गौ-रक्षा अभियान पर निकले संत को नॉर्थ-ईस्ट में झटका, आखिर प्रशासन को क्यों भेजना पड़ा वापस?

साल 2014 में दिल्ली में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से देश ने गौरक्षा के नाम पर हिंसा के कुछ सबसे बुरे रूप देखे हैं.

Update: 2024-09-28 16:25 GMT

cow protection violence: भाजपा के "नए भारत" में गाय कई विरोधाभासों में फंसी हुई है. साल 2014 में दिल्ली में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से देश ने गौरक्षा के नाम पर हिंसा के कुछ सबसे बुरे रूप देखे हैं, जिसमें ज्यादातर मुसलमान गौरक्षकों के निशाने पर रहे हैं. लेकिन उत्तर पूर्व भगवा पार्टी के लिए बिल्कुल अलग खेल बन गया है. आखिरकार उत्तर पूर्व में “गौ” “माता ” नहीं है. हिंदू धर्म में गाय को दिया जाने वाला एक पवित्र दर्जा और भाजपा, उसके वैचारिक स्रोत आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों द्वारा उत्साहपूर्वक प्रचारित किया जाता है. लेकिन बड़े पैमाने पर ईसाई आबादी वाले इन आदिवासी बहुल राज्यों में गाय सिर्फ एक और जानवर है और गोमांस स्थानीय आहार का एक अभिन्न अंग है.

दक्षिणपंथी समूहों को उस समय गहरा सदमा लगा. जब भाजपा शासित अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड के प्रशासन ने इन राज्यों से गौहत्या पर प्रतिबंध लगाने के मिशन पर गए हिंदू संतों को वापस भेजने का फैसला किया.

आदतों पर हमला

गुरुवार (26 सितंबर) को उत्तराखंड के ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती पहले अरुणाचल प्रदेश के ईटानगर और फिर नागालैंड के दीमापुर गए. उनकी यात्राएं राष्ट्रव्यापी गौ ध्वज स्थापना भारत यात्रा का एक हिस्सा थीं. हालांकि, उन्हें दोनों शहरों के हवाई अड्डों से ही वापस लौटना पड़ा. क्योंकि स्थानीय लोगों को उनका दौरा “अपने स्वदेशी रीति-रिवाजों, परंपराओं और खान-पान की आदतों पर हमला लगा. प्रशासन को डर था कि उनके ठहरने से कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा हो सकती है और इसलिए उन्हें तुरंत बाहर निकालने की व्यवस्था की गई.

अरुणाचल प्रदेश के अधिवक्ता और कार्यकर्ता ईबो मिली ने द फेडरल से कहा कि हमारी नाराजगी का मूल कारण आदिवासी पहचान है. गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश करके यह यात्रा हमारी पहचान को नुकसान पहुंचा रही है. हम (अरुणाचल प्रदेश के आदिवासी) लगभग सभी प्रकार के जानवरों को खाते हैं. गोमांस हमारे लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन है. हम किसी भी धर्म या विश्वास के खिलाफ नहीं हैं. धार्मिक नेताओं को मंदिरों, मस्जिदों, चर्चों आदि के अंदर उपदेश देना चाहिए, न कि सार्वजनिक स्थानों पर.

गौ-संरक्षण कानून की कार्यप्रणाली

इंडियास्पेंड द्वारा देशभर में गौ संरक्षण कानूनों के विश्लेषण के अनुसार, मार्च 2017 तक भारत के 84 प्रतिशत भूभाग में गौहत्या पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, जो देश की 99.38 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करता है. केंद्रीय पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग के अनुसार, केवल चार राज्यों अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड तथा केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप में गौहत्या से संबंधित कोई कानून नहीं है. आरएसएस ने 1980 के दशक में ही पूर्वोत्तर राज्यों के मूल निवासियों के बीच हिंदू धर्म को आक्रामक तरीके से बढ़ावा देना शुरू कर दिया था. अरुणाचल प्रदेश में आरएसएस ने बहुत से मूल निवासियों को हिंदू धर्म में शामिल करके अपने मिशन में काफी हद तक सफलता प्राप्त की है. लेकिन दोनों राज्यों में युवाओं ने ही हिंदू संत की यात्रा के खिलाफ जोरदार तरीके से आवाज उठाई.

थोपने का प्रयास

इटानगर हवाई अड्डे पर, ऑल अरुणाचल प्रदेश स्टूडेंट्स यूनियन (AAPSU), एक छात्र संगठन ने धार्मिक नेता के आगमन पर विरोध प्रदर्शन किया. AAPSU के प्रवक्ता योमली पोयोम ने कहा कि हमने उनके दौरे को राज्य के आदिवासी लोगों की खान-पान की आदतों में हस्तक्षेप के रूप में देखा. ऐसी भी आशंका है कि गौहत्या पर प्रतिबंध लगाने से “आदिवासियों पर हिंदू धर्म को खुलेआम थोपने का रास्ता खुल जाएगा.” नागालैंड में, नागा छात्र संघ (NSF) ने इस घटना को नागा लोगों के सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक मूल्यों पर सीधा हमला बताया. छात्र संगठन ने हिंदू नेता पर अपनी मातृभूमि पर बाहरी धार्मिक विश्वासों और प्रथाओं को थोपने का प्रयास करने का आरोप लगाया. नागालैंड मुख्य रूप से ईसाई बहुल राज्य है, जहां लगभग 88 प्रतिशत लोग (1.97 मिलियन में से) ईसाई धर्म को मानते हैं. अरुणाचल में, 1.4 मिलियन लोगों में से 30 प्रतिशत ईसाई धर्म को मानते हैं. जबकि 29 प्रतिशत हिंदू हैं, 26 प्रतिशत स्वदेशी धर्म (डोनी-पोलो) को मानते हैं और 11 प्रतिशत बौद्ध हैं.

आदिवासी देश के नागरिक

अखिल अरुणाचल जनजातीय छात्र संघ (एएटीएसयू) द्वारा दिए गए बयान में युवाओं का गुस्सा स्पष्ट रूप से झलक रहा था. AATSU ने कहा कि केवल हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध या अन्य ही नहीं, हम आदिवासी लोग भी इस देश के नागरिक हैं. हमारी आस्था और विश्वास को भी ठेस नहीं पहुंचाई जाएगी. गायों के बिना, हमारे आदिवासी लोगों के हर अनुष्ठान और रीति-रिवाज में बाधा आएगी. हमारा संघ हमारे स्वदेशी अधिकारों के खिलाफ कुछ भी बर्दाश्त नहीं करेगा, जो हमारे अनुष्ठानों, विश्वासों, प्रथाओं और आस्थाओं को बाधित करता है.

नागालैंड की पत्रकार और पर्यावरण संरक्षणवादी बानो हरालू ने कहा कि आदिवासी समुदायों में, इस जानवर का इस्तेमाल कई उद्देश्यों के लिए किया जाता है. गाय और मिथुन (बोस फ्रंटलिस, जिसे 'गयाल' भी कहा जाता है, एक अर्ध-पालतू बड़ी गोजातीय प्रजाति) की बलि हमारे रीति-रिवाजों और रीति-रिवाजों के हिस्से के रूप में दी जाती है. दूल्हे द्वारा दुल्हन के परिवार को दहेज के रूप में भी इन्हें दिया जाता है. एक व्यक्ति के पास जितने मवेशी होते हैं, उससे उसकी संपत्ति का पता चलता है. हरालू ने बताया कि किसी की खाने की आदतों को वर्गीकृत करना और उसकी आलोचना करना भी अप्रिय है. हमारे खाने की आदतों पर संदेह जताने के लिए विरोध की आवाज़ें स्वाभाविक प्रतिक्रिया हैं. किसी को भी उसके खाने के विकल्पों के बारे में बताना अस्वीकार्य है.

पूर्वोत्तर भाजपा नेता चुप

अरुणाचल प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा के नेता इस घटना के बारे में ज़्यादातर चुप रहे. 23 सितंबर को प्रशासन ने धार्मिक नेता की रैली को इस बहाने से अनुमति देने से इनकार कर दिया कि उन्होंने अधिकारियों से अनापत्ति प्रमाण पत्र और अनुमति नहीं ली है. अरुणाचल प्रदेश के भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बियुराम वाहगे ने दावा किया कि उन्हें संत के दौरे के बारे में पता नहीं था. वाहगे ने कहा कि मुझे नहीं पता कि वह आए और चले गए. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के पास राज्य मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण तथा जल संसाधन विभाग भी हैं. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि पूर्वोत्तर के भाजपा नेता आसानी से उन मुद्दों पर टिप्पणी नहीं कर सकते, जो पार्टी के रुख के खिलाफ जाते हैं. यह उनके लिए एक मुश्किल स्थिति है. क्योंकि उन्हें दिल्ली में अपने आकाओं को खुश करना है और घर पर अपने समुदाय के सदस्यों की भावनाओं का सम्मान करना है.

अक्सर, वे संतुलन नहीं बना पाते. चूंकि गोहत्या और गोमांस खाने को लेकर विवाद कई मौकों पर सामने आता है. इसलिए क्षेत्र के कुछ ही भाजपा नेताओं ने अपनी पार्टी की आधिकारिक स्थिति के खिलाफ़ रुख अपनाया है, जो कि गौमाता की रक्षा करना है. हालांकि, ज़्यादातर लोग इस पर टिप्पणी करना पसंद नहीं करते. अरुणाचल प्रदेश से आने वाले केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू को 2015 में अपने बयान “मैं बीफ खाता हूं” को वापस लेकर “मैं बीफ नहीं खाता” कहना पड़ा था. रिजिजू प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में केंद्रीय संसदीय कार्य और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री हैं.

संवैधानिक संरक्षण

नागालैंड में, संत की यात्रा से लगभग दो सप्ताह पहले, राज्य मंत्रिमंडल ने प्रस्तावित यात्रा को अनुमति देने से इनकार कर दिया. क्योंकि स्थानीय लोगों ने इसके खिलाफ बोलना शुरू कर दिया था. नागालैंड में नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP) के नेतृत्व में गठबंधन सरकार है. भाजपा इस गठबंधन का एक प्रमुख घटक है. राज्य सरकार ने एक बयान में दोहराया कि संविधान का अनुच्छेद 371 ए (1) नागाओं और नागालैंड विधानसभा (एनएलए) की धार्मिक और सामाजिक प्रथाओं की रक्षा करता है. नागालैंड सरकार ने 371 ए (1) के आधार पर गौहत्या प्रतिबंध अधिनियम 2019 को लागू नहीं करने का फैसला किया.

नागालैंड की पत्रकार और कवि मोनालिसा चांगकिजा ने कहा कि हमारे पास अनुच्छेद 371 ए (1) है, जो हमें अपने रीति-रिवाजों, परंपराओं और धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता देता है. नागालैंड में हमें क्या खाना चाहिए, क्या पहनना चाहिए और क्या करना चाहिए, यह बताने का अधिकार किसी को नहीं है. हमारे लोगों के लिए गाय किसी अन्य जानवर की तरह ही एक जानवर है. यह हमारी मां या भगवान नहीं है. गोमांस हमारे भोजन का एक अभिन्न अंग है. हमें अपने भोजन का आनंद लेने का संवैधानिक अधिकार है. उन्होंने कहा कि हमें कोई भी थोपा जाना पसंद नहीं है. यह हमारे लिए अस्वीकार्य है कि भाजपा, आरएसएस और संघ परिवार हम पर यह शर्तें थोपने की कोशिश कर रहे हैं कि हमें अपना जीवन कैसे जीना चाहिए. हमें उन्हें ना कहने का अधिकार है.

मेघालय में प्रशासन, जहां 2 अक्टूबर को संत की यात्रा होनी है, ने शुक्रवार (27 सितंबर) को "कानून और व्यवस्था के बिगड़ने से बचने" के लिए इस पर रोक लगा दी. इससे पहले, मेघालय में सत्तारूढ़ नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के दो मंत्रियों और नागरिक समाज समूहों ने यात्रा का विरोध किया था. भाजपा राज्य सरकार में सहयोगी है.

राजनीति

लेकिन क्या गौहत्या पर प्रतिबंध का विरोध पूर्वोत्तर में भाजपा की संभावनाओं को प्रभावित करेगा? अधिवक्ता एवं कार्यकर्ता ईबो मिली ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश में इसका तत्काल कोई नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है. नागालैंड के एनएसएफ के अध्यक्ष मेदोवी री ने कहा कि रैली का विरोध राजनीतिक नहीं है. यह हमारी विरासत और प्रथाओं के बारे में है.एएपीएसयू के प्रवक्ता पोयोम ने कहा कि उन्होंने आदिवासी समुदायों की सदियों पुरानी प्रथाओं की रक्षा के लिए अपनी आवाज़ उठाई. यह बिल्कुल भी राजनीतिक नहीं था.

गाय राजनीतिक शुभंकर

चाहे कोई भी व्यक्ति गाय से जुड़े ताजा विवाद में “राजनीतिक संलिप्तता” से कितना भी इनकार करे. हालिया इतिहास कुछ और ही बयां करता है. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि भाजपा द्वारा गाय की रक्षा करना अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय (कुछ मामलों में दलित और ईसाई भी) को और अधिक अलग-थलग करने और हाशिए पर धकेलने की एक राजनीतिक चाल है. हालांकि, गाय से संबंधित हत्याओं की सही संख्या ज्ञात नहीं है. लेकिन एनजीओ की रिपोर्ट कहती है कि 2014 में मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद से अनुमानतः 100 लोग मारे गए हैं. अधिकांश पीड़ित मुस्लिम समुदाय से हैं. मोदी सरकार के आलोचकों का आरोप है कि गौरक्षकों को सरकार का रणनीतिक समर्थन प्राप्त है. विपक्षी दल भी गौरक्षकों के नाम पर होने वाली हिंसा के बारे में ज़्यादातर चुप रहे. ताकि “हिंदू भावनाओं को ठेस न पहुंचे”. क्योंकि उन्हें डर है कि इससे उनकी चुनावी संभावनाओं पर असर पड़ सकता है.

संत से दूरी

शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने 22 सितंबर को उत्तर प्रदेश के अयोध्या से अपनी यात्रा शुरू की. यह 26 अक्टूबर को दिल्ली में समाप्त होगी. अपनी यात्रा योजना के तहत संत ने विभिन्न राज्यों की राजधानियों में गौ रक्षा के प्रतीक के रूप में गौ ध्वज (ध्वज) स्थापित करने की योजना बनाई है. उनकी मुख्य मांगें गाय को राष्ट्र की माता घोषित करना और गौ हत्या रोकने के लिए केंद्रीय कानून बनाना है. हालांकि, भाजपा ने दावा किया है कि उसका संत के अखिल भारतीय दौरे से कोई लेना-देना नहीं है. दरअसल, संत मोदी सरकार के मुखर आलोचक माने जाते हैं. शंकराचार्य ने जनवरी में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अयोध्या राम मंदिर के उद्घाटन का विरोध किया था. क्योंकि यह अभी तक पूरा नहीं हुआ है. उन्होंने कहा था कि मंदिर के उद्घाटन के लिए भाजपा की जल्दबाजी 2024 के आम चुनाव जीतने की उसकी हताशा को दर्शाती है. हाल ही में शंकराचार्य ने एक बार फिर देश में गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने में विफल रहने के लिए मोदी की आलोचना की और उन्हें और भाजपा को "हिंदू विरोधी" कहा.

शंकराचार्य के दौरे में राजनीतिक मोड़ आने की संभावना है. अरुणाचल और नागालैंड की रैलियां रद्द होने के बाद वे असम के गुवाहाटी चले गए. रिपोर्ट्स के मुताबिक, असम कांग्रेस के कई नेता और कार्यकर्ता उनकी अध्यक्षता में हुई बैठक में शामिल हुए. असम कांग्रेस के एक नेता ने नाम न बताने की शर्त पर द फेडरल से पुष्टि की कि उनकी पार्टी के नेताओं ने शंकराचार्य से मुलाकात की है. कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि संत की रैली को कांग्रेस का समर्थन प्राप्त है. कांग्रेस भाजपा के इस कथन को बदलने की कोशिश कर रही है कि भगवा पार्टी ही हिंदुओं और उनकी भावनाओं की एकमात्र संरक्षक है.

असम कांग्रेस की नेता मीरा बोरठाकुर गोस्वामी ने कहा कि अब समय आ गया है कि विकास और वैज्ञानिक सोच पर ध्यान दिया जाए. उन्होंने कहा कि मैं भी हिंदू हूं. यात्रा और पूरे उत्तर पूर्व में इस पर छिड़ी बहस के बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है. एक राजनेता के तौर पर मेरी जिम्मेदारी विकास, शिक्षा, रोजगार और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना है.

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