बिहार में दो चरणों में होगा विधानसभा चुनाव, क्या है वो 'बिहार मॉडल' जो पूरे देश में लागू होगा
पहले चरण में कुल 121 सीटों पर वोट डाले जाएंगे जबकि दूसरे चरण में 122 सीटों पर मतदान होगा। बिहार में चुनाव आयोग ने इस बार जो SIR के जरिये मतदाता सूची की कांटछांट की है, उसके बाद इस बार कुल 7.42 करोड़ मतदाता वोट डाल पाएंगे।
तो फाइनली बिहार में विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है। चुनाव आयोग ने बिहार में चुनावों की तारीखों की घोषणा कर दी है। चुनाव दो चरणों में होंगे। पहले चरण में 6 नवंबर को वोटिंग होगी तो दूसरे चरण में 11 नवंबर को और मतगणना होगी 14 नवंबर को। बहुत लंबे अरसे के बाद ऐसा हो रहा है,जब बिहार में विधानसभा के चुनाव दो चरणों में ही कराए जा रहे हैं।
दिल्ली में सोमवार को मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने बिहार के चुनावी कार्यक्रम की घोषणा की। चुनाव आयोग ने नामांकन के लिए जो तारीख तय की है, उसके मुताबिक पहले फेज के लिए 17 अक्तूबर को और दूसरे फेज के लिए नामांकन 20 अक्तूबर को नामांकन किया जाएगा।
पहले चरण में कुल 121 सीटों पर वोट डाले जाएंगे जबकि दूसरे चरण में 122 सीटों पर मतदान होगा। बिहार में चुनाव आयोग ने इस बार जो SIR के जरिये मतदाता सूची की कांटछांट की है, उसके बाद इस बार कुल 7 करोड़ 42 करोड़ मतदाता वोट डाल पाएंगे। इनमें 14 लाख ऐसे वोटर भी हैं जोकि फर्स्ट टाइम वोटर हैं यानी पहली बार वोट डालेंगे। हालांकि मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने ये भी कहा है कि अभी भी अगर किसी को लगता है कि उनका नाम गलती से काटा गया है, तो वो मतदाता सूची में अपना नाम जुड़वा सकते हैं। मतदान संशोधित वोटिंग लिस्ट से ही होगा।
सबसे खास बात ये कि मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने बिहार के चुनाव को पूरे देश के लिए एक मॉडल कहा है। कई ऐसे नए कदम उठाए गए हैं, जिन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त ने 17 इनिशिएटिव्स कहा है, जोकि बिहार चुनाव में पहली बार अमल में लाए जाएँगे। जैसे कि इस बार से सभी पोलिंग स्टेशन में शत-प्रतिशत वेबकास्टिंग कराई जाएगी। मतलब सभी मतदान केंद्रों की रिकॉर्डिंग होगी। पहले केवल आधे पोलिंग स्टेशनों में ही वेबकास्टिंग का इंतजाम किया जाता था।
दूसरी बात वोटरों की सुविधा का ख्याल रखते हुए यह तय किया गया है कि मतदाता पोलिंग बूथ तक अपना मोबाइल फोन ले जा सकते हैं, लेकिन उन्हें पोलिंग बूथ के बाहर बनी जगह पर अपना फोन जमा कराना होगा। फिर वोट डालकर आने पर वो अपना फोन वहां से ले सकते हैं।
यही नहीं, हर मतदान केंद्र पर वोटरों की संख्या इस बार से 1200 निर्धारित की गई है ताकि भीड़भाड़ न लगे या वोटिंग के लिए लंबी-लंबी लाइनें न लगें। चुनाव आयोग ने ट्रांसपेरेंसी पर बहुत ज़ोर दिया है। पोस्टल बैलेट में पारदर्शिता रहे, इसके लिए ये अनिवार्य कर दिया गया है कि ईवीएम के आखिरी दो राउंड की गणना से पहले पोस्टल बैलेट के वोट गिन लिए जाएं ताकि किसी हेर-फेर का शक पैदा ही न हो।
ये तो हुई चुनाव आयोग की बात जो उसने बिहार विधानसभा चुनावों की तारीखों का एलान करते हुए कहीं। लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर बिहार में इस बार क्या होगा? किस- किस का, क्या-क्या दांव पर लगा है। तो ऐसा लग रहा है कि बिहार को लेकर बीजेपी इस समय बहुत आश्वस्त नजर आ रही है। वो दशकों से यह सपना देख रही है कि बिहार में उसकी अपनी सरकार बने, अपना मुख्यमंत्री बने, लेकिन बिहार की चुनावी राजनीति की जटिलताएं इतनी हैं कि बीजेपी की दाल नहीं गल पाती।
इसी का फायदा पिछले लगभग 20 बरस से नीतीश कुमार उठा रहे हैं जोकि कम संख्या में होने के बावजूद सत्ता सुख भोग रहे हैं।लेकिन इस बार बीजेपी बिहार में बीजेपी का बड़ा दांव है। नीतीश कुमार वैसे भी लंबी पारी खेल चुके हैं, लेकिन अगली बार भी उन्हें मौका मिलेगा या नहीं,,ये साफ नहीं है क्योंकि खुद गृह मंत्री अमित शाह एक इंटरव्यू में कह चुके हैं कि चुनाव तो नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जाएगा लेकिन चुनाव के बाद एनडीए की जीत पर अगला सीएम कौन होगा, इस पर कहा नहीं जा सकता।
बीच के कुछ समय के छोड दें तो साल 2005 से लेकर अब तक भले ही नीतीश कुमार के पार्टनर बदलते रहे, लेकिन एक मौके को छोड़कर नीतीश कुमार नहीं बदले। मतलब पिछले दो दशक से बिहार की सत्ता की कमान किसी न किसी रूप में उन्हीं के हाथ में है।लेकिन 2020 में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी आरजेडी और उसके नेता तेजस्वी यादव के लिए यह चुनाव बहुत अहम है।
पिछली बार तेजस्वी यादव सरकार बनाने से चूक गए थे लेकिन इस बार राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा और फिर तेजस्वी की यात्रा को बिहार में मिले रिस्पॉन्स से विपक्ष का महागठबंधन बड़े जोश में दिखाई दे रहा है। मैदान में तो प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी भी है, लेकिन वो अपना गेम बनाएंगे या दूसरों का खेल खराब करेंगे, ये देखना अभी बाकी है क्योंकि अब तो चुनावी बिगुल बज ही चुका है।