कलकत्ता हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, TMC नेता मुकुल रॉय अयोग्य घोषित
मुकुल रॉय का मामला अब सिर्फ एक विधायक की अयोग्यता नहीं रहा, बल्कि यह तय करेगा कि भारत की लोकतांत्रिक राजनीति में संवैधानिक मूल्य कितने मायने रखते हैं।
पश्चिम बंगाल की राजनीति में बड़ा मोड़ लाते हुए कलकत्ता हाई कोर्ट ने गुरुवार को तृणमूल कांग्रेस (TMC) के वरिष्ठ नेता और पूर्व बीजेपी विधायक मुकुल रॉय को विधानसभा सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया। यह फैसला दलबदल विरोधी कानून (Anti-Defection Law) के तहत दिया गया है। यह ऐतिहासिक फैसला जस्टिस देबांशु बसाक और जस्टिस मोहम्मद शब्बर राशिदी की खंडपीठ ने सुनाया। अदालत ने विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि संविधानिक प्रक्रिया से समझौता होने पर न्यायपालिका हस्तक्षेप कर सकती है।
बंगाल में पहली बार किसी विधायक की सदस्यता दलबदल कानून के तहत रद्द
यह पश्चिम बंगाल के राजनीतिक इतिहास में पहला मौका है, जब किसी विधायक को दलबदल कानून के तहत अयोग्य ठहराया गया है। इससे पहले ऐसी मिसाल राज्य में नहीं बनी थी। मुकुल रॉय, जिन्होंने 2021 विधानसभा चुनाव में कृष्णानगर उत्तर सीट से बीजेपी के टिकट पर जीत हासिल की थी, चुनाव के सिर्फ एक महीने बाद (11 जून 2021) तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे। उस वक्त उनके साथ उनके बेटे सुभ्रांशु रॉय भी TMC में लौटे थे। हालांकि, मुकुल रॉय ने बीजेपी की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया था। इसी वजह से बीजेपी के नेता और विधानसभा में विपक्ष के नेता शुवेंदु अधिकारी ने उनके खिलाफ दलबदल की शिकायत दर्ज कराई थी।
हाई कोर्ट ने पलट दिया फैसला
उस वक्त के विधानसभा अध्यक्ष बिमन बनर्जी ने मुकुल रॉय को अयोग्य ठहराने से इनकार कर दिया था। उन्होंने कहा था कि “कोई पक्का सबूत नहीं है कि उन्होंने बीजेपी की सदस्यता छोड़ी। स्पीकर ने यह भी कहा था कि रॉय का TMC दफ्तर जाना केवल “शिष्टाचार” था। लेकिन चार साल लंबी कानूनी लड़ाई के बाद हाई कोर्ट ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि मुकुल रॉय ने 11 जून 2021 को TMC में शामिल होकर दलबदल कानून का उल्लंघन किया, इसलिए उसी दिन से वे अयोग्य माने जाएंगे।
स्पीकर ने बार-बार की गलती
कोर्ट ने कहा कि स्पीकर ने पहले भी अदालत के निर्देशों की अनदेखी की थी और बार-बार गलती की। बेंच ने कहा कि “अब और देरी करना दलबदल कानून के मकसद को खत्म कर देगा। क्योंकि मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 2026 में खत्म हो रहा है।
कोर्ट ने गिनाए तीन प्रमुख कारण
100 पन्नों के फैसले में अदालत ने मुकुल रॉय को अयोग्य ठहराने के तीन मुख्य कारण बताए —
1. दलबदल कानून के तहत कार्रवाई संवैधानिक प्रक्रिया है, आपराधिक नहीं, इसलिए स्पीकर का “100% सबूत” मांगना गलत था।
2. मुकुल रॉय ने खुद स्वीकार किया कि वे TMC मुख्यालय गए थे और उन्होंने TMC नेताओं के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल होने से इनकार नहीं किया।
3. कई फोटो, वीडियो और मीडिया रिपोर्ट यह साबित करते हैं कि मुकुल रॉय TMC में शामिल हुए, इसे महज “संयोग” नहीं कहा जा सकता।
दलबदल कानून का महत्व और प्रभाव
दलबदल विरोधी कानून (Anti-Defection Law) को 1985 में 52वें संविधान संशोधन से जोड़ा गया था और 2003 में 91वें संशोधन से इसे और मजबूत किया गया। इस कानून का उद्देश्य है कि कोई भी जनप्रतिनिधि व्यक्तिगत या राजनीतिक लाभ के लिए पार्टी न बदले। लेकिन कई बार यह कानून स्पीकरों के पक्षपात की वजह से कमजोर पड़ता रहा है। साल 2021 के बाद से कम से कम 6 विधायकों ने बीजेपी छोड़कर TMC का दामन थामा, जो दलबदल कानून का उल्लंघन है।
राजनीतिक विश्लेषक अमल सरकार ने कहा कि हाई कोर्ट का यह हस्तक्षेप एक मिसाल बनेगा। यह दिखाता है कि संविधानिक नैतिकता को राजनीतिक सुविधा के लिए कुर्बान नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि यह फैसला भविष्य में स्वतंत्र ट्रिब्यूनल बनाने की दिशा में कदम हो सकता है, ताकि ऐसे मामलों में स्पीकर की भूमिका निष्पक्ष हो सके।
अब क्या होगा आगे?
विधानसभा अध्यक्ष बिमन बनर्जी ने कहा कि उन्होंने याचिका को “गहन विचार” के बाद खारिज किया था, लेकिन अब वे अदालत के आदेश का अध्ययन करने के बाद अगला कदम तय करेंगे। उन्होंने कहा कि कोर्ट के आदेश की पूरी तरह समीक्षा की जाएगी, उसके बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।
राजनीतिक मायने
यह फैसला सिर्फ मुकुल रॉय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे देश की राजनीति में राजनीतिक जवाबदेही और संविधानिक नैतिकता पर जोर देता है। गोवा से लेकर मणिपुर तक पिछले एक दशक में लगातार दलबदल से सरकारें गिरी हैं। इस फैसले ने यह संदेश दिया है कि अब इस प्रवृत्ति पर न्यायपालिका सख्त है। राजनीतिक विश्लेषक देबाशीष चक्रवर्ती के अनुसार, यह बंगाल में विपक्ष के लिए नैतिक जीत है और पूरे देश में संविधान आधारित राजनीति को मजबूत करने वाला कदम है।