Exclusive: कुर्सी बचाने की हताशा के बीच बीरेन शासन का पतन, पढ़ें इनसाइड स्टोरी

फुटबॉलर से पत्रकार और फिर राजनेता बने बीरेन सिंह को पहले 'गो टू हिल्स' पहल के साथ घाटी-पहाड़ी की खाई को पाटने की कोशिश के लिए सराहा गया था.;

Update: 2025-02-18 18:00 GMT

फोन लगातार बज रहा था. लेकिन मणिपुर के युवा बीजेपी विधायक ने कॉल का जवाब नहीं दिया. कुछ दिन पहले तक यह सोच भी असंभव थी. क्योंकि कॉल करने वाला इंसान खुद एन बीरेन सिंह था. जो उस समय तक संकटग्रस्त राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यरत थे. उस समय बीरेन सिंह बीजेपी में नेतृत्व संघर्ष के बीच राज्य में राष्ट्रपति शासन की घोषणा से पहले विधायक से संपर्क करने की कोशिश कर रहे थे. विधायक ने इंफाल के बाबूपारा में अपने सरकारी क्वार्टर से The Federal को बताया कि मैं उनका कॉल इसलिए नहीं ले रहा हूं. क्योंकि अगर वह मुझे सीधे समर्थन के लिए कहेंगे तो मैं मना नहीं कर पाऊंगा. मेरे राजनीतिक करियर में उनका काफी योगदान है.

बीरेन का पतन

फुटबॉलर से पत्रकार और फिर राजनीतिज्ञ बने बीरेन सिंह को कुछ समय पहले तक 'गो टू हिल्स' जैसी पहल के साथ घाटी-पहाड़ के भेद को पाटने की कोशिश करने वाला नेता माना जाता था. इतना ही नहीं, कूकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन (KNO)—जो कूकी समुदाय के सशस्त्र संगठनों का एक संघ है—ने 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को समर्थन देने की अपील की थी और बीरेन को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाया था.

कूकी समुदाय का आरोप

लेकिन वर्तमान में बीरेन को कूकी समुदाय ने राज्य में हुए सबसे भयानक जातीय हिंसा का मुख्य आरोपी मान लिया है. जिसमें पिछले 21 महीनों में 260 से अधिक लोग मारे गए और 60,000 से अधिक लोग बेघर हो गए. उनकी छवि और भी खराब हो गई जब उनकी अपनी मेइती समुदाय से कई लोगों ने भी उनके खिलाफ समान भावना व्यक्त की.

बीरेन पर आरोप

पूर्व भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष मोनोहोरमयुम बरीश शर्मा ने आरोप लगाया कि बीरेन ना मणिपुर ठुगाइबा नि’ (बीरेन ही मणिपुर को तबाह करने वाला है). दोनों के बीच रिश्ते उस समय बिगड़े, जब शर्मा को अक्टूबर 2023 में कर्फ्यू उल्लंघन, आपराधिक धमकी और हत्या के प्रयास में गिरफ्तार किया गया था. शर्मा ने तो यह भी दावा किया कि उसने बीरेन के निर्देश पर कई "काम" किए थे, जिनका आज वह दावा कर रहे हैं कि अब बीरेन उन्हें नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं.

ऑडियो टेप

शर्मा की इस हालिया बयानी से पहले एक ऑडियो टेप लीक हुआ था. जिसमें बीरेन सिंह की आवाज़ में जातीय हिंसा से जुड़ी बातें सुनाई दे रही थीं. मणिपुर सरकार ने इसे नकली कहा था. लेकिन एक निजी फोरेंसिक लैब, ट्रूथ लैब्स ने ऑडियो की जांच की और पाया कि आवाज़ 93 प्रतिशत बीरेन सिंह की थी.

बीजेपी में उथल-पुथल

बीजेपी के एक वर्ग में यह बढ़ती धारणा बनने लगी थी कि जब तक बीरेन सिंह मुख्यमंत्री के पद पर रहेंगे, तब तक मणिपुर का संकट हल नहीं हो सकता है. यही कारण था कि पार्टी में विद्रोह हुआ, जिसने आखिरकार उन्हें रविवार को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया. जिन्हें बीरेन सिंह करीब से जानते हैं, उनका कहना है कि बीरेन सिंह की चढ़ाई और गिरावट खुद उनके द्वारा बनाई गई थी.

राजनीतिक अस्थिरता

उनके पहले कार्यकाल के मध्य में उनकी सत्ता के खिलाफ दो असफल प्रयास हुए थे. 2020 में, जब उनके समर्थन में मौजूद 9 विधायक पार्टी से अलग हो गए तो सरकार अल्पमत में आ गई थी. इससे पहले 2019 में 17 भाजपा विधायकों ने बीरेन सिंह को हटाने की कोशिश की थी. दोनों बार भाजपा की केंद्रीय नेतृत्व, विशेष रूप से केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने उनका समर्थन किया था.

राजनीतिक और मिलिटेंसी का गठजोड़

जिस समय यह राजनीतिक अस्थिरता बढ़ रही थी, उसी दौरान मणिपुर समाज में अत्यधिक सैनिकीकरण का बीज बोया गया था. मणिपुर में हमेशा से ही राजनीतिक और विद्रोही संगठनों के बीच गठजोड़ का आरोप रहा है. लेकिन बीरेन के कार्यकाल में यह बहुत अधिक सार्वजनिक हुआ. जैसे कूकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन का खुलेआम बीजेपी के पक्ष में प्रचार करना.

अतिवादी संगठन का उभार

2020 में मणिपुर में सानमाहिज़्म (मेइती धर्म) को फिर से जीवित करने के लिए अरेम्बाई तेंगोल नामक एक संगठन का गठन हुआ. जो जल्द ही एक सशस्त्र मिलिशिया में तब्दील हो गया. इस समूह का समर्थन बीरेन सिंह से प्राप्त होने के आरोप लगे और यह समूह मणिपुर में मेइती समुदाय के हितों की रक्षा के लिए कार्यरत था.

बीरेन का पतन

मणिपुर में बीरेन सिंह के शासन का पतन उनकी सरकार द्वारा शांति बहाल करने में विफलता और गैर-राज्य एक्टिविस्टों की अवैध गतिविधियों के कारण हुआ. यह दोहरा झटका था, जिसने उन्हें जनसामान्य और विधायकों से आलोचना का शिकार बना दिया और आखिरकार उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा.

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