1988 की हत्या ने फिर जगा दी, गोंडल की क्षत्रिय-पाटीदार खूनी दुश्मनी!
गोंडल की इस घटना में राजनीति, जातिवाद, अपराध और सामाजिक संरचना सभी का भयावह मिलाजुला रूप सामने आता है। यह एक ऐसा मामला है, जिसमें इंसाफ, जातीय रंजिश और सत्ता की भूख ने कई पीढ़ियों को प्रभावित किया है।
राजकोट जिले के गोंडल तालुका स्थित संग्रामसिंहजी हाई स्कूल के मैदान में भारत के 42वें स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त 1988) पर कार्यक्रम की तैयारियां ज़ोरों पर थीं। कांग्रेस के स्थानीय विधायक और पाटीदार समुदाय के लोकप्रिय नेता पोपट सोरठिया ध्वजारोहण के लिए पहुंचने वाले थे। सुबह करीब 9:30 बजे उन्होंने झंडा फहराया, कुछ सफेद कबूतर उड़ाए और अपनी सीट पर बैठ गए। लेकिन कुछ ही मिनट बाद मंच के पीछे से आए एक युवक ने बिलकुल करीब से गोली मारकर सोरठिया की हत्या कर दी। 59 वर्षीय विधायक के सिर में गोली लगी और वो वहीं लहूलुहान होकर गिर पड़े। मौके पर मौजूद डिप्टी कलेक्टर जेपी दवे, सुरक्षाकर्मी और अन्य लोग इस घटना से स्तब्ध रह गए।
करीब एक घंटे बाद 22 वर्षीय अनिरुद्धसिंह जडेजा, जो खुद को क्षत्रिय नेता महिपतसिंह जडेजा का बेटा बताता है, गुजरात राज्य रिज़र्व पुलिस के अधिकारी डी. झाला के सामने आत्मसमर्पण कर देता है और हत्या की बात कबूल करता है।
जातीय सियासत
1988 में दिनदहाड़े एक सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक की हत्या ने गुजरात की राजनीति में भूचाल ला दिया। यह हत्या क्षत्रिय-पाटीदार जातीय संघर्ष की उस लकीर को और गहरा कर गई, जो दशकों तक चली और आज भी कई इलाकों में उसकी परछाई दिखाई देती है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश और फिर गिरफ्तारी
हाल ही में गुजरात हाई कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा दी गई सज़ा माफ़ी (remission) को रद्द कर दिया, जिसके बाद अनिरुद्धसिंह ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गोंडल कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया। इस खबर के फैलते ही गोंडल के रिबडा गांव में क्षत्रिय समाज के लोग जडेजा परिवार के समर्थन में जुट गए। 5 सितंबर को गांव में भारी पुलिस बंदोबस्त रहा — करीब 3,000 पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे।
परिवार और समुदाय का समर्थन
अनिरुद्धसिंह की बुआ 82 वर्षीय चंदुबा चुडासमा ने मीडिया से कहा कि जब पिता की इज्जत दांव पर हो, तब एक बेटा सोचता नहीं। अनिरुद्ध ऐसा ही बेटा है। चंदुबा, जो कच्छ के अबदासा से 371 किमी की दूरी तय कर कार्यक्रम में शामिल होने आई थीं, ने स्पष्ट रूप से हत्या को सही ठहराया। अब 59 साल के अनिरुद्धसिंह ने मीडिया से बातचीत में कहा कि सोरठिया मेरे पिता के दुश्मन थे। मैंने एक बेटे के रूप में अपना फर्ज निभाया।
राजनीतिक दुश्मनी
कांग्रेस विधायक सोरठिया को पाटीदार समुदाय का मजबूत नेता माना जाता था, जिन्होंने महिपतसिंह की क्षत्रिय वर्चस्व की राजनीति को चुनौती दी थी। महिपतसिंह 1952 में ज़मीन अधिग्रहण विरोध में गिरफ्तार हुए थे और बाद में क्षत्रिय समाज के बाहुबली नेता के रूप में उभरे।
कानूनी लड़ाई और गिरफ्तारी का सफर
1989: राजकोट सेशंस कोर्ट ने "सबूतों के अभाव" में अनिरुद्धसिंह को बरी कर दिया।
1997: सुप्रीम कोर्ट ने TADA एक्ट के तहत उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
2000: लंबे समय तक फरार रहने के बाद पुलिस की विशेष टीम ने 150 जगहों पर छापेमारी के बाद अनिरुद्धसिंह को गिरफ्तार किया।
2018: 18 साल की सजा काटने के बाद बेटे द्वारा दायर क्षमा याचिका के आधार पर उन्हें रिहा किया गया।
2023: पोपट सोरठिया के पोते हर्ष सोरठिया ने इस क्षमा आदेश को अदालत में चुनौती दी।
जातीय संघर्ष की गहरी जड़ें
गोंडल में क्षत्रिय-पाटीदार संघर्ष की शुरुआत 1976 के पंचायत चुनावों से मानी जाती है। अमरेली के लालवदर गांव में पाटीदार-क्षत्रिय झगड़े में देवायत नामक क्षत्रिय किसान की परिवार समेत जिंदा जलाकर हत्या कर दी गई थी। इसके प्रतिशोध में क्षत्रिय समुदाय ने 8 साल बाद 11 पाटीदारों (महिलाओं और बच्चों सहित) की हत्या की थी।
लगातार चलता रहा बदला
1995 में भाजपा नेता जयंतीभाई वडोदरिया की हत्या हुई। केस में चार क्षत्रिय लोगों को दोषी पाया गया, जबकि अनिरुद्धसिंह पर शरण देने का आरोप लगा, लेकिन सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया। पाटीदार नेता पर्सोत्तम पिपरिया ने गोंडल की तुलना "मिर्जापुर" से करते हुए कहा कि यहां बिना गुंडागर्दी कोई चुनाव नहीं जीता जा सकता। 30 साल से यही हाल है।
भाजपा और जातीय सियासत
1998 में भाजपा ने गोंडल से क्षत्रिय उम्मीदवार को टिकट देकर पाटीदारों के उभरते प्रभाव को संतुलित करने की कोशिश की। जयराजसिंह जडेजा ने लगातार तीन बार चुनाव जीतकर गोंडल पर दबदबा बनाए रखा। उनकी पत्नी और वर्तमान भाजपा विधायक गीताबा जडेजा इस विषय पर टिप्पणी से बचती हैं। लेकिन उनके पति और बेटे गणेश पर हत्या के केस दर्ज हैं।
क्या अब शांति संभव है?
राजकोट के पुलिस कमिश्नर ब्रजेश कुमार झा ने कहा कि महिपतसिंह की मौत और अनिरुद्धसिंह की गिरफ्तारी के बाद हालात सुधरे हैं। कभी गोंडल में हर साल 50 जातीय हत्याएं होती थीं। अब उम्मीद की जा रही है कि अनिरुद्धसिंह और पोपट सोरठिया मामले की फिर से चर्चा गोंडल को फिर से हिंसा की ओर न मोड़े।