सियासी हमला नहीं सिर्फ़ सुझाव, क्यों हुआ मायावती की रणनीति में ये बदलाव?

बीएसपी अध्यक्ष मायावती आक्रामक न होकर सत्तारूढ़ बीजेपी को मुद्दों पर सोशल मीडिया के ज़रिए सुझाव दे रही हैं।एक ओर जहाँ पॉलिटिकल कमबैक से पहले बीएसपी को पॉलिटिकल सर्वाइवल की लड़ाई लड़नी है वहीं मायावती अपने विकल्प भी खुले रखना चाहती हैं।;

By :  Shilpi Sen
Update: 2025-08-16 13:08 GMT
सत्ताधारी बीजेपी को लेकर बीएसपी प्रमुख मायावती का रुख सॉफ्ट माना जाता है

राजनीति में सत्ता और विपक्ष के टकराव का लंबा इतिहास रहा है।पिछले कुछ सालों में यह व्यक्तिगत हमले तक आ पहुँचा है।मोदी सरकार और चुनाव आयोग के ख़िलाफ़ पर इस समय जहाँ कांग्रेस हमलावर है वहीं अखिलेश यादव ने भी वोट चोरी के मामले पर चुनाव आयोग और बीजेपी की साँठगाँठ का आरोप लगाते हुए यूपी में वोट पर डाके का आरोप लगा दिया है।लेकिन इस सबके बीच यूपी में बीएसपी की खामोशी पर भी सवाल उठ रहे हैं।

बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने इस मुद्दे पर अबतक कुछ नहीं कहा है और पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया पर अपने बयान के ज़रिए केंद्र की मोदी और राज्य की योगी सरकार को सिर्फ़ सुझाव दे रही हैं।

वोटर लिस्ट के मुद्दे पर खामोश बीएसपी

उत्तर प्रदेश की राजनीति में कभी सबसे ताकतवर रही बहुजन समाज पार्टी फ़िलहाल राजनीति में हाशिए पर है।बीएसपी को ‘पॉलिटिकल कमबैक’ का इंतज़ार है।इस बीच वोटर लिस्ट में गड़बड़ी का मुद्दा सुर्खियों में है और अब तक का विपक्ष का सबसे बड़ा हमला माना जा रहा है।बिहार चुनाव से ऐन पहले राहुल गांधी के इस मुद्दे पर लीड लेने के बाद उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने भी पिछले लोकसभा, विधानसभा चुनाव और उपचुनाव में बीजेपी के साथ चुनाव आयोग के साँठगांठ का आरोप लगाते हुए मोर्चा खोल दिया है।

अखिलेश यादव ने तो यहाँ तक कहा है कि वोटों की चोरी नहीं बल्कि यूपी में वोटों पर डाका डाला गया है।वहीं विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मात खाने वाली बीएसपी इस मुद्दे पर अब तक खामोश है।राजनीतिक विश्लेषकों के बीच मायावती की यह खामोशी इसलिए भी चर्चा का विषय है क्योंकि पिछले कुछ समय से मायावती लगातार सोशल मीडिया पर सिर्फ़ सुझाव देने वाले पोस्ट के ज़रिए ही अपनी बात रख रही हैं।इस मुद्दे पर तो उन्होंने अब तक अपनी बात नहीं रखी है।ऐसे में मायावती की रणनीति क्या है इसपर कयास लगाये जा रहे हैं।

मायावती के सुझाव देते बयान

यूपी के फतेहपुर में उपद्रव पर मायावती ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर लिखा ‘यू.पी. के ज़िला फतेहपुर में मक़बरा व मन्दिर होने को लेकर चल रहे विवाद/बवाल पर सरकार को किसी भी समुदाय को ऐसा कोई भी क़दम नहीं उठाने देना चाहिये जिससे वहाँ साम्प्रदायिक तनाव पैदा हो जाये…।’ वहीं यूपी विधानसभा सत्र के बारे में लिखा ‘ उत्तर प्रदेश विधानसभा का आज से शुरू हो रहा मानसून सत्र, संक्षिप्त होने के बावजूद केवल औपचारिकता पूर्ति वाला नहीं हो, बल्कि इसको सही से प्रदेश व जनहित में उपयोगी बनाना ज़रूरी है, जिसके लिए सरकार एवं विपक्ष दोनों को अपने-अपने राजनीतिक स्वार्थ, द्वेष व कटूता आदि को त्याग कर आगे बढ़ना होगा।’

मायावती ने बिहार में SIR के मुद्दे कर सुझाव देते हुए लिखा ‘वोटर व वोटर सूची तथा उसके रिवीज़न एवं ईवीएम आदि से सम्बंधित देश, जनहित एवं लोकतंत्र से जुड़े मामलों में जो किस्म-किस्म की बातें देश में चल रही हैं उन संदेहों को अवश्य ही यथाशीघ्र दूर किया जाए तो यह बेहतर होगा।’

दलित वोट के खिसकने और पुरानी टीम के बिखरने से बदलाव

वैसे तो मायावती हमेशा बीजेपी के प्रति ‘सॉफ्ट’ रही हैं।लेकिन मौजूदा समय में इस बात पर चर्चा हो रही है कि मायावती क्या दलित वोटों के खिसक जाने और पुरानी टीम के बिखर जाने की वजह से रणनीति पर काम नहीं कर पा रही हैं।या बीएसपी अध्यक्ष विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के तेज़ी से उभरने के प्रति सशंकित हैं।समाजवादी पार्टी ने पीडीए का नारा देकर लोकसभा चुनाव में बड़ी सफलता हासिल की थी।

PDA में ‘ D ‘ को शामिल कर एक तरह से अखिलेश यादव ने मायावती के वोटरों को संदेश और संकेत दिया था कि उनका राजनीतक भविष्य सपा के साथ जाने में ही है।जानकारों की मानें तो मायावती इस बात को ध्यान में रखकर भी काम कर रही हैं।कहा जाता है कि बीएसपी का वोटर मायावती के फ़ैसले को मानता है।ऐसे में मायावती बीजेपी के ख़िलाफ़ मुखर होकर अखिलेश यादव को मज़बूत नहीं करना चाहतीं और बीजेपी के प्रति नरम रुख़ अख्तियार किए हुए हैं।

समाजवादी पार्टी को मज़बूत न होने देने की रणनीति

राजनीतक विश्लेषक रतन मणि लाल एक और थ्योरी के बारे में बताते हैं।रतन मणि लाल कहते हैं ‘मायावती की यह रणनीति यह बताती है कि अब वो इस हकीकत के साथ समझौता कर चुकी हैं कि उनके बाद बीजेपी के साथ गए दलित वोटर अब बीएसपी से बाहर और बीजेपी के साथ कम्फर्टेबल हो चुके हैं।ऐसे में अगर वो एनडीए के बाहर रहकर भी बीजेपी के प्रति सॉफ्ट रहेंगी तो वो उनके वोटर कभी न कभी उनके पास आएँगे ही।’

दरअसल राजनीतक विश्लेषक मानते हैं कि मायावती यह समझ चुकी हैं कि उनके लिए अब पुराने वोट को अपने पक्ष में कन्वर्ट करना कठिन होता जा रहा है।इस समय बीएसपी के पास अपने परम्परागत वोटरों को ऑफर करने के लिए कुछ नहीं है।सिर्फ अपने मुख्यमंत्री रहते किए गए काम और एक दलित नेता की छवि दो ऐसी चीज़ें हैं जो उनके पास अपने मतदाताओं को बताने के लिए है।इसलिए मायावती का बीजेपी के प्रति सॉफ्ट रहने को रणनीति के तहत लिया गया फ़ैसला भी कहा जा सकता है।

पर ऐसे में क्या यूपी की राजनीति में बीएसपी का ‘पॉलिटिकल कमबैक’ संभव है? राजनीतिक विश्लेषक रतन मणि लाल कहते हैं ‘पॉलिटिकल कमबैक से भी पहले एक स्टेज ‘पॉलिटिकल सर्वाइवल’ का होता है।नीतीश कुमार इसका बड़ा उदाहरण हैं।जिनकी विचारधारा बीजेपी से अलग है लेकिन अपनी पार्टी बचाने के लिए वो बीजेपी के साथ हैं।ये भी एक हकीकत है कि बीजेपी के साथ जो पार्टियां रही हैं उनको कुछ न कुछ मिलता रहा है।ऐसे में मायावती बाहर रहकर भी विकल्प को खुला रखना चाहती हैं।मायावती को बीजेपी के विरोध में जा कर सपा का वर्चस्व नहीं मंज़ूर है।’

बहुजन को सर्वजन में बदलकर मायावती ने बदली थी राजनीति

वर्ष 1984 में बीएसपी के गठन के बाद से कांशीराम ने सत्ता पर सीधा हमला किया और राजनीतिक रैलियों में तत्कालीन कांग्रेस सरकार और बीजेपी दोनों को ‘सांपनाथ और नागनाथ ‘ बताते रहे।लेकिन 2000 के दशक में कमान हाथ में आने के बाद मायावती ने अपनी रणनीति बदली।बहुजन समाज के नारे को सर्वसमाज में तब्दील किया और पूर्ण बहुमत की सरकार भी बनाई।लेकिन उसके बाद वो बीजेपी पर सॉफ्ट रहीं।इसके चलते ही कई बार बीएसपी को बीजेपी को ‘बी टीम’ भी कहा जाता रहा है।ऐसे में एक बार फिर यूपी विधानसभा चुनाव के लिए बीएसपी को न सिर्फ़ वापसी करनी होगी बल्कि मौजूदा समय में अपनी जगह भी तलाशनी होगी।

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