मराठा आरक्षण पर स्पेशल बेंच का गठन, बांबे हाईकोर्ट ने की गठित

मराठा समुदाय को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाला 2024 का कानून महाराष्ट्र में राजनीतिक चर्चा में सबसे आगे रहा है।;

Update: 2025-05-16 08:18 GMT

 बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को मराठा आरक्षण को प्रदान करने वाले 2024 के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तीन न्यायाधीशों की विशेष पीठ का गठन किया। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के 14 मई को दिए गए निर्देश के बाद लिया गया है।

2024 में पारित महाराष्ट्र सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण अधिनियम के तहत मराठा समुदाय को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया था। मराठा समुदाय महाराष्ट्र की लगभग एक-तिहाई आबादी का प्रतिनिधित्व करता है। यह मुद्दा 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान प्रमुख राजनीतिक बहस का विषय बना रहा।

तीन सदस्यीय पीठ का गठन

हाईकोर्ट द्वारा शुक्रवार को जारी नोटिस के अनुसार, इस मामले पर सुनवाई और निर्णय के लिए जस्टिस रवींद्र घुगे, एन जे जमादार और संदीप मर्ने की पूर्ण पीठ का गठन किया गया है। यह पीठ उस कानून को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं और व्यक्तिगत याचिकाओं की सुनवाई करेगी।हालांकि, नोटिस में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि विशेष पीठ कब से सुनवाई शुरू करेगी।

पिछली सुनवाई रुकी थी

पिछले साल हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी. के. उपाध्याय की अध्यक्षता वाली पूर्ण पीठ ने इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की थी। याचिकाओं में तर्क दिया गया था कि मराठा समुदाय पिछड़ा नहीं है और उसे आरक्षण की आवश्यकता नहीं है। साथ ही यह भी कहा गया कि महाराष्ट्र राज्य आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा पहले ही पार कर चुका है।हालांकि, जनवरी 2025 में मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय के दिल्ली हाईकोर्ट स्थानांतरण के बाद सुनवाई रुक गई थी।

सुप्रीम कोर्ट का निर्देश और NEET छात्रों की याचिका

14 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट को विशेष पीठ गठित कर याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई शुरू करने का निर्देश दिया। यह निर्देश उन छात्रों की याचिका पर आया, जो NEET अंडरग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट परीक्षा 2025 में शामिल हो रहे हैं। उनका कहना था कि इस मामले में देरी उनके समान अवसर और निष्पक्षता के अधिकार का उल्लंघन है।

अंतरिम आदेश और आरक्षण की शर्तें

मार्च 2024 में जब याचिकाएं दायर की गई थीं, तब हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश में स्पष्ट किया था कि NEET 2024 के तहत मराठा आरक्षण की वैधता अंतिम निर्णय के अधीन होगी। इसी प्रकार, 16 अप्रैल 2024 को कोर्ट ने कहा कि किसी भी शैक्षणिक संस्था या सरकारी नियुक्ति में इस कानून का लाभ लेने वाले सभी आवेदन वर्तमान कार्यवाही के अंतिम आदेशों पर निर्भर होंगे।

कानून का आधार और पिछली कानूनी लड़ाई

2024 का SEBC कानून महाराष्ट्र सरकार द्वारा 20 फरवरी को पारित किया गया था, जब मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में सरकार थी। यह कानून सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति सुनील शुकर्रे की अध्यक्षता वाले महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट पर आधारित था। रिपोर्ट में कहा गया था कि राज्य में मराठा समुदाय के लिए "असाधारण परिस्थितियाँ" मौजूद हैं, जिससे 50% आरक्षण सीमा के बावजूद उन्हें कोटा दिया जाना चाहिए।

बाद में, इस रिपोर्ट और आयोग में शुकर्रे की नियुक्ति को भी याचिकाओं में चुनौती दी गई।गौरतलब है कि 2018 में भी एक SEBC कानून पारित किया गया था, जिसमें मराठा समुदाय को 16 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था। उस कानून को बॉम्बे हाईकोर्ट ने वैध ठहराया था, लेकिन शिक्षा में इसे 12% और नौकरियों में 13% तक सीमित कर दिया था। मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को पूरी तरह खारिज कर दिया। महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका को भी मई 2023 में अस्वीकार कर दिया गया था।

अब एक बार फिर मराठा आरक्षण पर कानूनी लड़ाई की शुरुआत बॉम्बे हाईकोर्ट में हो रही है, जो आने वाले समय में महाराष्ट्र की सामाजिक राजनीति और आरक्षण नीति की दिशा तय कर सकती है।

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