह भी जानकारी है कि बीजेपी उन्हें अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रही है। फिर भी हम उन्हें खो नहीं सकते, क्योंकि भले ही उनकी पार्टी ज़्यादा सीटें न जीते, लेकिन उन्होंने खुद को ‘मल्लाह का बेटा’ कहकर पेश किया है और उनकी जातिगत पहचान का असर गंगा, कोसी और अन्य नदी किनारे की लगभग 20–25 सीटों पर पड़ सकता है, जहां मल्लाह मतदाता निर्णायक हैं।”
बातचीत जारी
इस बीच, बीजेपी के वार्ताकार पासवान, मांझी और कुशवाहा को राज्यसभा या बिहार विधान परिषद में बाद में “समायोजन” का भरोसा देकर मनाने की कोशिश कर रहे हैं।
वहीं, कांग्रेस ने भी अपने प्रतिनिधियों को पटना भेजा है, जहां उनकी तेजस्वी यादव से गुरुवार शाम बैठक होगी।
इस बैठक में कांग्रेस और राजद दोनों ही अपने हिस्से की कुछ सीटें छोड़कर सहनी, सीपीआई-एमएल, सीपीआई और सीपीएम को गठबंधन में बनाए रखने पर विचार करेंगे।
अंतिम घोषणा
दोनों गठबंधनों — एनडीए और महागठबंधन — की सीट शेयरिंग की अंतिम घोषणा शुक्रवार (10 अक्टूबर) को होने की उम्मीद है।
उसी दिन से पहले चरण के नामांकन की प्रक्रिया शुरू होगी, जिसका मतदान 6 नवंबर को और दूसरे चरण का मतदान 11 नवंबर को होगा।