BSP Politics in UP: 2007 का वो साल था जब देश के सबसे बड़े सूबे में से एक यूपी में बीएसपी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में आई। बीएसपी के समर्थक और सियासी पंडित कहा करते थे कि 1980-90 के दशक में बहुजन के लिए की गई लड़ाई का फायदा अब जाकर मिला। हालांकि इससे इतर दूसरे वर्ग का मानना था कि लखनऊ की लड़ाई बीएसपी (BahuJan Samaj Party) तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार के नारे से नहीं जीता जा सकता है, 2007 की जीत दरअसल तब हुई जब मायावती(Mayawati) और उनके राजनीतिक गुरु कांशीराम(Kanshiram) को यह लगा कि बहुजन की जगह सर्वजन का नारा बुलंद करना होगा और उसका फायदा भी नजर आया। लेकिन सवाल यह कि 2012 के चुनाव में हार के बाद मायावती और उनकी पार्टी सर्वजन पर क्यों नहीं टिकी रही। आखिर क्यों फिर बहुजन का रास्ता चूना। क्या सर्वजन की राह से हटने की वजह से ही मायावती और उनकी पार्टी इस हालत में है।
अब बीएसपी की गति और दुर्गति क्यों हो हुई। मायावती का वोट शेयर घटककर करीब 6 फीसद क्यों रह गया। उनके साथ झंडा बुलंद करने वाले गैर जादव दलितों ने दूरी बना ली। क्या मायावती इस हालात के लिए खुद जिम्मेदार हैं। क्या यूपी में मायावती तभी सक्रिय होती हैं जब चुनाव नजदीक होता है। क्या मायावती, बीजेपी (BJP) की बी टीम बन कर रह गई हैं। यानी इतने क्या और क्यों हैं जो आपके दिल और दिमाग को मथ रहे होंगे।
इस विषय पर द फेडरल देश में यूपी की सियासत पर गंभीर नजर रखने वाले और मायावती की कार्यप्रणाली को समझने वाले
वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान ने अपने नजरिए को पेश किया। उन्होंने कहा कि पहले हर किसी को लग रहा था कि यूपी में बीएसपी की कामयाबी के पीछे सर्वजन का नारा काम आया। लेकिन बात ऐसी नहीं थी। दरअसल मायावती और सपा मुखिया रहे मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) दोनों एक दूसरे के एंटी इंकंबेंसी पर ही जीत दर्ज करते रहे।
यदि सपा और बीएसपी दोनों एंटी इंकंबेंसी के दम पर ही चुनाव जीतते रहे तो 2017 में मायावती चुनाव क्यों नहीं जीत पाईं। बीजेपी ने कैसे सपा और बसपा दोनों को पछाड़ दिया। इस सवाल के जवाब में
शरत प्रधान कहते हैं कि इसे आप दो तरह से समझिए। पहला तो यह कि मायावती को दलित से अधिक दौलत से प्रेम रहा, अधिक से अधिक पैसा बनाने और कमाने की चाह ने उनको भ्रष्ट बना दिया। उन्होंने शासन सत्ता को पैसा बनाने की मशीन बना ली। सत्ता के मद में चूर होकर फैसले लेती रहीं जिसका असर खराब हुआ। बात तो वो दलित समाज के उत्थान की करती थीं। लेकिन बदलते समय को ना तो भांप सकीं और ना हीं बदलीं। अब इसका असर यह हुआ कि 2014 में बीजेपी ने ईडी (ED) और सीबीआई (CBI) को उनके पीछे लगा दिया। आप इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि पूरी तरह से घेरेबंदी की।
शरत प्रधान कहते हैं इस हकीकत से आप कैसे इनकार कर सकते हैं कि वो जेल जाने से नहीं डरती हैं। दरअसल जेल जाने की डर ने बीजेपी के खिलाफ उनकी आवाज को कुंद कर दिया। एक तरह से वो बीजेपी की बी टीम बन कर रह गईं। आप बीजेपी के लिए नरमी या बी टीम को कुछ ऐसे भी समझ सकते हैं। नागपुर में हिंसा होती है और वो बीजेपी के खिलाफ ऐसे बयान दे रही हैं जैसे घर में कोई बुजु्र्ग अपने बिगड़ैल बच्चे को सलाह दे रहा हो।
मायावती ने अपने भतीजे को आम चुनावल 2024 के दौरान उतारा। उनके भतीजे ने सीतापुर की रैली में आक्रामक तरीके से बीजेपी के खिलाफ बोला। उसका नतीजा क्या हुआ उसे बीच कैंपेन में बुला लिया। दरअसल दौलत की भूख और बीजेपी की डर की वजह से वो खामोश हैं। जमीनी स्तर पर सक्रिय होने का महज संकेत देती है। अब इस तरह की परिस्थिति में आप खुद फैसला कर सकते हैं कि यूपी की सियासत में बीएसपी क्यों कमजोर होती जा रही है।