आबकारी नीति से सरकार को कैसे लगी 2,000 करोड़ की चपत? CAG ने पाई-पाई का दिया हिसाब

CAG report के अनुसार, नवंबर 2021 में लागू की गई और अगले वर्ष सितंबर में रद्द की गई शराब नीति ने दिल्ली सरकार को ₹2,002.68 करोड़ का नुकसान पहुंचाया.;

Update: 2025-02-25 10:31 GMT

CAG report Delhi: रेखा गुप्ता के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने दिल्ली विधानसभा में मंगलवार को सीएजी रिपोर्ट (CAG Report) पेश किया. ये रिपोर्ट केजरीवाल सरकार के दौर पर में हुए कथित शराब घोटाले को लेकर था. आप विधायकों (AAP MLA) के हंगामे और विरोध के बीच रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के नेतृत्व वाली सरकार की शराब नीति से राजस्व को भारी नुकसान हुआ है. इस नीति को सही तरह से फ्रेमवर्क नहीं किया गया और न ही इसका सही तरह से क्रियान्वयन किया गया. ऐसे में रद्द की गई इस आबकारी नीति की वजह से सरकार को 2,002 करोड़ रुपये का भारी नुकसान हुआ.

रिपोर्ट के अनुसार, नवंबर 2021 में लागू की गई और अगले वर्ष सितंबर में रद्द की गई शराब नीति ने दिल्ली सरकार को ₹2,002.68 करोड़ का नुकसान पहुंचाया. यह शराब नीति पूर्व में आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार के लिए एक बड़ा बोझ साबित हुई थी और इसकी वजह से तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को जेल जाना पड़ा था.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यह नुकसान कई उपश्रेणियों में बांटा गया है. इसमें सबसे बड़ा नुकसान ₹941.53 करोड़ का था. जो इस कारण हुआ कि नई नीति के तहत शराब की दुकानों को गैर-स्वीकृत क्षेत्रों में खोलने की अनुमति नहीं दी गई. इसके बाद ₹890.15 करोड़ का नुकसान 19 क्षेत्रों में लाइसेंस वापस लेने की वजह से हुआ. क्योंकि, बाद में इन क्षेत्रों में टेंडर जारी नहीं किए गए थे. इससे इन क्षेत्रों से किसी भी प्रकार की एक्साइज राजस्व की प्राप्ति नहीं हो पाई.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि कोविड-19 के नाम पर लाइसेंसधारियों का शुल्क माफ करने के कारण ₹144 करोड़ का राजस्व नुकसान हुआ और ₹27 करोड़ का नुकसान क्षेत्रीय लाइसेंसधारियों से सुरक्षा जमा की "गलत वसूली" के कारण हुआ. इन चारों के आंकड़े मिलाकर कुल नुकसान ₹2,002.68 करोड़ का हुआ.

रिपोर्ट में अन्य उल्लंघनों को भी उजागर किया गया है, जिसमें दिल्ली आबकारी विभाग द्वारा दिल्ली आबकारी नियम 2010 के नियम 35 का उचित पालन न करना शामिल है. यह नियम विभिन्न श्रेणियों के लाइसेंस थोक विक्रेता, खुदरा विक्रेता, होटल, क्लब और रेस्तरां - एक ही पक्षों को जारी करने पर रोक लगाता है. रिपोर्ट में कहा गया कि इस उल्लंघन से कुछ लोगों को फायदा हुआ.

शराब नीति का विरोध करने वालों में एक प्रमुख मुद्दा यह था कि थोक विक्रेताओं का मार्जिन 5% से बढ़ाकर 12% कर दिया गया था. रिपोर्ट में कहा गया कि मार्जिन बढ़ाने का औचित्य यह था कि लाइसेंसधारियों को अपने गोदामों में सरकार द्वारा अनुमोदित प्रयोगशाला स्थापित करनी थी, ताकि वे प्राप्त की गई शराब के हर बैच की गुणवत्ता जांच सकें और स्थानीय परिवहन की लागत को कवर कर सकें. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि स्थानीय परिवहन शुल्क "वितरक मार्जिन में महत्वपूर्ण वृद्धि को उचित नहीं ठहरा सकता" और गुणवत्ता जांच की प्रयोगशालाएं "जो स्थापित की जानी थीं, वे स्थापित नहीं की गईं और चालू नहीं की गईं.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि तीन थोक विक्रेता दिल्ली में बेची गई शराब के 70% से अधिक के लिए जिम्मेदार थे. इसके अलावा 13 थोक लाइसेंसधारियों द्वारा आपूर्ति की गई 367 ब्रांडों में से सबसे बड़ी संख्या के ब्रांडों की आपूर्ति इंदोस्पिरिट (76 ब्रांड), महादेव लिकर्स (71 ब्रांड) और ब्रिंडको (45 ब्रांड) द्वारा की गई. ये तीन थोक विक्रेता दिल्ली में बेची गई शराब के 71.70% के लिए जिम्मेदार थे.

सरकार बनाम प्राइवेट

रिपोर्ट का एक और महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह था कि दिल्ली में चार सबसे ज्यादा बिकने वाली व्हिस्की ब्रांड सरकारी दुकानों पर कम और निजी दुकानों पर ज्यादा बिक रही थी. जिससे दिल्ली सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा था. उदाहरण के लिए रॉयल स्टैग रिजर्व/प्रिमियर व्हिस्की की बिक्री का केवल 9.25% सरकारी शराब दुकानों पर हुई. जबकि निजी दुकानों पर इसका 90.75% हिस्सा था. वहीं, ऑफिसर्स चॉइस ब्लू व्हिस्की की बिक्री सरकारी दुकानों पर 22.04% रही. लेकिन "MCD No 1" व्हिस्की की बिक्री सरकारी दुकानों पर मात्र 2.26% रही. जो संभवतः मैकडॉवेल्स नं. 1 को दर्शाती है.

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