CPM महासचिव एमए बेबी एक्सक्लूसिव, 'केरल में LDF की तीसरी जीत को लेकर आश्वस्त'
सीपीएम महासचिव बेबी ने पिनराई विजयन के बढ़ते प्रभाव, भारतीय राजनीति में वामपंथ की घटती उपस्थिति, माओवादियों के सफाए और अन्य मुद्दों पर बात की;
जैसे-जैसे केरल एक महत्वपूर्ण चुनावी वर्ष की ओर बढ़ रहा है, सभी की निगाहें लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) पर टिकी हैं और इस बात पर कि क्या वह अभूतपूर्व तीसरी लगातार जीत दर्ज कर पाएगा। 'द फेडरल' को दिए एक विशेष साक्षात्कार में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नवनियुक्त महासचिव एमए बेबी पार्टी की दृष्टि स्पष्ट करते हैं, मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के नेतृत्व का बचाव करते हैं और भारतीय राजनीति में वामपंथ की बदलती भूमिका पर बात करते हैं।
उन्होंने राजकोषीय संघवाद को लेकर चिंताओं, भाजपा के बढ़ते प्रभाव, वामपंथी एकता के भविष्य और पार्टी को युवा नेतृत्व से पुनर्जीवित करने की चुनौती पर बेबाकी से अपनी बात रखी। यहां प्रमुख अंशों का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत है:
प्रश्न: केरल में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। एलडीएफ के लिए तीसरी बार सत्ता में आने की संभावना को आप कैसे देखते हैं?
उत्तर: तीसरी बार सरकार बनाना आज केरल की जनता के कई वर्गों में चर्चा का विषय है। जहां तक सीपीएम और एलडीएफ का सवाल है, हमें पूरा विश्वास है कि कॉमरेड पिनराई विजयन के नेतृत्व में हम दूसरे कार्यकाल के बाद भी आगे बढ़ सकते हैं।
पिछले दो कार्यकालों का कामकाज जनता के सामने है और वह सकारात्मक रहा है। निश्चित रूप से कुछ समस्याएं हैं, लेकिन हम धैर्यपूर्वक जनता को समझा रहे हैं कि ये समस्याएं देश की विशेष परिस्थितियों और केंद्र सरकार की शत्रुतापूर्ण नीतियों के कारण उत्पन्न हुई हैं। यहां तक कि राज्यों को उनका वैध टैक्स हिस्सा भी नहीं दिया जा रहा है और ये सिर्फ केरल का मामला नहीं है, तमिलनाडु जैसे राज्य भी इसका सामना कर रहे हैं।
हम टैक्स के 50% हिस्से की मांग कर रहे हैं, जो अभी केवल 41% है। इसके बावजूद, केरल की राजनीतिक रूप से जागरूक जनता इन परिस्थितियों को समझती है। हमें भरोसा है कि हम जनता को समझा पाएंगे और अगले साल की शुरुआत में होने वाले चुनाव में एलडीएफ की सत्ता में वापसी की प्रबल संभावना है।
प्रश्न: पिनराई विजयन फिर से मुख्यमंत्री पद के चेहरे हैं। क्या सीपीएम उनके उत्तराधिकारी की तैयारी कर रही है? कोई युवा नेता?
उत्तर: हमारी पार्टी में इस तरह के मुद्दे राज्य नेतृत्व के विवेक पर छोड़े जाते हैं और जब वक्त आता है तभी चर्चा होती है। आगामी चुनावों के लिहाज़ से पिनराई विजयन पूरी तरह सक्रिय हैं और पूरी चुनावी मुहिम का नेतृत्व करेंगे। अगर एलडीएफ और सीपीएम फिर से जीतते हैं, तब नेतृत्व परिवर्तन का सवाल उठेगा। अभी किसी युवा नेता का नाम लेना उचित नहीं है।
प्रश्न: घटती हुई सदस्यता को देखते हुए क्या युवा मुख्यमंत्री बनाना रणनीतिक रूप से ज़रूरी नहीं?
उत्तर: हमारी पार्टी ने हमेशा परिवर्तन और निरंतरता के बीच संतुलन बनाए रखा है — वरिष्ठ नेताओं के साथ युवा नेतृत्व को आगे लाकर। मदुरै पार्टी कांग्रेस में हमारे केंद्रीय नेतृत्व में 18 में से 8 नए पोलित ब्यूरो सदस्य चुने गए, यानी लगभग 50% बदलाव।
85 सदस्यीय केंद्रीय समिति में भी 30 नए सदस्य शामिल किए गए हैं। केरल में भी हमने राज्य समिति और सचिवालय में कई ऊर्जावान युवा नेताओं को शामिल किया है। अनुभव और युवा नेतृत्व का मिश्रण हमारी सांगठनिक संस्कृति का हिस्सा है।
प्रश्न: सीपीएम अब पिनराई विजयन तक सीमित होती जा रही है। क्या यह व्यक्तिवाद नहीं है?
उत्तर: आज सोशल मीडिया के दौर में नेता केंद्र में आ जाते हैं, यह नई बात नहीं है। ईएमएस नंबूदिरिपाद, एके नयनार, पी सुंदरैय्या — इन सभी के दौर में भी नेतृत्व पर फोकस था।
लेकिन पार्टी में निर्णय सामूहिक रूप से होते हैं। पिनराई विजयन हर बैठक में हिस्सा लेते हैं, बहस में योगदान देते हैं, और उनका एक ही वोट होता है — जैसे किसी भी सचिवालय या पोलित ब्यूरो सदस्य का। कोई भी नेता विशेष अधिकार नहीं रखता। हमारे लिए आज भी नेता “बराबरों में पहला” (first among equals) ही होता है।
प्रश्न: देश भर में वामपंथ कमजोर हो रहा है जबकि दक्षिणपंथ मज़बूत हो रहा है। क्या वामपंथी एकता की ओर कोई ठोस कदम उठ रहा है?
उत्तर: यह कहना कि पूरी दुनिया में वामपंथ कमजोर हो रहा है, सही नहीं है। चीन को देखें, जो दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है, वहां एक मार्क्सवादी-लेनिनवादी पार्टी सत्ता में है। वियतनाम जैसे देश अब भी समाजवादी मूल्यों पर चल रहे हैं।
हां, भारत समेत कुछ क्षेत्रों में गिरावट हुई है, और हम इसे गंभीरता से ले रहे हैं। हमें न केवल इस गिरावट को रोकना है, बल्कि भारतीय राजनीति में एक निर्णायक शक्ति बनकर उभरना है।
INDIA गठबंधन के गठन में वामपंथियों ने अहम भूमिका निभाई है। हाल ही में हमने सीपीआई(एमएल) (लिबरेशन) से मुलाकात की, और सीपीआई से भी। एक महीने के भीतर हम सभी वामपंथी दलों की संयुक्त बैठक करेंगे ताकि समन्वय और मज़बूत किया जा सके।
9 जुलाई को देशव्यापी मज़दूर हड़ताल है, जिसमें वाम दलों के साथ-साथ आईएनटीयूसी जैसी यूनियनें भी शामिल हैं, मोदी सरकार की श्रमिक-विरोधी नीतियों के खिलाफ़।
प्रश्न: केरल के अलावा किन राज्यों में वामपंथ की वापसी की संभावना दिखती है?
उत्तर: अभी किसी एक राज्य का नाम लेना उपयुक्त नहीं होगा। महासचिव बनने के बाद मैंने पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा का दौरा किया। वहां राज्य सम्मेलन और पार्टी कांग्रेस के प्रस्तावों को ज़मीन पर लागू करने पर चर्चा की।
त्रिपुरा में भी साथियों से मिलकर संगठन के पुनर्निर्माण पर काम शुरू किया है। और केवल इन्हीं राज्यों तक सीमित नहीं हैं, हम अन्य राज्यों में भी जहां संगठन कमजोर हुआ, वहां जनता के बीच धैर्य के साथ काम कर रहे हैं। कोई शॉर्टकट नहीं है, कोई चमत्कार नहीं होगा। हम गिरावट के कारणों को समझ कर दीर्घकालिक समाधान खोज रहे हैं।
प्रश्न: माओवादी कई राज्यों में मारे जा रहे हैं। गृहमंत्री ने इसे बड़ी उपलब्धि बताया है। आपकी राय?
उत्तर: यह दुर्भाग्यपूर्ण और गैर-जिम्मेदाराना है। हम माओवादियों से वैचारिक मतभेद रखते हैं , हम मानते हैं कि उनका रास्ता गलत है, adventurist है।
लेकिन जब वे बातचीत की इच्छा जताते हैं, जब मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं,तब सरकार को संवाद के रास्ते खोलने चाहिए। माओवादी समस्या का हल बातचीत और लोकतांत्रिक प्रक्रिया से होना चाहिए, न कि “राज्य प्रायोजित आतंक” और “बिना न्यायिक प्रक्रिया के हत्याओं” से।
हम पांच वामपंथी दलों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इस प्रक्रिया की असंवैधानिकता की निंदा की है। आपको कानूनी प्रक्रिया का पालन करना चाहिए और संवाद का रास्ता चुनना चाहिए। ये युवा भटके हुए हैं, दुश्मन नहीं।