'रेखा' सरकार में नए- कम अनुभवी चेहरों को मिली जगह, जाति- प्रांत पर जोर
27 साल बाद अब दिल्ली में विधि विधान से बीजेपी की सरकार स्थापित हो चुकी है। रेखा गुप्ता के संग 6 चेहरों ने पद और गोपनीयता की शपथ ली।;
Rekha Gupta Cabinet: दिल्ली के रामलीला मैदान में भव्य समारोह में रेखा गुप्ता ने सीएम पद और गोपनीयता की शपथ ली। उनके साथ 6 चेहरे, प्रवेश साहिब सिंह, आशीष सूद, मनजिंदर सिंह सिरसा, कपिल मिश्रा, पंकज कुमार सिंह, रविंद्र इंद्राज सिंह ने भी शपथ ली। इस मंत्रिमंडल को यदि गौर से देखें तो जाति, धर्म इलाका पर खास ध्यान दिया गया है। लेकिन बीजेपी के उन कद्दावर चेहरों को जगह नहीं मिली जो इस दफा विधायक चुन कर आए। इस सूची में कई नाम हैं। लेकिन सतीश उपाध्याय, पवन शर्मा, रविंद्र सिंह नेगी जैसे कई नाम हैं जिन्हें मौका नहीं मिला।
सवाल यह है कि इस तरह के मंत्रिमंडल के जरिए बीजेपी किस तरह का संदेश दे रही है। क्या वो नेताओं की ऐसी खेप तैयार कर रही है जो आने वाले समय बदलते समय के हिसाब से हो या पूरे देश को संदेश देने की कोशिश हम अपने आप को औरों से अलग क्यों कहते हैं। जानकार कहते हैं कि यह तो किसी भी दल का अधिकार है कि वो किस चेहरे को सरकार का हिस्सा बनाए। हालांकि बीजेपी अब अपनी राजनीतिक को पांच साल की सीमा से बांध कर नहीं रखना चाहती। बीजेपी का नेतृत्व इस धारणा के साथ आगे बढ़ रहा है कि आने वाले समय में पूरा देश केसरियामय हो जाए।
अब यदि इस मंत्रिमंडल को देखें तो नाम दिल्ली सरकार है।लेकिन इसके जरिए उन राज्यों पर ध्यान केंद्रित किया गया जहां आने वाले समय में चुनाव है। इसके अलावा बीजेपी शासित राज्यों में कोई महिला सीएम नहीं है। बीजेपी को आमतौर पर वैश्य पार्टी माना जाता है। लेकिन त्रिपुरा को छोड़ दें तो कोई वैश्य चेहरा नहीं है। ऐसे में बीजेपी ने रेखा गुप्ता को पेश कर सभी महिला, वैश्य को साधा है। यह बात सच है कि इस मंत्रिमंडल में पुराने चेहरों को जगह नहीं मिली है। लेकिन पीएम मोदी खुद कहते हैं कि हमें दुनिया की सबसे बड़े दल के तौर पर जो शोहरत मिल रही है उसे आगे बढ़ाने की जरूरत है। इसका अर्थ यह है कि बीजेपी एक बड़े लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ रही है, लिहाजा कुछ मुद्दों को दरकिनार किया जा सकता है।
इस कैबिनेट में नए और कम अनुभवी चेहरों को आप ऐसे समझ सकते हैं। इस कैबिनेट में कपिल मिश्रा ऐसे शख्स हैं जिन्हें सराकर में बने रहने का थोड़ा अनुभव था। 2019 से पहले वो आम आदमी पार्टी के हिस्सा थे। वहीं अगर बात करें तो प्रवेश वर्मा हों, मनजिंदर सिंह सिरसा, रविंद्र इंद्राज सिंह, आशीष सूद या पंकज कुमार सिंह इनके पास प्रशासनिक अनुभव ना के बराबर है।
अगर प्रांत की बात करें तो कपिल मिश्रा या पंकज कुमार सिंह का मूल तौर पर नाता यूपी और बिहार से है। लेकिन यहां बता दें कि दिल्ली से नाता ना होते हुए भी इनका दिल्ली से लगाव रहा है। अब इस चुनाव में पूर्वांचली, पंजाबी, वैश्य, जाट और दलित समाज ने भर भर कर वोट दिया तो वैसी सूरत में बीजेपी के पास सामाजिक समीकरण को साधने के लिए अलग रास्ता नहीं था। वैसे भी कोई भी राजनीतिक दल समाज के लोगों से ही मिलकर बनी है। लिहाजा बीजेपी के फैसले का एक धड़ा समर्थन करता नजर आता है तो दूसरा धड़ा सियासी फायदे की बात करता है।