बिहार में वोटरों की जानकारी या सहमति के बिना BLO कर रहे फॉर्म्स का मास-अपलोड: ADR ने सुप्रीम कोर्ट को बताया
ADR का यह भी आरोप है कि चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित अवास्तविक लक्ष्य को पूरा करने के लिए BLO द्वारा फॉर्म्स बिना मतदाताओं की जानकारी और सहमति के ही ऑनलाइन अपलोड किए जा रहे हैं।;
Association for Democratic Reforms (ADR) ने सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग (ECI) के बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं के समूह में एक पुनरुत्तर (rejoinder) दायर किया है। ADR ने आरोप लगाया है कि मतदाता सूचियों को अपडेट करने के लिए उपयोग किए जाने वाले नामांकन प्रपत्र (enumeration forms) को मतदाताओं की सहमति के बिना बड़े पैमाने पर Electoral Registration Officers (EROs) द्वारा अपलोड किया जा रहा है।
दावा किया गया है कि जिन मतदाताओं ने नामांकन फॉर्म और सहायक दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए हैं, और जिनके नाम 1 अगस्त को प्रकाशित होने वाली ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में शामिल नहीं हैं, उनके नाम सूची से हटा दिए जाएंगे, यदि वे समावेशन (inclusion) के लिए दावा नहीं करते हैं। अगर कोई दावा दायर किया जाता है और ERO को मतदाता की पात्रता पर कोई संदेह होता है, तो वह स्वतः संज्ञान (suo moto) लेकर जांच शुरू कर सकता है और कारण बताओ नोटिस जारी कर सकता है कि नाम क्यों न हटाया जाए। ERO के निर्णय के खिलाफ ज़िला मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 24(a) और फिर मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) के समक्ष धारा 24(b) के तहत दूसरी अपील की जा सकती है (जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के अंतर्गत)।
ADR का तर्क है कि एक-एक ERO को 3 लाख से अधिक व्यक्तियों के नामांकन फॉर्म को संभालने की ज़िम्मेदारी दी गई है, जो व्यवहारिक रूप से असंभव है और इससे उचित प्रक्रिया का पालन नहीं हो पाता। साथ ही, यह भी कहा गया है कि यह पूरी प्रणाली अव्यवहारिक है क्योंकि इससे प्रभावित मतदाताओं को अपील की प्रक्रिया पूरी करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल रहा, जबकि अंतिम मतदाता सूची शीघ्र ही प्रकाशित की जानी है।
ADR का यह भी आरोप है कि चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित "अवास्तविक लक्ष्य" को पूरा करने के लिए BLO द्वारा फॉर्म्स बिना मतदाताओं की जानकारी और सहमति के ही ऑनलाइन अपलोड किए जा रहे हैं। कई मामलों में मतदाताओं को SMS के ज़रिए रसीदें प्राप्त हुईं, जबकि उन्होंने कभी किसी BLO से मुलाकात तक नहीं की या कोई दस्तावेज़ हस्ताक्षर नहीं किया। मृत व्यक्तियों के फॉर्म्स भी सबमिट होने की रिपोर्ट है।
ADR का कहना है,"यह सब इस बात की ओर इशारा करता है कि SIR प्रक्रिया में गड़बड़ियाँ हैं, जिससे मतदाता सूची की पारदर्शिता और विश्वसनीयता प्रभावित हो रही है, जिससे करोड़ों मतदाताओं का लोकतांत्रिक अधिकार खतरे में है। इस स्थिति ने चुनावी धोखाधड़ी, जवाबदेही की कमी और पारदर्शिता के अभाव को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।"
ADR ने वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम द्वारा प्रकाशित ग्राउंड रिपोर्ट्स का हवाला दिया है, जिनमें बताया गया है कि BLO खुद मतदाताओं की गैरहाज़िरी में फॉर्म भर रहे हैं। ये रिपोर्टें दिखाती हैं कि SIR के दौरान BLO ज़्यादातर मतदाताओं को acknowledgment receipt भी नहीं दे रहे, जो ECI की गाइडलाइन्स का उल्लंघन है।
पिछले सप्ताह चुनाव आयोग द्वारा दायर जवाबी हलफनामे के जवाब में यह पुनरुत्तर दायर किया गया है। ADR ने यह भी सवाल उठाया है कि आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को ECI द्वारा SIR के लिए "विश्वसनीय दस्तावेज" नहीं माना जाना चिंताजनक है।
ADR ने कहा है कि, "चुनाव अक्टूबर-नवंबर 2025 में होने हैं, ऐसे में जिन मतदाताओं के पास दस्तावेज नहीं हैं या जिनके नाम ड्राफ्ट लिस्ट में नहीं हैं, उनके पास खुद को सूची में शामिल कराने का समय नहीं है। यदि प्रवासी मतदाताओं के नाम हटाए जाते हैं, और वे किसी विशेष विधानसभा क्षेत्र या समुदाय में केंद्रित हैं, तो उसका चुनावी असर बहुत बड़ा हो सकता है।"
यह मामला अब न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ द्वारा 28 जुलाई को सुना जाएगा। यह पुनरुत्तर वकील नेहा राठी और काजल गिरी द्वारा तैयार किया गया और प्रशांत भूषण के माध्यम से दायर किया गया है।